पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५८९

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गामिन-गोमुविका १७ अगस्ति विश्वामित्र, स्मररथ, वार्धल। गोमुतो-भारतीय होपपुञ्जजात वृक्षविशेष । (Aheng: १८ शाण्डिल्य saccharifera )। यह देखने में नारियल या ताड़के वृक्ष १८ कात्यायन भार्गव, च्यवन, प्रौर्व, जमदग्न, जेमा होता है । इमके स्कन्धके ऊपर घोड़े की दुमके बाल वत्स। जैमा रोप्रा रहता है। जिसको मलयवामीगण गोमुती गोमिथ न ( सं० क्ली० ) गवां मिथ न. ६-तत् । वृष और कहते हैं । दमकी भो छिलकामे मजबूत रस्मे आदि बनते गाभी, गाय और बैल । हैं जो नारियलक रस्म की अपेक्षा दृढ़ और वहुकाल गोमिन् ( म० त्रि.) गावो विद्यतेऽस्य गो मिनि । १ स्थायी होते हैं। गोमान्, गोबाला, जिमको गी है । २ उपामक । (पु.) गोमुद्रो (मं० स्त्री०) प्राचीनकालका एक बाजा, जिम पर ३ शृगाल, गीदड़। ४ बुद्ध के एक शिष्यका नाम । ५ चमड़ा मढ़ा रहता हैं। पृथ्वी । गोमूढ़ ( मं० वि० ) बैलके मदृश निर्वाध । गोमीन ( म० पु० स्त्री० ) गोरिव स्थ लो मोनः । मत्स्य गोमूत्र ( म० क्लो० ) गोमवं, ६ तत् । गौका प्रस्राव या विशेष, एक तरहको मछली । पेशाब इमका मस्त पर्याय-गोजल, गोअम्भ, गोनिष्यन्द गोमुख (मं० पु०) गोमुखमिव मुखं यस्य, बहुव्री० । १ नक्र, और गोद्रव है । कच्छमान्तपनव्रतमे गोमूत्र भक्षण करने- कुम्भीर, मकर, ग्राह । २ वृक्षविशेष । ३ मातलोक पुत्र का विधान है। ( भारत क ग • र ९ ५० ) ४ कुटिला कारवाद्ययन्त्र, शृङ्गादि गोमूत्रवीजक --( मं० पु० ) रक्तवोजामन वृक्ष । नरसिंहा नामका बाजा । ( लो०) ५ लेपनविशेष, घर- गोमूत्राभ (मं० पु०) मन्द विष वृश्चिकविशेष । को भोतमें गोमुखाकारका चित्र बनाना । ६ गोमुखाकृति गोमूत्रिका (सं० स्त्रो०) गोमूत्रस्य व वक्रसरलाक्कतिरस्त्य- मन्धिविशेष, गोकं मुखक आकारका एक तरहका में ध। स्याः गोमूत्र ठन् टाप । १ तृणविशेष, एक प्रकारको ७माला रख कर जपनको थली जिमका आकार गो-पास निम्मान, घाम जिमके बीज सुगन्धित होतई। इमका मंस्कृत मखक महश होता। शाक्त, मोर, वैषणव प्रभृति गोमुग्वमें पर्याय-रक्तटणा, क्षेत्रजा, कृषाभूमिजा है। हमका गुण-- हाथ रख कर माना द्वारा दृष्टमन्त्र जप किया करते हैं। मधुर वृषा एवं गायक दग्धद्धिकारक है। गोमूत्रिका गोमख छन्वोम आङ्गल या एक हाथका बना रहना तृण देखनमें ताम्रवण है। चाहिए, जिसमें आठआगल परिमाणका मुख और अठा- गोमूत्रस्य व गतिरस्त्यत्र गोमूत्र ठन्-टाप । २ चित्र रह अाजल परिमाणको ग्रोवा रहे. ८आमनविशेष । काव्यविषम काध्यकं पढ़नको तरकीब है कि पहली का पृष्ठकै वाम पार्श्व में दक्षिगा गुल्फ ( ठेहन ) और दक्षिण पंक्ति के एक वर्णको दूमरो पंक्ति के दूमरे वर्ग मे मिन्नाकर पार्श्व में वामगुल्फकै योग करनमे गोमुखाकृति गामुग्वा. फिर पहन्नोके तोमरको दूमरीके चौथैसे फिर पहलीक सन बनता है। (दोपका) वत्सराज मन्त्रों के पुत्र । पांचवेंको दूमरी के छठेसे और फिर आगे इमो प्रकार पढ़ते (कथासरिसा० २०५७) चनत हैं । जिम श्लोकके अधयका एकान्तर वर्ण ममान १० नग्वाहनदत्तक प्रतिहारी रामदत्त दी। होत अर्थात् प्रथमाई के द्वितीय, चतुर्थ, षष्ठ, अष्ठम, दशम, ११ गोका मुख। १२ गोक मुहके प्राकारका एक बादश, चतुर्दश ओर षोड़श अक्षर एवं हितोया के तरहका शत । १३ टेढ़ा मेढ़ा घर । १४ एपन हितीय, चतुर्थ, षष्ठ, अष्ठम, दशम, हादश, चतुटेंश और गोमखव्याघ्र ( म० पु० । एक तनहका व्याघ्र, जिमममुख षोडश अक्षर एक ही हो । उमीको गौम त्रिकावन्ध गौके मुखके जैसा हो। कहते हैं। गांमुखी ( सं० स्त्री० ) गोमुखमिव प्राकृतिरस्याः, बहुव्री । उदाहरण- डीप । १हिमालयसे गङ्गाके पतन स्थान पर अवस्थित प्रवक महामं साध ने प्य विवादिभिः । एक गुहा या कन्दरा ।२राढदेशस्थ एक नदो। कष विकसना युध मा प्य वि पाणिभिः ।