पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५९२

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५९. गोरक्षतण्ड लो-गोरख इमली पत्ते मौहड़ा वृक्षके पत्ते जैसे होते हैं, किन्तु मो. रक्षनाथने भी उसो तरह मर्व जातिके ममुषों के मध्य घडाका वृक्ष इनमे मोटा और लम्बा होता है। इसको अपना मत प्रचार किया था। राजामे रङ्ग तक उनका शाखाये बड़ा बड़ो लम्बो छड़को नाई बढ़ कर पोछे आदर करते और वे सभोको ममान भावसे देवते थे। नम्र हो जाती है। इममें छोटे छोटे पष्य लगत जो शुक गुरु गोरखनाथ बहुतसे पातञ्जलका मत प्रचार करते थे। वर्ण और ईषत पीताभ वर्ण के होते हैं। भाद्र आश्विन उनके मतमें योगी हो मंमारमें मभोमे यह माने गये हैं, मामको इमर्म छोटे छोटे फन्न भी लगते हैं। क्योंकि योगवलमे मानव सव प्रकारक ऐश्वर्य और मर्वोच्च गोरक्षतगडुली (म० स्त्री० ) गोरक्षस्तगड लो यस्या:, । अवस्था पा मकते हैं। वे हठयोग के भी प्रवर्तक थे। बहुव्री०, गोरादित्वात् ङाष । गोरसतगाला सा नेपालको तुषारमय गरिकन्दरसे लेकर भारतके प्रायः गोरक्षतुम्बी ( म० स्त्रो०) गोरक्षा चामा तुम्बा चेति कम मभो स्थानों में गोरक्षनाथ मम्बन्धमें ब : तमे अलौकिक धा। कुम्भाकार तुम्बा, एक तरह की मोठी लोकी। गन्ध प्रचलित हैं। ये मिर्फ योगी और महामिड परुष गोरक्षटुग्धा ( म० स्त्री० ) गोरक्षं गोपोषकं दुग्ध निर्यामो ही नहीं थे, वरन इनके बनाये हुए हठयोग मम्बन्धाय यस्याः, बहुव्री० । क्षुपविशेष, एक तरहको लता। इम. अनेक अछ अच्के ग्रंथ हैं जिनमें ने गोरक्षकल्प, गोरक्ष- का पर्याय-गोरक्षी, तामदग्धा, रसायनी, बाहपत्री, महिता, गोरक्षमहस्र और गोरक्षपिष्टिका प्रभृति ग्रंथ अमृता, जोव्या और अम्मतञ्जीवनी है। इसका गुण -- पाये जाते हैं। ई०८मसे १०म शताब्दोंक मध्य गुरु गोर- मधुर, वृष्य, मग्राहो, शीतल, सर्व वश्यकर, रममिद्धि क्षनाथका अभ्य दय हुआ था। क एफट और गाखों देखा। गुणवईक। गोरसो ( मं० स्त्री.) गावां रक्षा, ६-तत्। १ गोपालन । गोरक्षनाथ -एक महासिद्ध पुरुष। कगाफट योगी प्रभृति गा रक्षति रक्ष-अच-टाप। २ वह स्त्रो जो गो रक्षा बहुतसे शव मम्प्रदाय इन्हें शिवावतारक जैमा विश्वाम करती है। करते हैं। प्रवाद यों है- गोरसी (सं० स्त्रो० ) गोरक्ष ङीष । १ गोरक्षदुग्धा, लता- "पादिनाथके नाती मच्छर मायके पृन । मैं यामी गोरखपवयत विशेष। २ कुम्भतुम्बी। ३ क्षुद्र क्षुपविशेष, एक तरह उक्त प्रवाद वचनसे जाना जाता है कि गोरक्षनाथ को छोटी लता जो मालवदेशमं पायी जाती है। इस मस्ये न्द्रनाथकं पुत्र थे। हठयोगप्रदीपिका प्रभृति ग्रन्थम का पर्याय-मपदण्डी, सुदण्डिका, चित्रला, पञ्चपलिका, ये नौ नाथ के एक माथ अर्थात् नौ प्रधान गुरुके एक गुरु गन्धबहुम्ला और गोपाली है। इसका गुण-मधर, तिक्त, माने गये हैं। महात्मा कबोरके बनाये हुए वीजक पढ़ने शीतल, दाह, पित्त, विस्फोट, वान्ति, अतिमार और ज्वर से एक स्थानमें एमा पाया जाता है कि इसके पहले हो दाषनाशक है। इसका फल खर्बुजाकै फलक जैसा गोरक्षनाथ विद्यमान थे। हिन्दी भाषामें कबोर और मोठा होता है। ४ ऋषभक । गोरक्षनाथके प्रवन्ध देखे जाते हैं । इससे अनुमान किया गोरख इमली (हि. स्त्री० ) दक्षिण भारतमें होनेवाला जा सकता है कि गुरु गोरक्षनाथ और कबीर एक हो एक तरहका वृक्ष। इसका धड़ बहुत मोटा एवं इसकी समयमं अर्थात् पन्द्रहवीं शताब्दीमें विद्यमान थे। शाखाये बहुत दूर तक फैली रहती है। इसकी लकड़ी कौर देखो बहुत कमजोर और छाल बहुत नर्म होती है। छालक जिम ममय चतन्यदेवके विशुद्ध धर्मोपदेशसे बङ्गन्देश रेश मे चटाइयां, रस्मं ओर कहीं कहीं कपडे भी बनाये मतवाला हो उठा था, प्राय: उसी ममय उत्तरपथिममें जाते हैं। इसमें पदुमके प्राकारके बड़े बड़े पुष्प श्रावण गोरक्षनाथके अमृतमय वचन और अमाधारण योगकौशल भाद्र मास में लगते हैं। अफ्रिकाक मनुष्य इसके पत्ते को से मोहित हो उत्तरपश्चिमके सैकड़ों मनुष्य उनके मतमें चण कर भोजनके माथ खाते हैं। इस वृक्षमें फल भो दौक्षित हुए थे। चैतन्य महाप्रभु जिस तरह लगते हैं। जिनके वोज औषधके काममें आते हैं। ज्वर सच नीच सभी वर्णाक मनुषों को अपनाया था, गुरु गो- निवारण के लिये यह रामबाण है। इसका गुण मधुर