पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५९५

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गोरखपुर-गोरखर गवर्मेण्ट के अधीन आ रहा है। यहाँ एक एक राजाके । प्रबन्ध अच्छा नहीं था, किन्तु अब उपज के अनुमार माल- अधीन बहुतसे परगन हैं। गुजारी ली जाती और प्रजा चैनसे रहती है। यहांको यहां ज्वार, बाजरा, जौ, गेहू', उर्द और मूग बहुत राजस्व आय २५ लाख रुपये की है। उपजत हैं । जंगलमें शहद यथेष्ट पाया जाता है । यहांका यह जिल्ला शिक्षा वहुत पीछे पड़ा हुआ है। अब बड़ाज नामक स्थान वाणिज्य के लिये प्रधान है। फैजा. गवमटन विद्योबतिके लिए अधिक रुपये खर्च करके बहत बाद, अकबरपुर, जमानिया प्रभृति स्थानमें अनेक तरह से स्कूल खोले। आजकल यहां ८० स्कूल में हैं जिन- कारवार हैं। में गतमेंट कुछ प्राथि क महायता देती है और थोडेको इस जिलेको जलवायु स्वास्थ्यकर है। पर्वतके निकट मरकार स्वयं चलाती है। स्कूल के अतिरिक्त यहां अब होनक कारण गरमो और जाड़ा अधिक नहीं पड़ता । कालेज भी मगठित हुए हैं। स्कूल विभागमें लगभग परन्तु तराई ओर जङ्गल अंशमें मलेरिया ज्वरका यथेष्ट ८४००० रुपये खर्च होते हैं। प्रादुर्भाव है। गोरखपुर, रुद्रपुर, कशिया और वडल यहां १३ चिकित्सालय हैं, बहुतमि रोगी मी रखे गञ्जमें दातव्य औषधालय हैं। यहाँ ब्राह्मण, राजपूत, जाते हैं। कायस्थ, कुर्मी, शेव, सैयद, मोगन्न और पठान रहते हैं। ३ उक्त जिलेको एक प्रधान तहमोल। यह असा० हिन्दू अधिवामियों में ब्राह्मण और कर्मी जाति तथा । २६२८ मे २०० उ. और ८३१२ मे ८३ ३८ पु०में मुमन्लमानों में श खोकी मंख्या अधिक है। अवस्थित है । भूपरिमाण ६५ वर्ग मील और लोकसंख्या यहां चीनी परिष्कार करनेका प्रधान व्यवसाय है लगभग ४८६०११ है। इसमें १०० ग्राम और दो शहर तथा नोलका भी कारबार यहां अधिक होता है। यहांमे लगते हैं। यह तहमोल राम्रो आमी और रोहिणी नदियों- चाबल, जौ, गेहू और चौनीको ग्फतनी दूर दूर देशोंमें से बट गई है। होती है और दूमी देशसे नमक, धातु, मट्टीका तेन्न ४ उक्त जिन्न और तहमोन का नगर और शहर । इत्यादि प्रति हैं। घघरा नदी तथा B. N. R. द्वारा यह अक्षा. २६४५ और देशा० ८३ २२ पृ०मै बङ्गाल व्यापार किया जाता है। यहां की मड़क अच्छी नहीं और उत्तर पश्चिम रेलवे किनारे गली नदी पर पड़ता होने के कारण व्यापारमें कुछ बाधा पहुंचती है। गोरख- है। यह लगभग कलकत्ते से रेलहारा ५०६ मोल और पुर शहरसे गाजोपुर और फयजाबाद तथा बरहजमे पद बम्बईमे १०५६ मोलकी दूरी पर अवस्थित है। कहा रोना तक जो मड़क गई है वही कुछ कुछ अच्छी है। जाता है कि यह शहर १४०० ईमें मतामी परिवारको और सब जगहकी सडक वर्षात दिनों में कीचड़से भर किमो थेगोमे स्थापित किया गया है। अकबरके ममयमें जाती हैं। यहां कई बार भयानक टुर्भिक्ष पड़ा है। यह अवध सूवाके सरकारका मदर था। १६१० ई में औरङ्गजवके ममय तथा १८वीं शताब्दीमें ऐमा अकाल हिन्दीनि मुमनमानको भगा कर अपना अधिकार इस हना था कि जगलो हिमकपशु मनुषीको पकड़ पकड़ पर १६८० तक जमाया। अठारवीं शताब्दी में यह अवधमें खानको ले जाते थे। अव गवर्म टने टु मक्षसे बचनेके मिला दिया गया। यहां जिलेका मदर अदालत. लिये अच्छी व्यवस्था कर दी है। विचारालय, कारागार, दातव्य औषधालय और म्य निस- पदरौना तबसौल एक स्वतन्त्र उपविभाग हो गया पालटी है। है भोर यह निड़यन-सिविल सर्विस मेम्वरों के अधीन गोरखमुंडी (हि. स्त्री० ) एक तरहको घास जिमकी है। तथा हाता तहसील डेपुटी कमिशनरको देख भालमें पत्तियां लगभग एक अङ्गल लम्बो होती हैं। इसमें है।इसके अलावा यहाँ तीन जिम्ना मुन्सिफ पोर एक गुलाबी रंगके पुष्य लगते जो रक्तशोधनके लिये बहत सबजाइन्हींके हाथमें समस्त गोरखपुर तथा बास्तके • उपकारी हैं। राज्य कार्यका प्रबन्ध है। पहले यहां राजस्व विभागका ' गोरखर ( फा० पु. ) पश्चिमी भारत और मध्य ऐमियामें पाये Vol. VI. 149 मि