पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५९८

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गागच--गाखां गाराचा म. क्ला०) गवा किरणन गाचत रूच अप गाख वालष्ठ, माहसा, दृढ़काय, सत्यवादा पार कष्ट- हरिताल, हरताल । महिष्णु होते हैं। पार्वतीय युद्ध में इनके ममान योद्धा गोरोचना ( मं० स्त्री.) गाभ्यो जाता रोचनेव । पीले रंग भारतमें और दूसरे नहीं हैं। इनके शरीरको गठन चीन का एक तरहका सुगन्थि ट्रय, गोके मस्तकस्थित शुष्क या तातारीमो तथा आँख छोटी और नाक चिपठी पित्त । इमका मस्कृत पर्याय-रुचि, शोभा, रुचिरा, होती है। शोभना, शुभा, गोरी, रोचनी, पिङ्गा, मङ्गल्या, शिवा, पीता, ११ वीं शताब्दी में मुमनमानक आक्रमणसे पीड़ित गौतमी, गव्या, चन्दनोया, काञ्चनो, मेध्या, मनोरमा, हो हिन्दूराजाओंने ममन्य नेपाल पार्वतीय प्रदेशमें आ श्यामा. रामा, वन्द्या, रोचना है। इमका गुण-शीतल, | प्रात्मरक्षा की थी। किमी किमीका मत है कि उन्हीं तिक्त, वश्य, मङ्गल और कान्तिकारी, विष, अलक्ष्मी, हिन्दुओंके साथ यहाँक मगर, गुरुङ्ग प्रभृति जातिको ग्रह, उन्माद, गर्भस्राव और क्षतरक्तनिवारक है । (भाव स्त्रियोंक मस्रवसे गोर्खाको उत्पति है। नेपालके गोर्खा प्रकाश) तन्त्रक मतमे गोगेचना दाग देवयन्त्र प्रस्तुत किया नामक स्थानमें यही गोर्खा बहुत दिन तक निरापदसे जा सकता है। पगिडतगगा इमसे देवताओंके कवच शान्तिसुख भोग करते थे ! उनकै मर्दार नाममात्र नेपाल प्रभृति निखा करते हैं। गजाके अधीन थे। १७६८०के कुछ पहले मुहम्मद गोर्खा नेपाल राज्यके अन्तर्गत एक जिन्ना । यह गण्डकी तुगलक नेपाल जोतने के लिये अगि बढ़े थे, किन्तु चीन नदीके उत्तरपूवमें अवस्थित है। मसियांदि और त्रिशून्न मैन्य ा तुगलक को पराजय कर नपालसे भगा दिया । गङ्गा नदीके मध्यवर्ती ममुदाय भूभाग इम जिले का इम ममय भाटगांव, काढमांड और ललितपत्तनके राजा. अन्तर्गत है। यहां लगभग दो हजार घर और राज में शत्र ता थी। पृथ्वीनारायण उम ममय गोर्खाओं के प्रासाद हैं। राजप्रासाद अत्यन्त भग्नावस्थामें पड़ा है। राजा थे। वे अपनको उदयपुरक गणा व शधर बत गोर्खा---उक्त जिन्न के रहनेवालं। ये गोर्खाली भी कट लाते थे। भाटगॉवके राजान दमर गजाओंके विरुद्ध लाते हैं। अभी नेपाल और उमको तराईके रहनेवाले पृथ्वीनारायणका साहाय्य प्रार्थना को थो, किन्तु जब मनुष्य अपनको गोर्खा कहा करते हैं । किन्तु जिनकं | उन्होंने देखा कि पृथ्वीनारायणसे महायता पाना तो दर पूर्व-पुरुष गोर्खा नामक जनपद में वास कर स्वाधीन और रहे, गोधीप ही उनके विपक्ष हो उठे है तब प्रवन्न हो उठे थे, वे ही यथार्थ गोर्खा या गोर्खाली हैं । तीन स्थानके राजा और उनके अधीनस्थ मामन्त सबके पृथ्वीनारायणक अभ्य दयमें उनके साथ ये भी नेपालके | सब गोखोराज पृथ्वीनारायणक विपक्ष हो लडने लगे। भित्र भित्र स्थान में फेल हय थे। नेपालमै गोमा गमाची-1 किन्तु एक एक कर सब राजधानी गोर्खा सर्दारके हाथ का विवरण देव । इनका कथन है कि एक समय गुरु गोरक्ष पाने लगी । अन्तमें एक राजा युद्ध क्षेत्रमें मारे गये , दसरे नाथ नेपालको प्राय , जिस स्थानमें रह कर उन्होंने १२ वन्दी हो कर कारागारमें मरे और शेष नोसरे राजा वर्ष तक कठोर तपस्या को थी, वही स्थान उनके नामा-1 भाग कर वृटिश गवर्मेण्टके पात्रयमें पाकर रहे । वृटिश नुमार गोर्खा नामसे परिचित हुआ है। ये भी गोरक्ष गवमण्टने उनकी सहायताके लिये सेना भेजी थी, किन्तु नाथको विशेष भक्ति श्रद्धा करते और शिवावतार गोरक्ष वे कुछ कर न सके । पृथ्वीनारायणको मृत्यु के बाद उन- के शिष्यके जमे परिचय देते हुए “गोरक्षा" या गोर्खा के पौत्रके प्रतिनिधि गोर्खावीर बहादुर शारने गोर्खाम न्य नामसे अभिहित हैं। के साहाय्यसे समस्त नेपाल और भोटके बहुत अशी पर गोर्खा कोई भिन्न जाति नहीं है। गोर्खाराज पृथ्वी. अधिकार जमा लिया। नारायणक साथ ब्राह्मण, क्षत्रिय, मगर, गुरु, कामाई, अब गोर्खा सिकिम राय लिये अग्रसर हुए। धामाई प्रभृति नाना जातियोंने अस्त्रधारण किया था, १८१४ ई० में पृटिश गवर्मेण्ट लड़ाई छिड़ी। पाजकल वे हो गोर्खा नामसे परिचित हैं पहले गोर्खामे बहुतसी अगरेजो क ष्ट कर दी ।