पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/६००

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५८८ गाल अवस्थामें दक्षि, राष्ट्रपीड़ा और राजाओंका विनाश | गोलको इस तरह रखें, जिममे शलाका स्थिर रख होता है। योग देखा। गोलको घुमाने फिरानमें किसी तरहको बाधा न हो । गोल-भारतवर्ष के प्राचीन ज्योतिषियोंसे आविष्कत और यह दण्ड कृत्रिम भूगोलका मेरुदण्ड कहलाता है। व्यवहत एक प्रकारका यन्त्र । पाश्चात्य ज्योतिषियोंक | इसके ऊपर बहुतसे वृत्त या कक्षा बनाना पड़ता है। व्यवहत ग्लोव ( Glob.) यन्त्रका जेमा प्रयोजन और वृत्त या कक्षाको बांसको शलाकाम प्रस्तुत करें भूगोलके लक्षण है, गोलका प्रयोजन तथा लक्षण भो उमो तरह दोनों पार्व जिधर दगडकै अग्रभाग निकल रहते, उधर है। यह गोलयन्त्र काष्ठमय शलाका हारा निर्माण करना समान अन्तरको एक एक वृत्त वना देखें। इन्हीं दोनों पड़ता है। प्रायः मभी प्राचीन ज्योतिष ग्रन्याम इमका वृत्तको आधारकना कहते हैं। खगोलवन्धनक लिये प्रयोजन और प्रस्तुत करनको प्रणाली लिखी हुई है तथा| इसका प्रयोजन हुआ करता है। दोनों वृत्तक वहीं रहने- मतामत भी देखा जाता है। सूर्य मिसान्त भार मिहास से भूगोलको चारो ओर खगोलबन्धन किया नहीं जा शिरोमणि के गोलाधायम गोलका विषय जो कुछ लिखा | सकता। इमी तरह भूगोलका बन्धन कर उसके ऊपरमें है वही इम स्थानमें लिखा गया है। खगोलका वन्धन किया जाता है। उक्त दोनों आधार सूर्य मिद्धान्त लिवा है कि ज्योतिषशास्त्रम गोलके | कक्षाके मक्षा एक और छोटा वृत्त बनावं । इमको विषुव- समस्त वर्णन रहने पर भी सिर्फ उसे पढ़ ल न हो दवृत्त कहत हैं । इमो कक्षाको हो गोलका मधावृत्त गोलको प्रकृत अवस्था जानी नहीं जा मकती। विशषतः कल्पना करना पड़ता है। दमक बाद बराबर बराबर हम लोगकि अधोभाग या पाश्‍व देशमें हमलोंगोंक सदृश व्यापाई ले मंष, वृष, और मिथुन राशिक तोन वृत्त मनुष्य वाम करते हैं। बड़े बड़े पर्वत स्थिरभावसे विद्य प्रस्त त करें। इन तीनों वृत्ता३६० अङ्गल परिमाणके मान हैं, नदियां बहती है, तथा उम स्थानवामियों के समान भागपर अंश अजित किये जाते हैं । इमका परि- मस्तक पर भी ग्रह एवं ज्योतिष्कमण्डल निरन्तर समान माण विष वत् कक्षाक परिमाणानुमार करना पड़ता है भावसे भ्रमण करते हैं, ये मब विषय प्रत्यन नहीं होने अर्थात् पहले जिन तोन वृत्तोंका उल्लेख किया गया है। पर धारण करना दु:माधा है। उनमम विष वत् कताका परिमाग पाधारकक्षा परि ज्योतिःशास्त्रप्रतिपाद्य विषयों को अच्छी तरह हृदय. माणकै वराबर हों, अतएव मषान्तवृत्त विष वत् कक्षाम नाम करना हो पृथ्वीका कृत्रिम गोल या गोलयन्त्रका परिमाणमें छोटा, मषान्तसे वृषान्त छोटा और वृषान्त प्रधान उद्देश्य हैं। गोलय व काष्ठ द्वारा निर्माण करना कक्षाम मिथ नान्त कक्षा छोटा बनाना पड़ता है। तोनी पडता, इमकी परिधिक परिमाणका कोई स्थिर नियम वृत्तांक बनाये जाने पर उन्हें दृष्टान्त गोल या कृत्रिम नहीं है; इच्छानुमार छोटा या बड़ा किया जा सकता गोलके उत्तर भागमें आधार वृत्त पर यथाक्रमसे बांध है। काष्ठ हाग बड़ा बेगनके जेमा गोल प्रस्तुत कर उसके करना चाहिये। ऊपर ज्योतिशास्त्र बर्णित महादेश, देश, नगर, सागर, ___ क्रान्तिवृत्तके विषुवत्प्रदेशसे विक्षिा प्रदेशका जितना उपसागर, ह्रद (झील) और नदी उपयुक्त स्थानम अङ्कित अन्तर है, विषुववृत्त और का न्तवृत्तके उतना हो अन्तर करें। इसे भूगोलक कहते हैं । इस गोलकके ठोक बोचो पर इन तीनों वृत्तीको बांधना चाहिए। इन तीनों वृत्तों बोच एक छिद्र करना पड़ता है । उस छिट्र हो कर एक को कमानुमार मेषान्तवृत्त और मिथ नान्तवृत्त कहते काष्ठकी शलाका प्रवेश कर देखें जिससे शलाकेके दोनों हैं। पहले लिखे हुए नियमसे कर्कट सिह और कन्याके प्रान्तभाग गोल भेद कर बाहर निकल जाँय। लेकिन तीन और वृत्त प्रस्तुत कर पूर्वोक्त तोन वृसके विपरीत ख्याल रहे कि वहिगत दोनों प्रान्तभाग समान परिमा भावसे रखें। इन्हें कौन्त, सिहान्त और कन्यान्तवृत्त बके हो। गोलके मध्य छिट्रका प्रायतनकी अपेक्षा कहते । इसके बाद नियमानुसार तला, वृधिक और धनु शलाका कुछ पतली करनी पड़ती है अर्थात् दण्डविद्ध | राशिके तीन वृत्त बना कर मेषादि वृत्त रखनेके अनुसार