पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/६०३

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गोश नाडो-वृसके बराबर एक दूसरा वृत्त खींच कर एम क्रान्तिको स्थिर कर ग्रह का स्फट करन होता उसमें मेषादि हादश राशि अङ्कित करें अर्थात् बराबर है। कान्तिपत्त और विमगडलके सम्पातको पपात बराबर बारह भागों में विभक्त करके चिन्हित करें। इमर्क | कहते हैं। ग्रहमाधन करने में हमकी भी आवश्यकता नाम कान्तिवृत्त है। सूर्य इसी वृत्तमें भ्रमण करते हैं। होतो है। रविसे आधी छायाके अन्तर पर पृथ्वी की छाया है। इस भूगोलक मधा ग्रहगोल बांधना पड़ता है। पूर्व वृत्तम कान्तिपात में षादिका विलोम क्रमसे घमता नियमके अनुमार ग्रहगोलमं भी विषुववृत्त और क्रान्ति- है। ग्रहोका विक्षप पान भी इमीमें भ्रमण करता है वृत्त बांध दें। क्रान्तिवृत्तको कक्षामण्डल मान कर इम वृत्तम क्रान्तिपातादि स्थान अङ्गित करना चाहिए। वद्यकोत विधिक अनुमार प्रतिमगडन्न वांधना होता है। इम वृत्तम एक क्रान्तिपात चिह कर उममे ६ नक्षत्र प्रतिमगडनमें गणितकै अनुमार मंषादिका पातस्थान को ग पर एक द मरा चिह्न करं। यह चिह्न दो नाड़ी करें । एक दूमरा राशि अङ्क और कान्तिपातचिन्ह अङ्गित वततके माथ योग कर पातचिके आगे तोन नक्षत्रक करना चाहिए । इमको विमगडल कहा जा सकता है। अन्तर पर नाड़ीवृत्तसे २४ अंश उत्तरमें तथा दूमर प्रतिमगडल और विमगडलक पातचिन्हमें एक मम्पात कर विभागमें तीन नक्षत्रके अन्तर पर २४ अश दूर रहे। उसके आधक अन्तर पर एक ट्रमग मम्पास करें। पातके इमो तरह बांधना चाहिए। क्रान्तिवृत्तकै जमा एक अगले और पिछले भागसे तीन नक्षत्र अन्तर पर प्रतिमा तैमरा वृत्त खोंच कर उसमें राशि अङ्क और मेषादिका गडलक दक्षिण और उत्तरमें जितना अश विक्षेप होगा, क्ष पपातम्थान चिन्हित करें, इसका नाम विमण्डल है। उतने अशको दूरी पर विमगडल स्थापन करें। इस कान्तिकृत्त आर विमगडल के दोनों क्षेपपातमें मम्पात कर मण्डलमें मन्दस्फ ट गतिक ग्रह भ्रमण करते हैं । मेषादि- उसमे ६ नन्तत्रकी दूरी पर एक मम्पात करें। नेपपातक • के अनुलोममे मन्दम्फ ट चिन्ह करना पड़ता है। प्रति- आगरी तीन नक्षत्र के अन्तर पर कान्तिवृत्तके उत्तरस्फुट/ मण्डलसे जितने टूर पर मन्दम्फट हो, उभ स्थान पर नपभाग जितना होगा, उतनी ही दूरी पर तथा उसके उतना ही विनेप हा करता है । ग्रह वृत्तके सम्पातस्थ पथाद भागसे तोन नक्षत्रके अन्तर पर क्रान्तिका उतना होने पर विक्षपका प्रभाव होता तथा सीन नत्तत्र दरमें हो भाग दक्षिणम स्थिर कर विमण्डलको स्थापन करना रहनसे सर्वाधिक विक्षप होता हैं। मधास्थित कालमें चाहिये। डमी तरह चन्द्रादि ग्रहोंके छह विमण्डल करने | अनुपात अनुमार वितेप स्थिर करना चाहिए। होते हैं। चन्द्रप्रभृति ग्रहण विमगलम भ्रमण नाडी-वृततकं उत्तर और दक्षिणम इष्ट क्रान्ति जितनी करते हैं। होगी, उतनी ही दरमें अहोरात्रवृत्त बन्धन करना है। क्रान्तिवृत्तक स्फ,टग्रहस्थानके नाड़ीवृत्तसे वकः | इमको माठ बराबर बराबर भागों में विभक्त करें। इस रुपम जितना अन्तर होता है, उसीको क्रान्ति कहत हैं। मगडल में सूर्य को देनिक गति हुआ करती है। विमण्डल के ग्रहस्थानके क्रान्तिवृत्तसे तिर्यक् रूपमें भूगोलक जैमा ग्रहगोन भी ध्र वदगडमे बांधना पड़ता जितना असर होगा, उसे विनेप और विमगडलके ग्रह है, भूगोलकै अपमण्डलके नोचे मूत बाँधकर ग्रहकक्षाको स्थानसे नाडीवृत्तक तिर्यक् अन्तरको स्फ टक्रान्ति कहते उसमे निवड करें; हम प्रकार भूगोलको दगड मजबूतीमे बांध कर दण्डकी दोनों ओर बधी हुई दोनी नलियोंमें विष वदत्त और कान्तिस्तके सम्पातको क्रान्तिपात | खगोल और दृग गोल रख भूगोलका भ्रमण अवलोकन करते हैं। यह क्रान्तिपात एक स्थानमें स्थिर नहीं रहता, करें । विशेष विवरण खगाल और भगाल शब्द में लिखा गया है। धीरे धीर पीछेको ओर घट जाता है, अर्थात् मेषादिके गोल-दाक्षिणात्यमें विजापुर जिले के रहनवा ने ग्वालाको पृष्ठभागमें विष ववत्त पोर क्रान्तिहरत आपसमें मिल जाति । कहीं कहीं इन्हें गोल्ड या गोल्लेर कहा करते हैं। जाता है उसका नाम क्रान्तिपात है। इनमें प्राइवि, इनमःमक पानात्मक और शास्त्र प्रभात Vol. VI. 151