पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/८०

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खैरपुर-खैरवा रहा करती हैं। इस राज्यम शिक्षाका बहुत अभाव है। हुवा है। इसके काय का पञ्जावी शिक्षक द्वारा सिखाये यहां सिफ छ विद्यालय हैं जिनमें प्राय: ढाई हजार जाते हैं। खैरपुरसे नौल, जोपार, बाजरा और तीलकी लड.के पढ़ते हैं। यहाँ एक शिल्प स्कू ल भी है जिसमें | रफानो होती है। कुम्हार, लोहार, बढ़ई, जुलाहे और दर्जीके काय | खैरपुर-पञ्जाबके अन्तगत भावलपुर राज्यको मीनचीना- सिखाये जाते हैं: वाद निजामतमें एक तहमोल। यह अक्षा० २८ ४८ ___ मालगुजारी बटाईक रीतिसे क्षेवजात द्रव्योंमें हो | एवं ३० उ० और देशा० ७२७ तथा ७३.१८ पूके लो जाती है। मोर साहबको उसका तृतीयांश मिलता मध्य मत्लज नदीके बांये किनारे पर अवस्थित है। इसका है। कुल आमदनी कोई १३ लाख है। इसमें क्षेत्रफल २३०० वर्ग मोल है। जनसंख्या प्रायः ८१८७की १८५००० रु०को जागीर भी आ जाती है। १८०२ | है । यहांकी आमदनी दो लाख रुपये है। ई. तक यहा देशी सिका चला, परन्तु अब अंगरजी | | खैरपुर-पञ्जावके अन्तर्गत मुजफ्फरगड जिलाम अली रुपयेने उसका स्थान अधिकार कर लिया । मोर | पुर तहसीलका एक शहर । यह अक्षा० २८. २० उ० साहब गवर्नमेण्टको कोई कर नहीं देते। देशा० ७०.४८ पू॰में मुजफ्फरगढ़ शहरसे ५० मोल इसराज्यमें छ अस्पताल हैं। यहां पाठ मास तक दक्षिणम अवस्थित है । यहांको लोकसंख्या प्रायः २२५७ कठिन गर्मी पड.तो है, दृष्टि बहुत कम होती है। है। यह शहर खेरशाहका निर्माण किया हुआ है। इस खायो और सबिराम ज्वर, ऑस्ख उठना, और चम रोग लिये इनका नाम खेरपुर पड़ा । यह निम्नभूमिमें अव- यहां प्रायः बहुतोको हुत्रा करते हैं। स्थित होनेके कारण चन्द्रभागा नदोकी बाढ़से प्लावित हुआ करता है। इस शहरके प्राय: बहुत घर ईटकि बने ___२ खरपुर राज्यका प्रधान नगर। यह अक्षा• है। यहांका रास्ता इतना कोण है कि उसमें हो कर २०३ उ० और देशा० ६८ ४८ पूर्म मिन्धुनदीसे गाडी नहीं चल सकती। यहांसे कपास, रेशम और अनेक १५ मील पूर्व और रोहरोमे १७ मोल दक्षिण, मोरवाह प्रकारके शस्प रफ्तानी होते हैं। और बहुत प्रकारके महरको बगस्त में अवसात है। यहाँको जनसंख्या कपडे विदेशसे यहां आते हैं। प्रायः १४०१४ है, जिसमें विशेष कर मुसलमान है। बैरवा झासोके आसपास रहनेवाली एक हिन्दू जाति । इसका निर्माण कौशल कुछ भी नहीं है। अधिकांश इनका विश्वास है कि पत्रानरेश स्वर्गवासी छत्रपालसिंह धर यहां मिहोके है, बहुत थोडे ईटोंके बने हैं। राज- जीके राजत्वकालमें यह जाति १७०० ई०के लगभग भवन मानाप्रकारके रङ्गसे चित्रित है। यहाका जन- झांसीको आयी थी। यह जाति क्षत्रियवर्णमें गिनी वायु उपयुक्त नहीं होने के कारण राजा अपने राजभवन- गयी है। में नहीं, सदा कोटदीगौमें रहा करते हैं। नगरके इस जातिको विवाह-प्रणाली उच्च जातियों को सौ बाहरमें पोर रेहान, जियाउद्दीन तथा हाजीतफर है। ये स्वगोत्रमें विवाह नहीं करते परन्तु तीन कुल शहीदको २ मसजिदें हैं। इस शहरमें दो औषधालय छोड़कर विवाह करते हैं। इनलोगोंमें भांग, गाँजा और हैं जिनमें एक स्त्रियों के लिये है। अफीम विशेष रूपसे प्रचलित है। ये मछली खाते और सलपुरराजके प्राधान्य समयमें यहां प्रायः १५००० शराव भी पीते हैं। खेर या खदिरवक्षसे सामान बना मनुष्थ रहते थे परन्तु इसका दिनों दिन काम होमेके कर चिना ही इनकी मुख्यत्ति है। कारण पाजकल सिर्फ ८००० ही मनुष्य हैं। यहां प्राज जब ये लोग अपने संवन्धियोंसे मिलते तो राम राम, कलकुछ शिल्पकर्म भी होते हैं, यथा बुनमा, बहुत प्रका जय श्रीकृष्ण, जय राधाकृष्ण कहा करते हैं। ये देवीके रके कपड़ा रङ्गाना, सोनारका काम, और वन्दूक शादि उपासक होते और उनके नाम पर बकर वलिदान बनाना । गलिचा बुननेका काम भी थोई दिनी पारम्भ करते हैं।