पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/९७

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गा महीनेको अमावस्था, कमपक्षीय अष्टमी तिधिको गङ्गा निक्षिप्र होता, उसको मद्गति मिलती है। काशी- नान करनेमे प्रचुर फल होता है। चन्द्रग्रहमा, सूर्यग्रहक खण्ड में गङ्गामाहात्मा अत्यन्त सुन्दर रूपसे वर्मित है। और व्यतोपातमें गङ्गास्नान करनेसे महस्त्र गुमा फल है। उसके मतमे स्वर्ग, मर्त्य और पातालमें जितने तीर्थ हैं, ( ब्रह्मपुराण ) गङ्गामृत्तिका मिर पर धारण करनेमे सूर्यसे सबमे गङ्गा तोध प्रधान माना जाता है। ऐमा कोई भी अधिक तेजशाली हो मकते हैं । (अपराध ) गङ्गाम' पदाध ही नहीं है जिसके साथ गङ्गाको उपमा वा उप- किमी रूप पुख्यकार्य करनेमे मात्र गुम फल होता है। मैय भाव हो मके। ममस्त याग, यन्न करनेसे जो फल अन्न, गो, सुवच , रथ, घोड़ा पार गजदान करनेमे जो होता है, गङ्गार्क अकले दशैनमे उसका शतगुन फल फल मिलता है, गङ्गाजल दान करनसे उसमे मो गुना मिल जाता है। एमा कोई भी पाप नहीं, जी गङ्गाजल अधिक फल है। गण्ड प मात्र गङ्गाजल पान करनेसे अख- स्पर्शमे विनष्ट न हो। ऐमा कौन अभीष्ट है जो गङ्गा मेघया करनका फल होता है, स्वच्छन्दरुपसे पान सानमे पूर्ण न हो। शौच, आचमन, सेक, निर्माल्य, करन पर मुक्तिनाभ है । जो मनुष्य मात गत अथवा तीन मनघषम, गात्रमद न, कोडा, दानग्रहण, अभक्ति, अन्य हो रात गङ्गा तोर पर वाम करता है, उसको नरकका तीर्थीक भक्ति वा प्रशंसा, विष्ठा, मूत्रपरित्याग और कष्ट भोगना नहीं पड़ता। तपम्या, यश, ब्रह्मचर्य और ___ मन्तरग ये १३ कार्य गङ्गामें करना निषिद्ध है । दान करने से जो सुग्व नहीं मिलता, कंवल गङ्गातीरम किमो पुरागर्क मतम वैशाख मामको टतोया तिथि- वाम करने पर मनुष्य वही सुख अर्थात् मोस पा मकता को ब्रह्मलोकमे हिमालय पहाड़ पर गङ्गा अवतरण हुई है। (महापुराण )। ६०००० विघ्न मव दा गङ्गाको घर रहते हैं। ब्रह्मपुरामक मतमें ज्येष्ठ मामक शुक्लपक्षको हैं। अभक अथवा कुकर्मो मनुष्य जब गङ्गाक तीरमें उप- दशमी तिथि मंगलवारको गङ्गा हिमालय पहाइसे स्थित हति हैं तो उनके हृदयम' काम, क्रोध, लोभ, मोह पर गिरीं। भौम भार थान मत गन्दविगव देखा। इत्यादि रिप आ करके भर जात पार गङ्गाम्नान करने पौराणिक मतम विष्णु, गङ्गा और ग्राम्यदेवता. आदि- नहीं देत हैं। ( भविष्य ) माटविक्रय तथा पिटविक्रयमे का एक स्थितिकाल निरूपित है। आस्तिक हिन्दी भी गङ्गाका दान ग्रहण करना निन्दनीय है। गङ्गा भीतर कभी दान नहीं लेना चाहिये ( मस्यपसमा ) जिसको का विश्वाम है कि बह निर्दिष्ट ममय व्यतीत होनेमे, विष्ा, गङ्गा आदि धरातल कोड़ कर देवलोक चले जायगे गङ्गामे अधिक दूमरे तोध में भक्ति है और जो गङ्गाको मनुष्योंको दुद शाको मोमा न रहंगो। देवोभागवतके उतनी भक्ति नहीं करता उमको कठिन नरकयातनाका मतम कलियुगक पांच जार वर्ष व्यतीत होने पर गङ्गा, अनुभव करमा पड़ता है । ( भविष्य ) ज्ञान पूर्व क गङ्गाक मरखतो और पदमावतोका शाप मांचन होगा, ये तीनों किनारे मृत्य हान पर मुक्ति होती है और अनान मृत्य - अपनी २ मूतिको धारण कर विष्णुलोक चली जांयगो। म्वगभग्ना है। मनुष्यक विषयमं क्या कहना है - कमि, बह छाड़ कर विष्णुको एक और अनुमति है कि विष्णु, कोट, पतङ्ग, आदि जिम जन्तुको मृत्य गङ्गाम होतो अथव लोक जात ममय काशो और वृन्दावन भिन्न दूसरे तो जो वृक्ष उखड़ कर गङ्गाम भो गिर जाता, वह परमगति पाता है। (भविष्य पुराण) जिसका आधा शरीर मृत्य कालको। अपन माथ लेतो जांयगो। दयाभागवत । ८:२१) गङ्गाजलमें डूबा रहता, उसको भी पुन: जन्म नहीं, ब्रह्मवैवर्तपुराणका मत है कि जब मरस्वताने गङ्गा- ब्रह्मसापुज्य मिलता है । (स्कन्द) मनुषीको जितनी हड़ियां को बैकुण्ठ परित्याग करने और भारत पर अवतीर्ण गङ्गाजलमें रहतीं, उतने ही हजार वर्ष पयन्स उसका होनेका शाप दिया, ता गङ्गान गेते हुए अत्यन्त आकुल- ब्रह्मलोकमे वाम होता है। इसी कारण भारतीवासी तामे विष्णु भगवान्के निकट शापमोचनकालनिर्णय मृत वाक्तिको अस्थि गङ्गामें डाल देते हैं। (कोमा पराय) करनेका अनुरोध किया। विष्शुमे उन्हें अत्यन्त कातर जिमका केश, रोम और नखादिभो गङ्गाजलमेंदख कर कहा :---