पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/९८

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'पद्य प्रभाति विधि से पच मायकम् । इसका आयतन बढ़ता गया है । उत्तर-पश्चिमसे जाह्नवी 'वर खितिस्ते भार त्या: मापन भारतमुवि ॥ और उमके बाद अलकनन्दा आकर मिली है। यहीसे देवेशि ! मरस्वतीक गापम कलिक पांच हजार वर्ष स्थान देवप्रयाग तीथं कहा जाता है। उम जगहसे पर्यन्त तुम्ह मयं लोक भारतवर्ष में रहना होगा, उसके दक्षिण-पश्चिम हरिद्वार है। हरिदारसे देहरादून, बाद फिर तुम मेरे निकट आवांगी। इसी प्रकार दूसरे शाहराम पुर, मुजफरनगर और बुलन्द शहर होती हुई दूमर पुगम भी गङ्गाको स्थितिक मम्बन्धमे लिखा फरुखाबादमें गमगङ्गा नामक नदी आकर गङ्गामें है। इसोमे मालूम होता है कि वर्तमान कलिक पांच गिरी है। गङ्गाके उत्पत्तिस्थानसे ३३४ कोशको दूरी- हजार वर्ष पयन्त गङ्गाको स्थिति है ; उसके बाद चली पर इलाहाबाद में प्रयागतीर्थ है। इस जगह जमुना जावेंगो। वराहपुगगम लिखा है.. आकर गङ्गामे मिन्न गई। यही ३३४ कोश राह गङ्गा- पषिवा गगामाीना भविष्य त्यन्ति में कली" ने संकीर्ण भावमें चल प्रयाग तोथमें विशाल विस्त त अन्तिम कलि अर्थात् प्रन्नयम पूर्व कन्निम पृथिवी रुप धारण किया है। प्रयागम वाराणसी होते हुए पर गङ्गा न रहेगो । आधुनिक धम मोमासक हिन्दू विहार आने पर पहले शोण नदी और पीछे गण्डकी पंडित वराहपुराणकै बचनकै माथ दृमर पुराणोंक और कौशिको नदी इसमें पतित हुई है। तत्पश्चात् • वचनों को मिलाकर एमी मीमांमा करते हैं कि अन्तिम राजमहल होकर प्राचीन गौड़ नगरके भग्नावशेषको कलिको गङ्गा चलो जावेंगी, अभी नहीं । दाशनिक भो धोती हुई गङ्गा पूर्व मुखको गई है। राजमहलमे कहते हैं कि प्रलयकालक पूर्व एक भयानक सूर्य उदय दश कोम पूर्व में इसको एक शाखा निकलकर मुर्गिदा- होगा और उमके तजमे पृथ्वीका ममस्त जल मूग्व जायगा बाद, बहरामपुर, नदिया, कालना, हुगली, चन्दन- पृथ्वोपर नद. नदी कुक्क भी नहीं रहेगा। नगर और कलकत्ता होता हुई पश्चिम, दक्षिणको ओर - मन्प्रति कानके भौगोलिकोंका मत है कि गङ्गा हिमा- वगोपसागरमें मिल गई है। यहो शाखा गङ्ग। या सय पहाडमे निकली इई हैं। हिमालयके शिमला नगरमे भागीरथी नाममे प्रमित है। मूल नदो सङ्गम स्थानसे

दक्षिण-पूर्व इसकी उत्पत्तिका स्थान है। वह गढ़वाल पदमा नाम धारण कर पाबना और गोपालद होतो

‘राज्यके अन्तर्गत अक्षा• ३४५६४ उ. और देशा• हुई गई है। गोपालन्दकै निकट ब्रह्मपुत्रको यमुना ७ ३." पुमें अवस्थित है। हिमसे प्राकृत उमो नामक शाखा आकर इसमें गिरी है। उसके बाद मूल र स्थानको गढ़ोत्तरी कहते हैं। गङ्गात्तरो ममुद्रतलसे नदीने ब्रह्मपुत्रके साथ मिल कर 'मेघना' नाम धारण ८२..हाथ ऊच है। किया है और नोआखालोके निकट समुद्रम मिल गई ' उम तुषारमरिहत गहरी खाईके चारों तरफ पत्थर- है। अंगरेज लोग इस मूल नदीको (Ganges और जो का खगह और मृत्तिकाका अंश आधा कोम तक फेला शाखा कलकत्ता होकर गई है, उसे हुगला कहते हैं। इवा है। यह खात पव तक ऊपरी भागमे क्रमशः मोहानासे ४३. कोसकी दूरी पर यमुना, ३.३ को अवतरण करके एक गारमें जा गिरा है । उमी गारसे दूरी पर घघरा २४१ की दूरी पर गोमता २३२॥• कोस गङ्गा पृथ्वीपर उतरी हैं। इमोका नाम गोमुखी वा गङ्गो- दूर शोण, २२५ कोम दूर गण्डकी, १८६॥• को दूरी पर त्तरी है। इस स्थानसे ७७८ कोस पथ भ्रमण करके गङ्गा रामगङ्गा, १६२ को दूरी पर कोशी, १२• क दूरी पर वनोपमागरम मिल गई है। तषारमयी गोप्सरोके महानदो, ७. की दूरी पर कर्मनाशा, ११५ को दूरी पर निकट गङ्गाका विस्तार १८ हाथमे अधिक नहीं होगी। यमुना, ४. की दूरी पर अलकनन्दा, २. को दरा पर इस जगह इसको गहराई एक साथसे भी कम है। भीलङ्ग ये सब मदियां मूल गङ्गाभ मिलो हैं क्रममः नीचे आत आत दूसरी दूसरो नदियां मिल जानसे गरेज जिसको हुगली नदी कहते है, हम लोग