पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/९९

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उसे प्रकत गङ्गा कहते हैं। जिस स्थानमें गंगा और पद्मा | बसे निम हुआ है। वाराणसीसे कहलगांव तक प्रति कोस विभिन्न मुखको गई है, वहांसे गगाका बहोप (डेल्टा) १० इञ्च, कहलगांवसे हुगली नदीके प्रारम्भ तक प्रति "भारम्भ हुआ है। इस डेल्टामें गङ्गाने भिन्न कोम ८ च वहांसे कलकत्ता तक प्रति कोस ८ रंध भित्र मुखमे सममें प्रवेश किया है। उसमें गङ्गा पश्चिम और कलकत्तासे समुद्र पय न्त २मे ४ इन्च तक जल नोचा प्रान्तमें और मेघना पूर्व प्रान्समें अवस्थित हैं। इसका पड़ गया है। क्षेत्रफल २८०८० वर्गमील है। गङ्गाका मुहाना सागर ___अन्यान्य नदियोंकी भ ति गङ्गा अपने उत्पत्ति थाम- तीर्थमें पूर्व चाग्राम तक १३५ कोम होगा । इस स्थानके से जितनो दूर गई हैं उनका वेग घटा है। प्रथम उनका बीच प्रधान शाखायें समुद्र में पतित हुई हैं . यथा-गङ्गा वेग प्रस्तर खण्ड और मृतिकाको बहा कर ले जाता है। मेघना, वा ब्रह्मपुत्र. हरिणहाट पुस्फर, मुजोटा वा काम्ना वेगको न्य नता और माध्याकर्षणके प्रावल्यमे प्रस्तरखण्ड बड़पुग, मलिन, रायमगल वा यमुना, गली । सिवा और मृत्तिका तल्लदेश पर गिरता है। इसी कारण नदी इसके अनेक शाखाएं भूखण्डमें प्रविष्ट हो गयो हैं और जितना ममुद्रके समीप पहुंचती है, गभीरता घटती है, नदीमुख न होनेमे अपेक्षाकृत गभीर हैं। गङ्गाको प्रकृत बीचमें रेत पड़ जाती है। वर्षा ममय उमके जपर लम्बाई मागरतीर्थसे ७५४॥ कोम तथा मेघनाके मुखसे रेत जम जाती है। इमी प्रकार रेत इतनी उठ पाती ८४० को है। ग्रीमकालमें माधारणतः गंगाका विस्तार कि नदी वहां तक नहीं पहुंच पाती, उसके पास कहीं पर आध मोल, कहीं पर एक मोल और कहीं पर, होकर अपना राम बनाती और एक ओरको राह सोउ दो मोलसे कुछ अधिक रहता है। समुदाय गङ्गा जिस करके दूसरी ओर दिखाती है । इमी प्रकार नदीके मुख में स्थान पर अपना अधिकार जमाये हुए है, उसका क्षेत्रफल मागर वक्ष पर प्रकागड़ भूखण्ड निमित होता है और ३८११०० वर्ग मील है । वर्षाकालमें नदीका जन्न कितना डेल्टा कहलाता है। भूतत्ववित् अनुमान करते हैं, को बढ़ा करता है। ममुद्र के निकटवर्ती प्रदेशमें ज्वार जिस स्थानमें गङ्गा पदमासे स्वतन्त्र वारयापित और भाटा होता है। ममय समय जिम स्थानमें जितना है, उसी स्थानसे गङ्गाके डन्टा पारी खान जान बढ़ता, उमका परिमाण निम्नलिखित है। पाजतक जहां ममुद्र है, समस्त प्रदेश पहले ममुद्री वर्षाकाल ग्रोमकाल था । वही समुद्र आजकल मनुष्यों के वासोपयोगी भूमि बग गया है। इस समस्त जनपदको मुष्टि गङ्गाकी ही इलाहाबाद कपाका फल हैं। हिमालय अञ्चलको मट्टोसे उनका बाराणसो ४५ . निर्माणकार्य सम्पन्न हुआ है। कलकत में नदीको कहलगांव २८ ६ २८ ३ मृत्तिकाके २५० हाथ नीचे जीवकराल काष्ठ, कोयला जैलंधी २५ ६ आदि निकलते हैं। प्रायः ८६ वर्ष पहले गाजीपुरमें कुमारखाली २२६ एक समय परीक्षा करके देखा गया कि वहां पर प्रति अग्रदीप २३ ८ २३ वष गङ्गा ६३६८०००० टन मृत्तिका लाकर जमा करती कलकत्ता (भाटाके समय)७ हैं। एक टन (२७ मन १८ मेर )के बराबर है। इसी- ढाका से समझ पड़ता, कितनो मृत्तिका गगाम प्रतिवष हरिद्वार में गङ्गाकी चौड़ाई बहुत कम है। वहां ७००० बहतो है। गंगाका उत्पत्तिकाल सेहो यह काम चल प्राबवसीमें 4 राजमहल मब समय २०७०.. पर आता है। इससे कितने स्थान पर कितना नवोन समय 2..0 घनफुट जल प्रति सेकेण्ड निक- भूमि निर्मित हुई, वह कोन वर्णन कर सकता है! लता विरोधी नारकी देखा गया है कि इलाहाबादले गगा जिस राहसे चलो है, उमका पाण्वस्थ प्रदेश सम- बाराणसी तक १५० सीरयष प्रति कोस १ फुटके हिसा- धिक उव्वरा है। गंगाका रेतोला जल दूकूलम' प्रवा- VoI. VI. 25 NNN Om