पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/१०३

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मदम्पद महसीन (मुखा-महम्मद महसीन (हानी) ५ युसुफ अलेग्याफे आधार पर, हुमम-य नाज, लेला; पास रहती थी और सपरिदार दिलीके राज-मासाद, मजनूके आधार पर परिसुरत तथा मसजन-उल-माना। उन्हें रहनेका हुकुम मिला था। सपैकार और सिकन्दरनामाके माधार पर १० दगार ____ कालभमसे ये पलीके अभिभायानुसार मुर्गमका श्लोकोंमें एक मसनयिकी रचना की । इसके सिया रन ताजिया इनानेके लिये वादगादसे मामाले हुगली में ही धनाये हुए दो 'दीवान' तथा दो 'शाकि-नामा' अन्य भो भा कर रहने लगे। औरगजेदने इन्हें पगोदर, चितपुर मिलते हैं। एक समय यह एक हजार साथियोंके साथ आदि भौर भी गांव जागीर, दिघे 10 मुगल-साम्राज्य- परसियाफे राजा अवासके दरबार में उपस्थित हुए थे। फो समृद्धिका त्याग कर इन्होंने हुगलीमें एक माम- महम्मद महसीन-(मुला)-काशानवासी एक कवि । इन्हों. : थाढ़ा बनानेका निश्चय किया। तदनुसार जाफर पम्या मे तफसीर मुफो नामक एक अन्ध लिया था। नामक एक नईके सौदागरसे वर्तमान मामयाको महम्मद महसीन-पैलानीके एक विद्रोही तहसीलदार। जमीन उन्होंने परीद की। पहले यहां जाफरको कोठी इन्होंने इमदाद अलीफे साथ १८५७ ई०के गदरमै माग ' मौर थानरो चोरीका इमामवाला था। ११०८९०में लिया था। इसी कारण अग्रेजोंने इन्हें पकड़ा तथा दुल असवावके साथ यागाने उम मकानको परोद दुसरे पर्व यान्दा नगरमें फांसी दे दी। लिया और नागिरगाजि हुसैनके नाम पर एक इमाम- मदम्मद मदसीन-(हाजी)-हुगलोके एक विख्यात मुसल. याड़ा बनयाया। अभी भी यहां इमाम हुसैनी पूजा मान फकोर। प्रभूत सम्पत्तिके अधिकारी होने पर भी होती है। पे विषयवासनासे परे थे। इनका स्मजातीय दोन मागा मताहारने माना शेष जोपन सुमसे मदों दु:खियों के साथ प्रेम तथा निस्वार्थ दान देख कर लोग बिताया। अपने जीवनकालमें दो इन्होंने एक तायीज मपनी इन्हें श्रमाको टिसे देखते थे। इनके सम-सामयिक। प्यारो लड़की जन्नूजानको दे कर कदा पा, कि इसे मेरे हुगलोके विण्यात धनी नयाय यां जहानखां इनकी मरनेके "हले न पोलना । भागाफी मृत्युफे बाद लड़कीने प्यातिके सामने फोफे पड़ गपे थे। वायोजको पोला।तायोज एक दानपत्र था जिसमें लिया दाजी महम्मदका जन्म जिस सम्रान्त मुसलमानवंश- था- मेरी फन्या मन्नूजान दी मेरे मरनेके बाद सारी में हुआ था उसकी वंश-व्याख्या इस प्रकार है।- सम्पत्तिको उत्तराधिकारिणी होगी। यागाको नाम ___ भागा फजल उला नामक एक धनी पारसी १८वों। यह दानपन म कर हाजी फैजुलासे सगाई कर ली। संदीमें व्यापार करने के लिये मारतय शाये । इनके पुत्र ! इसी दम्पतीसे महम्मद महसीनका सन्म हुमा । कोई को दाजी फैजुल्ला हुगली तथा मुर्शिदायादमें अपना पाणिज्य। कहते हैं, कि इनका सन्मस्थान मुजिंदाबाद था। पिता. फैला कर व प्रतिभाशाली क्षे उठे.ये, किन्तु फालचसे को मृत्युके बाद इनकी माताने गुगलोमे मा कर मता. इनका धन नष्ट हो गया और मन्तमें ये दरिद हो गये। हारसे सगाई की थी। अतपय इन्द हुगलीम दो आ कर रहना पड़ा था। इसी! फिर यह मी मुगा जाता है कि १७३२ में इनका समय एक घनशालिनी रमणोंके साथ इनका प्रेम दो जन्म हुमा था। युवाकालमें इन्होंने सिमीती नामक गया। पकमालयीके निकट शिक्षा पाई धो। मौलपीमे दा. 'यहरमनी किस यंशको घी और किस प्रकार हुगली.! भ्रमणका पृत्तान्त मुन कर इन्हें भी देश पर्पटनको इच्छा में मा कर रहने लगो, यह पतला देना यहां पर भाय- हुई। मुर्शिदाबादमें कुछ दिन पनेफे बाद ये पासिया श्यक है । इस्पादन नगरफे प्रसिद्ध मतादारयंगमें ! तथा भरव गपे। सरदी और फारमी माइनको मतादार नामक एक प्रसिद्ध धार्मिक भागाने जन्म लिया का है, कि भागा मार रात धा, ये मोरगजेब वादनाइके यहां कोराध्यक्ष थे। याद- गौरंग करने में । पुरसारणपोंने गौहर दि . शाद ऐसे विश्वासी थे कि कोरकी चाभी भी उन्होंगे । दारो पाई थी। इस मानरमा निर्णय करना मीत्र है।