पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/११०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१०० ... . महम्मद शफिया-महमद शाई .. महम्मद शफिया-मेर-उल-वदीयात् नामक इतिहासके । जेपके पास लिख भेजा और यह भी जताया कि काजोने प्रणेता। दिल्ली नगरमें इनका हुआ था। इनके इतिहास- क्षित हो कर यन्दायनको मार डाला है 1. बादशाहने उस में मुगल सम्राट अकबरसे ले कर नादिर शाह तक पत्र पर अपने हायसे 'काजी शरफ खुदाकी तरफ' भारतवर्ष में जो सब घटनाएं घटीं उनका सविस्तार ऐमा लिख कर भेज दिया।. . वर्णन है। मुगल सम्राट महम्मद शाहके राजत्वकाल औरङ्गजेवके मरने पर काजीने नौकरी छोड़ दो। में किसी सम्भ्रान्त उमरावके कहनेसे यह प्रथ लिस्मा फुलो खांके लाख प्रार्थना करने पर भी उन्होंने नहीं. गया था। माना। महम्मद शरफा-बङ्गालके एक मुसलमान काज़ो । घे अपने महम्मद शारीफ हुकानी-मायनक पदिल' नामक रस- पाण्डित्य, धर्मशान, साधुताके लिये विख्यात थे। मय काण्यके प्रणेता। यह प्रथ १६८५ ई०में समाप्त हुआ सम्राट औरङ्गजेबने इनके सद्गुणोंका विषय पा फर इन्हें था। काजी बनाया। मुशीद कुली खां अपने विचार कार्यमें महम्मद शरीफ (खाजा )-परसियाके राजा १म शाद हमेशा इनसे सलाह लिया करते थे। | तहमाप्प सफारिरके मंत्रो। १५३८ ई०में इनको मृत्यु ___एक समय किसी मुसलमान फकीरने चूनापालीके हुई। जमींदार गृन्दावनसे भिक्षा मांगी। वृन्दावन फकोरके महम्मद शाकि--एक मुसलमान ऐतिहासिक । ध्यवहार पर बहुत गुस्साया और उसे दरवाजे पर- मुस्ताइद खो देखो। से निकाल दिया। बादमें यह वृन्दावनके घरके सामने महम्मद शाला (शेव )-'रिहार-चमन' नामक प्रन्धक हो कुछ ईटोंसे एक दीयार बना फर उसीको मसजिद प्रणेता। समझने लगा | अब यह लोगोंसे उस मसजिदमें था महम्मद शाला ( मोरकाशफो ) एक मुसलमान कयि । ये कर नमाज पड़नेका अनुरोध करता फिरता था। जब सम्राट जहांगीर और शाहजहांके यहां पाले पोसे गये। कभी वृन्दावन घरसे निकलता, उसी समय यह धड़े थे। इनका बनाया हुआ मजमुमा राज नामक तजिबंद ' जोरोंसे अजान देता था। नथ १६२१ ई०में समास दुभा। १६५० ई०को आगरेम। इस पर वृन्दावन पड़े बिगड़े । उन्होंने उस दीवार- इनकी मृत्यु और कत्र हुई। फो तोड़ फोड़ कर फफोरको वहांसे मार भगाया। इस महम्मदशाला कम्यु-अमलशाला नामक प्रयके प्रणेता। पर फाकीरने मुशीदफुलीके पास नालिश की। सभा. महम्मद शाला (मिर्जा )-ताविजयासी एक उमराय। ' घिटित प्रधान फाजी शरफने वृन्दायनको प्राणदण्डको १५६२ ६० परसिया छोड़ कर पे भारतवर्ष माये। इन्हों। माशा दी। किन्तु कुली खांफी प्राणदण्ड देनेकी विलकुल दिल्लीमें सम्राट अकबरसे मेंट को। सम्राट्ने इनको इन्छा न थी। उन्होंने काजीसे यात अनुनय विनय ) सम्मानरक्षाके लिये पहले इन्हें मनमफे पद पर पोछे . किया कि प्राणदण्ड छोड़ फर कोई दूसरा दण्ड उसे गुजरातके शासक पद पर नियुक्त किया। इस समय मिलना चाहिये। इस पर धर्मावतार फाजीने कहा, कि महम्मदने सिपाहीदार वांकी उपाधि प्राप्त की। १५६६ अपराधीके प्राण निकलने में जितना समय लगेगा, फेयल ई०में युवराज मुरादफे मरने पर युवराज दानियलने उतनेही समयको अपेक्षा की जा सकती है। पर दूसरा निजामसे अहमद नगरका अधिकार प्राप्त किया तथा दण्ड नहीं मिल सकता। सिपाहीदार खांको यहांका शासनकर्ता बनाया। फुलो सांके सब यत्न निष्फल ह५। मुल्तान अजी महम्मद शाला (मिर्जा)-सताएफ खया' नामक प्रय. मुम्सानने भी बादशाहने पृन्दावनकी जान धकसीम के प्रणेता। इस प्रथमें उन्होंने पूर्ययत्ती महाकवियोंकी मांगी ; पर पानि तो पहले हो वृन्दावन के प्राण तोरसे, अच्छी अच्छी फयिताये संग्रह को है। ले लिये धे। अजानुस्सागने यद इत्या-सपाद औरत महम्मद शाह--दिल्लोफे पफ मुसलमान बादशाह । ये