पहासानार-महाकान .
मiतार-प्राचीन जनपदभेद । महाराज समुद्रगुप्तने प्रस्तोहोरसपिनी नाम नगरी भार ।
यहाँ मधिपनि व्यानराजको परास्त किया था। . . रसन्तीय नुधा घोतः प्रासादरमपनीन् ।
महाकाय ( सं० पु०) महान् फायोऽस्य । १ नन्दी, शिवका पस्यो समति विग्नेशो मा सम् ।
पारपाल । २ इस्ती. दाधी। महान् कायः शरोरमिति ।। शिथिनीनारानिराराम्परानो गपुः ॥" .
३ पृन भरीर । ( लि. ) ४ वृदन् शरीर-विशिष्ट, यड़ा
' (मारित्ना० ११॥३१-१२)
शरीरवाला।
। प्राचीन नाटक आदि पुस्तकों में भी उन्नपिनी निय.
महामाया ( मं० स्त्री० ) पुमारानुवर मातृविशेष। लिङ्गका उल्लेख मिलता है। महाकवि कालिदास
महारहार ( स० वि०), मुहन्, बहुत वटा । २ वृहदा अपने मेघदरा प्रियाविरह-विधुर या नारा भनी
फार, यदा कदवाला।
पनीम समाचार लाने के लिये मेघको अलकापुरो भेती .
महाकारण ( स०ए०) सर्व कर्मका नियन्ता वा कारण : समय उजगिनीफे इन महाकाल शिवको प्रणाम करके
भूत परमेश्वर ।
जानेको कहा है।
महाकात्तिकी (स० सी०) महनी चासी कात्तिकी चेति ।। ___ याम्य नाटकादि प्रन्यों में इस शियलिए भूमि
रोक्षिणी नक्षत्रयुक्त कार्तिक पूर्णिमा ।
महाकाल, महाकालनाय, महाकाल निकनग, महाकाल '
'प्राजापत्यं यदा भृक्ष सोतस्यां नराशिः।
यपु आदि विविध नागोसे सम्योधन किया गया है।
सा महापार्तिको माना देशानामपि दुर्नमा"
" गायनी देर
(पापु० २१३ २० ।
____ हाफगि भयभूतिने माने उत्तर गगरित नाटाकी
' कार्तिकी पूर्णिमाके दिन रोहिनी नक्षवका योग
प्रस्तावनामें कालप्रियनाथ नाममे मामयनः इन्ही
महाकालका परिचय दिया है,-" मनु मगरी पास.
होनेसे महाकार्तिकी होती है। यह दिन देवताओंके ।
लिये भी दुर्लभ है। इस दिन स्नान दानादि करनेसे मियनाथस्य मागायामा मिग्रार नियाम
. (उत्तररामनार 4)
६ अक्षय पुण्य होता है।
उजयिनी नगरी निमा पूर्ष मोर पिकान मुत..
महाकाल (स.पु.) महांश्चासौ कालश्चेति कर्मधा० ।।
। घरबारक पूर्व दक्षिण इन महाकालका प्रकार मन्दिर
१विणुस्वरूप अमएड दएडायमान फाल। असे-
विराजमान है। ५ महामारनाक नोयिशेष। म ,
या महानत्यात्" (गिदावाहप) Mitan मंपाय कर कोटिनी मार्श
२ महादेय। सर्वभूतका कलन गर्शत संहार करते।
" करनेमे अवमेध यसका फल हो ।
हैं, इससे इनका नाम महाकाल है।
"महारानं सो मच्छानिनो निनामः। . . .
"सनात् समयाना महाकालः प्रनिगः ।
पोटोनोमुराय पर समेत् ॥"
महाकालस्य फल्मान् समाना निया परा""
। ( गार ) .
(महानिया ४१३५) ।
६ मनायित । इसका योग--TRET, शिया
३ प्रमाणविशेष। ( मेदिनी) ४ उaपिनोस्गित कारमप. काफमई, देवदालिका, झाला, पलिया,
नियलिङ्गभे। फगासरितसागरमे लिग --उत्र.! सलह गोपकारनि। .. .
यिनी मगर पृष्पीका भूपण है। यहांका सुधाधयलित "मनोन दिशारिणा :
सौम्यसाधायलो मौन्दर्य गमेमानो द्रकी अमरायगी- मान 4UR" (THB)
का परिदास कर रही है। मार सो पागवार मिरपुस । न त मम ।।
फैलाशनाय मागको भूल कर श्य यहां महासाल. फालिशापुरात दिवान गरके गोपाल
रुपने गिरा रहे हैं।
के लिये निको मा दो। माग मेपार army . .
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/१३०
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