पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/१३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

महागुरु-पहाग्री शानानप:-"गुगरमिद्विजातीना पांना मादायो गुरुः । महागुल्मा (सं० नोe ) महान गुमो पस्याः । सोमपाती, पतिरेको गुरुः स्त्रीयां सर्वश्राम्यागतो गुरुः ॥" सोम सता। पक पदेन दत्तस्त्रीणां पितुमातृष्यात्तिः। सपिएइमरण महागुहा ( मो . ) महती गुहा यम्याः । पृश्निों , प्रत्य-आश्वलायन:--विरास अक्षारलयणामागिनः पिठयन। स्यु दशराव महागुरुपु । भावार्यश्व- महागृष्टि (सं० रनो० ) उप ककुदयुना गामो, पद गाय उपनीय ददष्ट्येदमाचायः स उदाहतः । इति यायल्स्पोनः मिसभा पाणी तन्मरणे निरानाशीचयन नैतार नियमः।" महागोधूम (सं० पु० ) मदारघासी गोधुमश्चेति । तु (शुद्धितत्त्व) । गोधूम, बोदानेका गेहूं । महागुरफे मरने पर एक वर्ष तक कालागीय होता गोधूमः गुमनाऽपि स्पापिगिधाम पवीतिः। सपिण्डीकरण होने पर यह अशीच जाता रहता है। महागोधूम हस्यायः पावागा गमाग" (मामा) यदि एक में सपिएडीकरण न हो, तो जब तक गोमER मा समतो RE- सपिएडकरण नहीं होगा, तब तक अशीय रहेगा। का होता है। बदष्टे, दानेवाले गेहको महागोम यदि किसीका एक घर्ष में अपकर्ष सपिएडोकरण हो, मी कहते हैं। यह मधुर रस, गीतयो यातन, पितनागप, सपिएडीकरणके बाद ही कालाशीच दूर होगा। पापत् : गुरु, कफजनक, शुपायक, पलकारक, स्निग्ध, मान- पूर्णा न पसर:' इस शास्त्रोक पाय द्वारा यह जाना' सम्धानकारफ, सारक मोमोगुणपदकारोरका उपमय जाता है, कि एक ही ययं विहित काल है, इसास यप कारक, पर्णप्रसादा, रविनक और शरीरका स्थिरता. कहा गया है। विशेष विधानानुसार जव सपिण्डीकरण । सम्पादक माना गया। इसमें सो कारागक गुण होगा, तमो अशीच जायेगा। महागुमनिपातम किसी। बतलाया गया है, यह सिर्फ मपे गेम, पुराममें नहीं। काम्यकर्मका अनुष्ठान नहीं करना चाहिये । मलाया। (भावम.) गोधूम रेमो। इसके आस्य॑िज्य अर्थात् त्यिकया कार्य, पाराहित्य, महागोपा (सं०वी०) गारांवा, मनन्तमूल । ग्रलयं, अन्य व्यक्तिका धाद्ध, परानमोजन, गन्ध, माल्य, । महागौरी (सी ) नदीभेद, पराणानुसार पानी 'मेशन, तीर्थयाता, पियाद, मध्यापन, तर्पण, शिवपूना, जो पिध्य पर्यससे निकली है। ग्राशया, धाद्ध और देयकायं इन सब फर्माका अनुष्ठान गरिसोया महागौरी दुर्गा पानाहिरा तथा । विशेष निषिद्ध है। गिनगदमावास्या न पुपपरा शुभाः ।" "महागुरुनिपानेच काम्य किदिन वाचत । (मापडेयपु. ५६.२५) मात्विज्य महाचर्यच पावत् पूषों न यस्या ___२ दुर्गा। भत्पाद परामय गनी माझ्या मेधुन । महामरिया ( स० पु० ) यह भोपा जिसमें संपनसे रोग पद् गुरुरावे व पायत् पूर्ण न इत्यरः॥ } निश्चित रुपमे समाप और बदने म पायें। मत. सो पापी विधात्यामापन सप्पन्तपा। प्रग्थियुक्त फोटभेद, पक्ष कोदा जिसमें मौगाट हो। संयरन पुर्ण महागुरुनिातन । महामह (सं० पु० ) राहु । भपिच-विशत: शिपूजा प्रस्तावितको मिः | महामाम (सं० पु०) १ मदामनमा श्रेष्ठ पुरोका मद। पावर परसरप मनसारिन चाचरेत् ।। २ काश्मीरका एक प्राम | ३ मिहलमीपकी मपान मागपनिमा सु काम्य विविध पाचरेत् ।। राजधानी। महायुगनिराने गुम्य शिविर पाचन् । मदामीय (म. पु. ) महतो दीप प्रोमा सम्परा पस्य। - मारियमय भा. देवपुर पन॥" १ ।२गिष, महादेव। ३ गिय मनु. . . ( स) गरका नाम । ५ पुरामानुमार र देना नाम ।