पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/१४६

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२४ महात्याग-महादान महात्याग (स'पु०) १ वदान्यता, वदनियत । २ दान ! ! महादशमूलतैल (सली०) शिरोरोगका एक तेल। ३ निस्पृहता। प्रस्तुत प्रणाली-कटुतैल १६ सेर, काढ़े के लिये दश- महात्यागमय ( स० त्रि०) वैराग्ययुक्त, सर्वत्यागी। मूल १२॥ सेर, जल ६४ सेर, शेष १६ सेर, विजौरेका महात्यागिन् (सं० वि० ) त्यागशील, जिन्होंने संसार रस १६ सेर, अदरकका रस १६ सेर, धतूरेका रस १६ से माया ममता आदि एकदम छोड़ दिया है ।। २ सेर ; चण के लिये पीपर, गुलञ्च, दामहरिदा, सोयां, शिय। पुनर्णया, सोहिजनकी छाल, पिपलिका, फटकी, करज. महात्यागी (सं.लि.) महात्यागिन देखो। चीज, कृष्णजीरा, सफेद सरसों, वच, सौंठ, पीपर, चिता. महानिककुद (सपु०) स्तोमभेद ।। मूल, कचर, देवदारु, विजवंद, रास्ना, दुरदुर फायफल, महात्रिपुरसुन्दरीकवच ( स० क्लो०) मन्त्रयुक्त धारणो-: संभालूका पत्ता, चई, गेरुमट्टी, पिपरामूल, शुष्कमूला, विशेष । यमानी. जीरा, फुट, वनयमानी और विद्या मूल महाविफला (स. स्त्री० ) पहेडा, आंवला और हड़ इन ' प्रत्येक १ पल। इन सय द्रव्योंको तेलमें पका कर पीछे तीनोंका समूह । । रोगके अनुसार उसका प्रयोग करना होगा। इसका महात्रिफलाधघृत (सं० क्ली०) नेत्ररोगको घृतोपध- सेवन करनेसे कफ, खांसी और शिरका दर्द जाता रहता विशेष । प्रस्तुत प्रणालो-धो ४ सेर काढ़े के लिये है। यह प्रत्यक्ष फल देनेवाला तेल है। त्रिफला और अइसका रस ४ सेर अथवा अहसका ___(भैषज्य० शिरोरोग०) मूल २ मेर; जल १६ सेर, शेष ४ मेर, भृङ्गराजरस ४ सेप महादाडिमायधृत ( स०सी० ) प्रमेहरोगनाशक घृती: शतमूलीका रस 8 सेर, वकरीका दूध ४ सेर, गुलञ्च पधभेद । प्रस्तुत प्रणाली--धो ४ सेर काढ़े के लिये रस ४ सेर गथया पहलेके जैसा उनका काढा ४ सेर ले अनारका घोज २ सेर, जल १६ सेर, शेष ४ सेर', यय- कर पुनः पुनः उनके साथ पाक फरे। पीछे उसमें । | तण्डुल २ सेप, जल १६ सेर शेष ४ सेर, शतमलोका पीपर चीनी, द्राक्षा, त्रिफला, नीलोत्पल, मुलेठी, छोर- छ। रम ४ सेर, गायका दूध ४ मेर। चण के लिपे दान, फकोलो, गाम्भागको छाल और कएटकारी कुल मिलो पिडखजूर, त्रिफला, रेणुक, जीवक, अपभक, काफला, कर १ सेर ऊपरसे डाल दे। इसका सेवन करनेसे क्षीरकाफला, मेद, महान्य, ऋद्धि, पृति, पदाय, हरिद्रा, अदृष्टि आदि नेत्ररोग नष्ट होते हैं। दामहरिदा, मजीठ, घुट, इलायची, भूमिकुष्माण्ड, विन- महात्रिशूल (सली०) विशालविशेष। यंद, शिलाजतु, दारजीनी, सरसफी जड़ और काला . महाद' ( स० त्रि०) वृहत् दन्तयुक्त, जिसके बड़े बड़े अयरक प्रत्येकका चर्ण ३ तोला। घृत पाकके नियमा. दांत हो । (पु०)२ राक्षसभेद । ३ विद्याधर । नुसार इस घृतका भी पाक करना होगा। रोगके तार- महादएड ( संपु०) महान् एण्डस्ताडनसाधनमस्य । १ तम्यानुसार मात्रा स्थिर करनी होगी। इसका संपन यमदतभेद । महान् दण्डः ॥२ यमके हाथका बड़ा दण्ड । करनेसे श्लेष्मज और सन्निपातज पीस प्रकार प्रमेह 'यस्माज्जानन स मन्दाज्मा मामसौ नोपसर्पति । जाते रहते हैं। (भैपग्य० प्रमेहाधिका० ) तस्मातस्मै महादयो धाय॑ स्यादिति मे मतिः ।" महादान ( स०क्लो० ) मदश्च तत्दानीति फर्मधा। ( भारत १९४३७) तुलापुरुषादि सोलह प्रकारका दाग। हेमाद्रिके दान. महादण्डधारी (संपु०) यमराज। मएडमें इस महादानका विस्तृत विवरण लिखा है। महादस्त ( स० पु०) महाश्चासौ दन्तश्चेति । १ गज-! सोलह प्रकार के दान ये सय हैं... पन्त, दाधी दांत । पर्याय-गादएड। २ पृहहएड- "चायन्नु गदानानो नुनामुमति। माल, बढ़ा गंडा। ३ महादेव। रिपपगर्भदानय नझापरः तदनन्तरम् ॥ महान्ता (सं० स्त्री०) नागवला, नागये।