पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/१५४

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- पहानस-महानाद महानस (सं० क्ली०) महय तत् शानश्चेति ( अनोऽम्मायः । एतदेव यदा सर्वः पताकाधान के तम् । सरसा जातिसंशयोः। पा ४६४) इति संज्ञायां टन्। म दभिधीरा महानाटकभूचिर ॥ . राधनगृह, पाकशाला, रसोईघर । सुधृतमें महानसका। एतदेव नाटकं यथा पातरामायण" - (साहित्यदः। विषय इस प्रकार लिखा है-प्रशस्त दिशामें और प्रशस्त नाटकके लक्षणोंसे युक्त दश अकोबाले नाटकको" स्थानमें धनशाला बनानी चाहिये। उसमें हवा आने ; महानाटक कहते हैं। जाने तथा धुआं निकलनेके लिये दो चार झरोखे भो, २ स्वनामस्यात हनूमद्रचित रामवरितप्रन्यविशेष। अयश्य होने चाहिये। रन्चनरात साफ सुथरा होना यह अन्ध अति मुललित है। चाहिये। जहां तक हो सके, अपने हो आदमीको रसोई "एप धीलहनूमता विरचिते शीमन् गहानाटफे .. बनानेमें नियुक्त करें। आहार हो प्राणियोंकी स्थितिका वीरशीयुतरामचन्द्रचरिते प्रत्युड ते विक्रमः । मूल है। अतः राजाको उचित है, कि ये पाकशालामें! मिश शोमधुसूदनेन कविना सन्दर्भ सोते फुलीन, धार्मिक, स्निग्ध, सर्वदा कार्यतत्पर, निर्लोभ, स्वर्गारोहननामकोऽत्र नवमो यातोऽद एयेत्यसो ॥" । सरल, कृतज्ञ, प्रियदर्शन , क्रोध, कार्कश्य, मात्सर्य। (महानाटफा शेर लोग). मत्तता और आलस्यवर्जित, जितेन्द्रिय, क्षमाशील आदि । महानायो (सं० स्रो०) महती चासो नाही चेति । फएटरा, सद्गुणयुक्त व्यक्तिको नियुक्त करें। महानसकी परि , मोटी नस। चर्या करनेवालों में भी शुचि, दयाशील, दक्ष, विरेत, प्रिय. महानाद (स.पु. ) महाद् नादोऽस्य । १ हस्ती, हाथो। , दर्शन और पवित्र, नख और केशहीन, स्नान, द, संयमी । २ वर्षक मेघ, बरसनेयाला बादल। महाश्वासी नार- आदि गुण रहने चाहिये। (मुभुत कल्पस्था १ अ०) : श्चेति । ३ महागन्द । ४ सिंह । ५ कर्ण, कान । ६ उन ___पाराजेश्यरमें लिखा है-घरके अग्निकोणमें पाक- ' ऊंट । ७ शङ्ख । ८ फाइलयाध, बड़ा टोल। महादेव, शाला यनाये। उसमें झरोखे, चूल्हे मादि अयश्य रहे। शिय। (वि०) १० महाशम्दयुक्त। मिट्टोके धरतनको अच्छी तरह साफ कर उसमें पाक "तत्कालीय प्रतिमं महोग्गनिषेवितम् । फरे। यों तो प्रायः सभी धातुके बरतनमें पाक किया जा अभिगम्य महानाद तीधनेर महोदधिम् ।।" सकता है, पर मिट्टोका बरतन हो पाकके लिये श्रेष्ट बत (रामा०४|४६) लाया गया है। मिट्टोके यरतन यदि न हो, तो लोहेके महानाद-वियेणोसे चार फोस पश्चिममें स्थित एक वरतनमें पाक कर सकते हैं। लोहे के बरतनमें पकाया गएड प्राम। यहां जटेवर शिय. और पशिष्ठगा नाम टुमा अन्न मानेसे चक्ष रोग और अर्श विकार जाता। को एक पुण्यसलिला पुष्करिणो है। जनसाधारण म रहता है। कांसेके वरतनमेंका पाक हितकर, ताम्रपान-1 कुएडको गङ्गाके समान भक्ति करते हैं। यशिष्टगङ्गा का भालपित्तवर्धक तथा सुवर्ण और रौप्यपालका पाक) और शियस्थापनादिके विषय में यहां एक उपानपान रम' श्रेष्ठ गुणयुक्त और सकलदोषनाशक है। प्रकार प्रालित है, एक समय इस गांयमै एक दक्षिणा- महानसाध्यक्ष ( स० पु०) महानसस्प अध्यक्षा ! रस घर्स शंत्र गिरा । हया लगनेमें उससे एक पहा . पत्यधिकारी पुरुष, रन्धनशालाका अध्यक्ष जिसे रसो. शम्द हुमा जो देयताओं के काग तक पहुंच गया। द . इया कहते हैं। मुन फर देवगण यहाँ मा पहुँने और मटेयर निय महानसिकायोदृ (सं० पु० ) राजगालाधिस्त पुरुष, तथा मिष्ठालाको प्रतिष्ठा की। उसी महानादसे ..' रसोइया। इस गांयका महानाद नाम पहा । यहाँ योगियोगी कुछ महानाग (सं० पु०) मुरपुन्नाग पक्ष । कुरियां भी देगी जाती है। बौद्धोंके समय यहां मगर महानाटक ( को०) महश तत् नारकनेति। ।। वीरश्रमण रहते थे। आज भी पहा धर्मठाकुरका 'शात नाटफपिशेष। इसका लक्षण- होता है।