पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/१६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

. : महाबलिपुर . मण्डप है। यह तपोमएडय ६६ फुट लंबे और ४३ फुट | उसीके जैसा एक दूसरा रथ दिखाई देता है। उसकी ऊंचे एक बड़े पत्थरका बना हुआ है। इसका भास्कर- लम्बाई १६ फुट, चौड़ाई ११ फुट और ऊंचाई २० फुट कार्य देखने लायक है। भारतवर्ष में ऐसा,कहीं भी नजर है। · तीसरे रथका आफार भिन्न प्रकारका है । इसकी नहीं आता। स्थापत्य और शिल्पविद् फागुसन्साहबने लम्बाई ४२ फुट, चौड़ाई २० फुट और ऊंचाई २५ फुट है। इसको गठन देख कर लिया है, कि यहांके स्थापत्यमें | इसके बाहरी भागमें अच्छी कारीगरो है, किन्नु भीतरी ' नाना प्रकारका प्रभाव दिखाई देता है। इसकी यदि | भागमें एक जगह ऐसा है मानो किसी देव दुर्घ- सम्यक् आलोचना की जाय, तो भारतीय देवतत्त्वका रनासे समस्त अंश पूरा नहीं होने पाया। भूमिकम्पसे एक अभिनय अध्याय बन सकता है। ठोक किस समय अथवा किसी और कारणसे यह फट गया है। अन्तिम . यह पुराकीर्ति सम्पन्न हुई है, इसका पता लगाना कठिन | रथ देखने बड़ा हो कौतुकप्रद है । यह २७ फुट लेवा, है। पर हां, इतना जरूर कह सकते हैं, कि १०वों २५ फुट चौड़ा और ३४ फुट ऊंचा है। इसके बाहरी शताब्दीसे दो एक वर्ष पहले इसका निर्माणकार्य शेष भागमें यथेष्ट स्थापत्य मौजूद हैं, किंतु भोतरी भागमें हुआ है। रास्तेके किनारे पत्थरके सलके निकट एक उतनी कारोगरी नहीं है। किसी किसीका अनुमान है, दल वानरको मूर्ति है। पत्थर पर धानरका स्वभावो कि ऊपरो भाग शेष हो जाने पर पीछे कही यह फट न . चित क्या ही चमत्कार हावभाव खींचा गया है। इसके जाय, इस भयसे किसीको भी भीतर जा कर काम करने: समीप दक्षिण ओर जहाँ बहुत-सी गुहा खोदित हैं, उसी-1 का साहस नहीं हुआ। के मध्य ध्यानस्थ विराट् पुरुषकी मूर्ति मौजूद है। उक्त चारों रथपे कुछ दूर अर्जुनरथ अवस्थित है। मूर्तिको लम्बाई डेढ़ हजार फुटसे कम नहीं होगी। ऐसी | इस रथकी बनापट उन चारोंसे कुछ और तरहकी है। बड़ी ध्यानस्थ मूर्तिको भारतवर्ष में किसीने भो नहीं। यह रथ सत्र या गोपुर किस भाव बनाया गया है ठीक देखा होगा। इससे बहुतेरे दैत्यपति यलिकी मूर्ति और ठीक नहीं फह सकते । कोई कोई समझते हैं, कि ये फोई जैनकीर्ति समझते हैं। सभी रथ बौद्धोंके विहारके ढंग पर बने हुए हैं। . . . . इस विराट मूत्तिके समीप १४-१५ गुहा और मन्दिर उक्त अपूर्व रथोंके स्थापयिता कौन है ?. उसका हैं। प्रत्येक गुहा एक एक ऋपिका आश्रम समझो आज तक भी पता नहीं चला है। इन सब रथोसे जाती है । इसमें कारीगरी और आधुनिक शिल्प ठों या ७यो' सदीके अक्षरों में सोदित शिलालिपि नैपुण्यका अभाव नहीं है। भविष्कृत तो हुई है पर उसमें रथनिर्माताका कोई.परि. ___फागुसन सावने लिखा है, कि यहांका समुदतोर-। य नहीं है। अभी प्रवाद है, कि कुरुम्बरोंने ये सब वत्ती पञ्चरथ ही सर्व प्राचीन और पुराकोतिका ज्वलन्त रथ बनवाये है। ये लोग पहले यौद्ध या जैन धर्मावलमी निदर्शन है। इस पञ्च रथमें एक रथ शेप चारसे यहुत थे। पोछे चालुक्य राजाओंके प्रभावसे शैव या वैष्णवधर्म. दुरमें है। उसके चारों ओर शैलमाला है, उसोको लोग ग्रहण करनेको वाध्य हुए । इतिहासकारोंका अनुमान . अर्जुनका रथ कहते हैं। इस अर्जुन रथको छोड़ कर है, कि चालुपय राजाओंके यनसे तथा उक्त फुरुम्यगणों- याको चार रथ उत्तर दक्षिणकी मोर पास ही पास इस के हाथसे ये सव रथ बनाये गये हैं। कोई कोई कहते भावमें खड़े हैं मानो एक बड़े पत्थर या पहाडको है, कि पुरम्य लोग पहले जिस ढंगसे अपना अपना घर काट कर वे तय्यार किये गये हों। उत्तर ओरवाला! .यनाते थे, .उसो. ढग पर उक्त रथ बनाये गये हैं। पहला रथ उतना बड़ा नहीं है। यह एक पर्णशा । नीलगिरिके पहाड़ी आज मी जिस ढंगसे घर बनाते हैं, मात्र है। इसका वाहरी घेरा ११ वर्ग फुट और ऊनाई भीमरथ ठीक उसो दंग पर बना हुआ है। द्रौपदीरय १६ फुट है। यह सम्पूर्ण होने पर भी इसके यीचमें देखनेसे ही मालूम होता है, कि दक्षिण भारतमें जिस सिंहासन या कोई देवमूर्ति नहीं है। उसके दक्षिणांगमें | प्रकार आटचाला बनाई जाती है उसी प्रकार इसकी भी