पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/१७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

. १५६ '- महाबलेश्वर-महाबोधिसकाराम

: महायलेश्वर वर्तमान कालमें एक प्रधान शैवतीर्थ | समुद्रमें गिरती हैं। अलावा इसके लोगोंको मुक्ति

समझा जाता है। स्कन्दपुराणमें सह्याद्रिखएडके महा | देनेवाले और भी ८ तीर्थ उत्पन्न हुए। इन माठ तीचौक वलेश्वरमाहात्म्यमें, कृष्ण माहात्म्यमें और पद्मपुराणीय नाम है ब्रह्मा, रुद्र, विष्णु, चक्र, हंस, आरण्य, मलापह .. 'कार्तिक-महात्म्यमें इस स्थानका माहात्म्य सविस्तार और शिवमुक्तिप्रद । लिखा है। यहां पर कोई स्वतन्त्र लिङ्गमूर्ति नहीं है। पर्वतके महाबलेश्वर-माहात्म्यमें लिखा है,- जिस जिस अंश हो कर धारा निकली है, यह यह अश पाशकल्पमें महावल और अतिवल नामक हो दलिष्ठ | लिङ्ग माना गया है। यहां पर आधुनिक कालमें एक बड़ा : दैत्य रहते थे। उनके उपद्रवसे पृथियो थर्रा गई थी। मन्दिर बनाया गया है। हरिहर ब्रह्मादि समो देवगण मिल कर उनका यध करने ___ वर्तमानकालमें महाराष्टोंके निकट यह एक प्रधान आये। दोनों दलमै घनघोर युद्ध चला । आखिर तीर्थ समझे जाने पर भी किसी प्राचीन पुराणमैं और तो 'विष्णुके हाथ से अतिवल मारा गया। भाईको मरा देख / क्या, ज्योतिर्लिङ्ग समूहमें भी इस महापलेश्वरका उल्लेस महाबलने अत्यन्त द्ध हो घमसान मायायुद्ध ठान नहीं है। शिवाजी और उनके वंशधरगण मन्दिरः दिया । देवताओंने वचावका कोई रास्ता न देख महा / संस्कार और देवसेवाके लिये काफी जमीन दे गये हैं। मायाकी शरण ली। महामायाने देवताओंको रक्षाके, उसी समयसे इस स्थानका माहात्म्य प्रचारित हुआ है। लिये महावलको मोहित किया। अब महावलने देवताओं- महायाध ( स० वि०) अत्यन्त प्यथा या यन्त्रणादायक! को सम्बोधन कर कहा, 'देवगण ! मैं तुम लोगोंसे संतुष्ट महावाई त ( स० त्रि०) महावहती सम्बन्धीय । । हो गया। जो इच्छा हो पर मांगो। हम लोगों के हाथसे महावाहु ( स० वि०) महान्ती पाहू यस्य । १ दीर्घबाहु, तुम्हारो मृत्यु हो, यही हम लोग चाहते हैं देवताओंने लम्बी भुजावाला । २ वली, वलवान् । (पु०) ३ धृतराष्ट्र । कहा। इस पर दैत्य राजी हो गया और बोला, 'शिव! के एक पुत्रका नाम 1 8 विष्णु।५ दानवभेद । इस सह्याद्रिके ऊपर भापको मेरे नामसे लिङ्गरूपमें महावीज ( स० पु.).१ उत्पत्तिका प्रधान कारण। २ . रहना होगा। यहां आपके मस्तफसे पञ्चगङ्गाको उत्पत्ति मूलवीज । ३ शिव । ४ पारद, पारा। : . :: होगी। विष्णु ! आप भो मेरे भाईके नामसे लिङ्गरूप महायोज्य (सं० लो०) पस्तिदश, पेड़ ।। ....:." धारण करें । पद्मयोनि ! आप मेरी सेनाके नामसे कोटिश महायुद्ध (सं० पु०)पक प्रकारके युद्ध। ये साधारण नाम धारण कर इस क्षेत्रमें विराजें। वेद और घेदगण बुद्धोंसे श्रेष्ठ माने जाते हैं। . . . . . . भी यहां रह कर लोगोंके भोग और मोक्षदायक बनें। महायुद्धि (सं० वि०) १ अतिशय बुद्धिमान् , जिसकी पुद्धि गृहस्पतिके कन्याराशिमे जानेसे जो व्यक्ति इस तीर्थों | पड़ी तो हो । (३०)२ राशसभेद ।। . आयेगा, उसका दाग्दिा दुःख रहने नहीं पायेगा।' पोछे | महायुधन (सं० त्रि.) विस्तृत तलयुक्त, जिसका .तल .. महावलके प्रार्थनानुसार महावलेश्वर, भतिवलेश्वर और | चौड़ा हो । . . . . . . . " फोटोश्वर ये तीन लिङ्ग माविर्भूत हुए। महागृहती (सं० सी०) १एक वैदिक धन्दा : यह तीन . ब्रह्माने निकट्यत्ती ब्रह्मारण्यमे आ कर यज्ञमण्डप | पाक्का होता है और इसके प्रत्येक गाद, १२ वर्ण होते यनाया और देव ऋपि आदिको युला फर एक महायज्ञका हैं।२ गुल्मसेद ।। अनुष्ठान किया । उस यज्ञके प्रभावसे कृष्णा, वेणी | महायोधि ( स० पु० ) घुध्यते सर्व जामातोति पुष. ककुदाती गायत्री और सावितो इस पञ्चगङ्गाको उत्पत्ति (सर्वधातुभ्य इन् । उण्४।११७) इति इन्, महाश्वासी हुई । इस पञ्चगङ्गाकं सङ्गममें स्नान करनेसे सभी पाप वोधिश्चेति । युद्धदेव' . महाबोधिसङ्घाराम (स पु०) बौद्ध-सहारामभेद । । .. पहली तीन नदी पूर्वसमुद्र में और शेपोक्त दो पश्चिम ... ' , मोगरा देगी। जाते रहते हैं।