पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/१७८

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पहामारत लाने के लिये जाना, नारदको नियम-रक्षाके लिये अर्जुन ब्राह्मणोंके भरण-पोषणा गन्न और औषधिको प्राप्तिक . का धन गमन; पार्शके यनवासके समय नागकन्या | लिये धर्मराजका सूर्यको आराधना करना, मूर्पके प्रसाद.... 'उलूपीफे साथ राहमें हो समागम और पुण्यतीम जाना, से अन्नकी प्राप्ति, धृतराष्ट्र दारा हितवादी विदुरको. धभ्रुवाहनका उत्पन्न होना, अर्जुन द्वारा तपस्वी ब्राह्मणके परित्याग, विदुरका पाण्डवोंके यहां जाना और 'त' शापसे ग्राहयोनिमें उत्पन्न हुई पञ्चस्वरूपा अप्सराका | राष्ट्रको भाशाके अनुसार पुनः विदुरका लौटना, कर्ण शापविमोचन, प्रमामतीर्थ में अर्जुनके यहां श्रीक्षणका का उपहास वाफ्य, वनवासी पाएडयोंका यघ करनेके समागम, कृष्णके माशानुसार द्वारकामें जा कर अर्जुन लिये दुर्योधनकी फुमन्त्रणा, यह जान कर भ्यासका . ' से कामयान द्वारा सुभद्राका हरण, कृष्णका उपढीकन ले | दुर्योधनके समीप आना और दुर्योधनका धनगमन निषेध फर खाण्डवस्य गमन, अभिमन्युका जन्म, द्रौपदीके करना, सुरमिका उमान, मैनपका · हस्तिनापुरमें पुल होना, कृष्ण और अर्जुनका जलविहारके लिये आना और धृतराष्ट्रको शापदान, गोमसेन धारा संपाम- । यमुनामें जाना और यहां चक और धन प्राप्ति, खाएडय-] में किम्मीका यध, शकुनी द्वारा पाएडवोंका छला ज्ञाना दाह, मयदानव और भुजगोंका अग्निसे रक्षा पाना, शङ्गीं. सुन कर पाञ्चाल और पृष्णिका युधिष्ठिरके पास आना, . -के गर्भसे मन्दपाल नामक महर्णिका पुत्रोत्पादन आदि । अजुन द्वारा कोधान्वित कृष्णका ठण्डा होना, कृष्णके विषय आदि पर्ग में वर्णित है। इस पर्वार्म २२७ अध्याय निकर द्रौपदीका यिलाप, कृष्णका पाञ्चालोको सान्त्वना और ८८८४ श्लोक हैं। देगा, सौभवधाख्यान, कृष्ण द्वारा पुत्र के साथ सुभद्राका २सभाप द्वारकामें जाना, धृष्टद्युम्न 'शारा द्रौपदी तनयोका : • इसमें बहुतेरे वृत्तान्तोंसे परिपूर्ण , महाभारतके ! पाञ्चाल देशमें लाना, पारडयोंका रमणीय हैत-यममें दूसरे पर्व का नाम समापर्य है। पाण्डयोंका सभा-/ जाना, युधिष्ठिर, भोग ओर वेदव्यासका आगमन और निर्माण करना, किङ्करदर्शन, नारद द्वारा लोक- युधिष्ठिरको प्रतिस्मृति नामकी विद्या देना, व्यासके पाल-सभा घर्णन, राजसूय यज्ञारम्भ, जरासन्धवध, एष्ण यहांसे चले जाने पर पाण्डयोका काम्य-यनमें प्रयेश, द्वारा गिरिदुर्गमें बंधे राजाओंका मुक्त करना, पाण्डयोंकी | दिव्यास्त्र प्राप्तिके लिये अनुनका प्रयास, किरातरूपो . दिग्विजय, राजसूय यज्ञमें उपढीकन -ले फर राजाओंका | महादेवके साथ अर्जुनका युद्ध, अर्जुनका लोकपाल- भागमन, अर्थदानके लिये वादानुवाद, शिशुपालका दर्शन और मनमाप्ति तथा उनका भरत्र-शिक्षा के लिये - वध, यशका ऐश्वर्या देख दुःखी और इन्वित दुर्योधनका महेन्द्रलोक में जाना, यह सुन लर धृतराष्ट्रका चिन्तित ..मोम द्वारा समामें हो उपहास, इससे दुर्योधनका प्रोधित होना, युधिष्टिरका परमतत्या पददश्य नामक महर्षिका . होना, व तमोडाफा अनुष्ठान, धूर्त शकुनि द्वारा पाश दर्शन, उनके सामने फातर हो कर युधिष्ठिरका परिनाप । 'फोलामें युधिष्ठिरफी पराजय, ध तार्णयमें झूयती स्नूपा | और विलाप करना, नलोपाख्यान.-(इसमें नलफा . ' द्रौपदीका महाप्राज्ञ धृतराष्ट्र द्वारा उद्धार घ तमोड़ाके चरित और दमपातीका विपदफालमें भी मर्यादाका .लिये दुर्योधनका पुनः पाएडवोंको बुलाना, च तमें दुर्यो.| पालन करना यर्णित है)। महर्षि वृहदायसे युधिष्ठिरका ,धनको जीत तथा पाएडयोंका. पनयास गमन-शादि | अक्षहदय नामका विद्य पाना, स्वर्ग लोमश कृषिका : .यिपय समाप घर्णित है। इस पर्व में ७८ अध्याय पाएदयोंके यहां आना और उनका स्वर्गस्य अर्जुनका और :२५११ श्लोक है।. . : " .. .. । वृत्तान्त कहना, अर्जुनका समाचार मुन कर पाएडयो... 2 . :. -३ पनप ... ...! की तीर्थयाला, तीर्थयात्राका फल और पुण्य-कपन, ....३ घनपर्यः। यह पर्व यहुत बड़ा है। महामंती ) महर्षि नारदकी :पुन्टस्त्य तीर्थ-याला भार पागयोंका पाण्डेयोंक वन गमन करने पर धर्मपुत्रके पोछे पुर- तो जाना, इन्द्रकी प्रार्थनासे फर्णको कुण्डल-प्रदान, .. मासियोंका ज्ञाना, धौम्पमुनिके माशानुसार अनुगत गपासुरका वंश, आस्यका उपाण्यानं भोर पातापित