पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/१८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

महाभारत स्नेह कर विराटका अर्जुनको उत्तराका दान तथा सुभद्रा करना, हस्तिनापुरसे उपाध्यमें आ कर पाएडवोंके यांस पुत्र अभिमन्युके साथ उत्तराका वियाह । विराट् पर्वमें कृष्णका सब वृत्तान्त फहना, कृष्णका पात सुन कर हिसार यही सब विपय हैं। इसमें ६७ अध्याय और श्लोक-1 कार्यको मन्त्रणा कर पाएइयोंकी संग्रामसजा, तिमापुरम, संख्या २०५० है। युधिष्ठिरके लिये रथ, घोडे, हाथी, पैदल सैनोंका मायो. ५ उद्योग पर्व। जन करना, सैन्यसंख्या, ‘महायुद्ध भारम्म होनी पाएडयोंका उपप्लय्य नामक स्थानमें एकत्र दिन पहले दुर्योधनका उन्दूक नामक व्यक्तिको दुत बना होना और दुर्योधन तथा अर्जुनफा श्रीकृष्णके समीप कर पाण्डयोंके पास भेजना, स्यातिरयसपा, अन्योता. पहुंचना और दोनोंकी सहायताको प्रार्थना करना, स्यान, उद्योगपर्व में ये सब वृत्तान्त लिखे गये है। इसमें कृष्णका पूछना, फि फिसको क्या चाहिये, एक गौर ८६ अध्याय और ६६६८ श्लोक हैं।. .. . मेरी दश करोड़ नारायणी सेना है और दूसरी ओर मैं भीष्म पर्व: : - अकेला असहीन रहूंगा। मन्दभाग्य दुर्योधन सैन्यवर- समय द्वारा जम्मएडका निर्माण कथा, युधि. को प्रार्थना, दूसरी ओर अर्जुनको अयुध्यमान कृष्णका टिरफे सैन्योंका अत्यन्त विपाद और ममका मोह पाना, मद्रराज पाण्डयोंके साथ आ रहे थे, राहमें खवर दशाहव्यापी घोरतर सुदारण युरफे समय योगायिका पा फर दुर्योधनका जाना और उनका यागत स्वागत कर नाना हेतुवाद द्वारा महामती कृष्णका मर्डको उनको प्रसन्न करना, फिर उनसे सहायताकी यर प्रार्थना मोहको तोड़ना, कृष्णका रथसे उतरना भीर निर्भय करना, मद्रराज शल्यका सहायता स्वीकार कर पाएडवों चित्तसे चफ लिपे भीमको वध करने के लिये दोहना, के समीप आना, शल्यका युधिष्ठिरको सान्त्वना घाफ्यरूपदण्डसं कृष्ण द्वारा मर्नुमको चोट पहुंचामा, देना और इन्द्रविजयवर्णन, पाएडयोंका दुर्योधनके अर्जुनका शिखएडीको आगे कर भीम पर तीर छोहमा पास पुरोहितका भेजना, पाण्डवोंके भेजे पुरोहितके मुंह | और भीष्मका भूपतित होना, मोमका राशन से इन्द्रविजय विषयक वाक्य सुन कर विदरके फाहनेसे पे सब भीष्मपर्य में लिखे गये है। इस ममे १७ धतराष्ट्रका शान्तिस्थागनके लिये सायको दूत बना कर | अध्याय धीर ५८८४ श्लोक है। ..! " . भेजना, श्रीकृष्ण और पाण्डवोंकी यातको सुन कर ..: ७ द्रोपा पर्य। '.. ' . चिन्तासे धृतराष्ट्रका निद्रात्याग करना, विदुरके मुहते प्रतापशालो 'द्रोणाचार्यको सेनापति धनना, धृतराष्ट्रका विचित्र और हितकर वाफ्य सुनना, सनत् दुर्योधनक लाभार्थ द्रोणाचार्यका युधिष्ठिरको पार फुमार ऋपिके मुंहसे शोकाकुल धृतराष्ट्रका अध्यात्म- लानेको प्रतिक्षा करना, मारायणीसेना शारापुर. विपयक शाख सुनना, प्रातःकाल राजसभामै समयका स्थलसे मर्जुनका हटाया ज्ञाना,' महाराज भगइसका कृष्ण और अर्जुनके फहे वाक्यको कहना, महामति | अपने हाथोफे साथ रणस्थलमै मदत सुन्य निकम कृष्णका सन्धिस्थापनके लिये दुर्योधनके यहां जाना, | प्रकाश, अर्जुन द्वारा ' भगदत्तका वध, अपद्रय प्रमूति दोनों पक्षको हितकामनासे कृष्णका सन्धिका प्रस्ताय महारथियों द्वारा अप्राप्त योयन अफैले अभिमन्युकां । फरना और दुर्योधनका भनाा करना, दम्भोदमयका | मभिमन्युफे क्यफ दाद मांधायित अर्जुन द्वारा M... माप्यान, मातलीका अपनी पुतीफे लिपे यर खोजना, / भूमिमें सात अक्षोदिणी सैन्य और जयवधाका वध, महरा महर्षि गालयका चरितवर्णन, विदुलापुरका अनुशासन, | युधिष्टिरफे आशानुसार महाया भीम और साकि ... फर्ण धीर दुर्योधन आदिको दुष्ट मन्त्रणा' जान कर द्वारा देवतार्योफे शालहनीय कुरसम्पमें घूसना, नारा राजाभोंके समीप कृष्णका योगीश्वरत्व दिपलाना, शिष्ट 'नारायणी सेनाका यिनाश, यलम्युए, धृतायु. कर्णको कृष्णका अपने रथम बैठाना और उत्तम शिक्षा जलसंन्ध, मूरिया, विराट, पद और घटोस आदि देना, गर्गित पाणं द्वारा फोगलाक फाणका प्रत्याख्यान ! अनेक पौर पुरुषोंका पध, द्रोणाचार्यका पंथ, युरमें