पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/१८३

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महाभारत .१६५ माधारविधि; जापकोपाख्यान, मनुगृहस्पतिका संपाद, | सम्प्राप्ति, पहले अस्राग्नि द्वारा दग्ध और पीछे कृष्ण सर्व भूतोत्पत्ति, गुरुशिप्य सवाद, कृष्णका माहात्म्य- द्वारा पुनःसजीवित परीक्षितका जन्म, यशमें अश्वमोचन

कीर्तन, पञ्चशिनजनक संपाद, इन्द्र और प्रहादका ! करके उसके साथ जानेवाले अर्जुनके साथ कई जगह

.संपाद, पालियासयका सयाद, इन्द्र और नमुचीका | अमर्पण राजाओंका युद्ध, चितवाहन राजाकी कन्या संपाद, यलिदान संपाद, लक्ष्मीवासवका संयाद, चितादाके गर्भसे उत्पन्न अपने पुत्र बभ्रुवाहन द्वारा । देवल गोपथ्य सघाद, वासुदेव उग्रसेनका कथोपकथन, अर्जुनका जीवनसंशय, अश्वमेध महायशके समय शुकानुके प्रश्न, .मृत्यु. और ब्रह्माका संघाद, धर्म के नालास्यान । यही सब विपय महाभत आभ्वमेधिक - लक्षण, तुलाधार जॉजलीसंवाद, चिरकालिक उपा- पर्वमें लिखे हैं। इस पर्व में १०३ अध्याय और ३३२० ल्यान, घुमत्सेन सत्यवत्-संवाद, स्युमरश्मि और कपिल श्लोकसंख्या है। . का संपाद, कुण्डधार उपाख्यान, यशनिन्दा, प्रश्नचतुष्टय । १५ आश्रमवासिक पर्व। कीर्तन, योगाचार वणन, नारद और देवल ऋषिका इस पर्वमें गान्धारोके साथ राजा धृतराष्ट्र और संपाद, माण्डया और जनकका संवाद, पितापुत्रका विदुर राज्यका परित्याग कर आश्रमधमका पालन करने- संवाद, हारीतगीता, वृत्रगोता, पुत्रवध, ज्वरोत्पत्ति, , के लिये जंगल चल दिये। यह देख कर गुर सुधुपा- दक्षयक्षका विनाश, दक्ष द्वारा महादेवके सहस्र नामका । परायणा साध्यो कुम्ती भी पुत्रका राज्य छोड़ कर धृत. कीन,: पंचभूतकोर्सन, समग-नारदका सपाद, राष्ट्रको अनुगामिनी हुई। जंगलमें राजा धृतराष्ट्रने - सगरारिष्ट नेमोका संघाद, भवभाग यका संवाद, परा- युद्ध में मारे गये और परलोकयासी पुत्र, पौत्र और शरगीता, हंसगोता, योगविधि वर्णन, सांख्ययोग-कथन, , अन्यान्य घोर राजाओंको फिरसे आये हुए देखा। धृत. पशिष्ठ-करालजनक ,स'बाद, याशयल्पयजनक-सपाद, राष्ट्र कृष्ण द्वैपायनको रुपासे इस उत्तम और माश्चर्य अनकपंचशिख-सयाद, सुलभाजनक-सधाद, वेदवास : घटनाको देख कर गान्धारोके साथ परम सिद्धिको प्राप्त राकका सवाद, धर्म मूलवणन, शुकोत्पत्ति, शुकजनक- हुए, उनका कुल, शोक. जाता रहा। जितेन्द्रय..सअय संपाद,.शुकनारदका सयाद, शुकका अभिपतन, नारा-! और विदुरने धर्मको आश्रय करके सद्गति पाई । धर्मराज यण-माहात्म्य-वर्णन,, यासोत्पत्तिका वर्णन, उछ युधिष्ठिरने नारदके मुखसे गृष्णिगणके कुलशयका हाल वृत्युमख्यान। . . सुना। यही सब विषय आश्रमवासाण्य पर्यमें यर्णम . इस पर्व में ये विषय. विशदरूपसे वर्णित है । इसमें | किया गया है। इस पर्वमें ४२ अध्याय और १५०५ ३३६ अध्याय और १४७०७ श्लोक है। श्लोक है। १३ अनुशासन.पर्व। १६ मौषलपर्व। . . कुरुराज युधिष्ठिर भीमफे मुखसे धर्म का निर्णय जो रणस्थलमें अस्लाघातको मासानीस सहन करते सुन कर शान्त हुए। इस पर्व में धर्म और अर्थसम्बन्धी थे, ये यादय योर ग्राह्यशापरूप दण्डस, दण्डित हो कर समस्त.यावहार, विविध, दानका पृथक् पृथक् फल, । समुद्र के किनारे नशेको हालतमें एरका तृणरूपी गरा- पातविशेषसे दानको उत्कप विधि, आचार यापहार-! घातसे . मारे गये।, इसी प्रकार रामयष्ण मो समस्त निरूपण, सत्यको पराकाष्ठा, गोब्राह्मणका माहात्म्य, यदुवंशका उच्छेद कर अपने सर्गसंहारकारो उपस्थित देशकालके भेदसे धर्म रहस्य और भीष्मको स्वर्ग प्राप्ति कालसे बचने म पापे थे। पीछे. नरश्रेष्ठ अर्जुन यादयः लिखी हुई है। इस १३ये पर्व में १४६ अध्याय. और अन्य धारकाको देख कर बड़े दुखित हुए। उन्होंने अपने ८००० श्लोक हैं। . मामा नरश्रेष्ठ यासुदेयका सत्कार कर मुरापानसभाम .: १४ शाश्वमेधिक पर्व। यदुवंगीय योरोंको मरा पाया 14 न, राम और कृष्ण .. सम्वतं और मरुत्तका उत्तम उपाख्यान, सुवर्णकोप । मादि प्रधान प्रधान यदुगियोंका मम्नि-संस्कार आदि Fol. III, 42