पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/१८५

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पद्यमारत समयको रचना है। किन्तु रामायणका रूपकांश | काव्य ले कर उसे बिलकुल एदल डाला। उनके प्रधान इससे भी बहुत पोछे रचा गया है। घेदमें ब्राह्मण और सहाय पाण्डवंशधर थे। अतपय मादि भारत में जहां उपनिषद में जिंस इतिहासमा उल्लेख है. उसी वपुल जहां उनको अपकीतिका गणन था यहां यहां उनकी 'याख्यायिकाका सारसंप्रद ही महाभारतका दूसरा अंश तारीफ तथा उनके विपक्ष कुरमोंकी निदा की गई। तीसरे मशमै पाठ्य आदि आधुनिक नामका उल्लेख | पाण्डुवंश यथार्थ में दाक्षिणात्य यशोद्भव होने पर भी देख कर घेवरसायने नोल्डको साहयका मतानुसरण इस समय कुरवंशकी एक शाखा माने गये। . कर लिखा है, कि पार्थिय शब्दसे श्लो सदोमें 'पहब' १८८६ ई० में अमेरिकाको प्राव्य सभाको पत्रिका शब्दको उत्पत्ति हुई। रोसे ४थी सदीके मध्य भारत- अध्यापक हापकिन्स (D, V',llopkins)ने Positionr घाँसोने इस शब्दको काममें लाया होगा । कहनेका of snang Caste in Ancient India' नामसेएकलम्ब तात्पर्य यह कि जब मेगेस्थिनिजने महाभारतका कोई चीड़ा प्रवन्धप्रकाशित किया । उस प्रवन्धमें उन्होंने मध्या- 'प्रसङ्ग उल्लेख नहीं किया तथा श्ली शताब्दीमें हयन- पफ लासेन और नोडरके मत विरुद्ध बहुत सी मालो. "किससष्टसने उल्लेख किया है, तब यह स्पष्ट है, कि चना की है। उनका कहना है, कि घोडरने देिखलाया है, कि ईसाजन्मसे पहले ३रोसे श्ली शताग्दोके मध्य मूल यजुर्वेदसे भी पहले भारतकाथ्य रचा गया । पोंकि 'महाभारत रचा गया होगा। किन्तु इसका तीसरा मश यजुर्वेदमें ही पुरुपाञ्चालको नातेदारीका हाल लिया है उससे भी बहुत. पोछे ( प्रामण्य धर्म के अभ्युदयके और उसी नातेदारीसे दोनों में महासमर भी छिहा। समय ) गर्थात् श्री और ४थी शताब्दीके मध्य रचा अध्यापक लासेनने भी पहुत पहले प्रकाशित किया था, कि गया है, इसमें सन्देह नहीं। फुरुपाञ्चालका युद्धकीर्तन करना हो आदि भारतकाव्य- " स्रोडर ( Schrocder ) ने महामारतको जो मालो. का उद्देश्य था। किन्तु उक्त दोनों महाशमका मत मभी चना की है यह इस प्रकार है- माननीय नहीं है। स्रोडरका विपर्यय सिद्धान्त भी प्रति- पन्न नहीं होता। एक बार शुन्नवर्ण में विविध हो कर ...जिस समय ब्रह्मा सर्वप्रधान देवता समझे जाते थे, दूसरी पार परबत्ती कवियोंफे हायसे पाणवर्णमें चित्रित उस समय (ईसाजन्मसे पहले ७००-५०० या ४००६०. हुआ है, इसका कोई स्पष्ट प्रमाण नही मिलना। .में).( महाभारतके ) आदि कविने जन्मप्रहण किया। परवती फयियोंकी यदि पाण्यशको बहाई . यह गायक कुरभूमिफे रहनेवाले थे। उन्होंने लोगोंके! करनेकी इच्छा रहती, ती घे पाण्य के सभी दोष उदा मुखसे कुरवंशके पराभव और अशातपूर्व एक जातिके सकते थे। किन्तु ऐसा नहीं है, कपिने दोनों पक्षको दोषी हायसे उनकी पराजय कहानी सुनी थी। उसो थियो ठहराया है। यथार्थम मादि भारतका विपर्यय गान्त घटनाके आधार पर उन्होंने देशीय योरोंको झाव ! साधन फरके वर्तमान भारतकी सृष्टि स्वीकार किये बिना धर्म का आदर्श तथा पादय योर कृष्णके साथ पाएडया आदि भारतके परिवर्तनसे वर्तमान भारतको परिपुष्टि पाञ्चाल, मत्स्य भादि विजातियोंको नीच कुलोद्भव और स्वीकार की जा सकती है । शादि समाज चित, यौर पर. मन्यायरूपसे जयकारी पतला कर चित्रित किया था। यती समाज चितको आलोचना करनेसे ही बहुत कुछ .पही प्राचीन भारत-गान माश्वलायन गृहसूलमें गाया मालूम हो जायेगा। धर्म को निम्न गतिफे साथ नोति. गया है। उसके बहुत समय बाद सब कृष्णने अवतार छानको अधी गति होती है। परयत्ती धर्मशान पुर्यतन लिया, तब पाण्टुवंशियोंको सहायतासे एम्भक पुरो- को अपेक्षा बहुत सरल और विशुद मालूम होगा। किंतु हितोंने युद्ध के विद कृष्ण या विष्णुको सदा किया। परवी नीति पूर्वतनसे बहुत कुछ उच्च मायापन और उन लोगोंको चेष्टा सफल हुई। ४थी शताब्दीमें विष्णु , कठोर नियमवर है। आदि भारतको गला सभीको मालूम ही प्रधान देय हुए। उनके अनुरक्त पुरोहितोंने 'भारत' है। यह गा माचीन नीतिजड़ित तथा परिचित नीति- Vol. XT1.43