पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/१८९

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पहाभारत १७३ • समान महाभारतसे हो हम लोगोंको पता चलता | २४००० श्लोक हैं। यथार्थ प्रचलित महाभारतका है, कि यह इतिहासरूप भारतकाथ्य एक दूसरेके मुखसे | उपाख्यान-अंश यदि वाद दिया जाय और कुरु पाएडप. ही प्रकाशित हुया था 10 प्रचलित महाभारतमें लिखा का विवरण लिया जाय, तो २०००० श्लोक हो सकते हैं। उसीको हम लोग आदि और अति प्राचीन भारत "क्षेते विचित्रवीर्यस्य कृष्णद्वैपायनः पुरा । कर सकते हैं। जनमेजयके सर्पयज्ञमें वही आदि भारत .... उत्पाद्य तृतराष्ट्रञ्च पाण्टुं विदुरमेव च ||९५ सबसे पहले सबके सामने सुनाया गया था। पोछे . जगाम तपसे धीमान पुनरेवाश्रमं प्रति । नैमिपारण्य में कुलपति शौनके द्वाश यार्षिक यक्षमें तेषु जातेषु वृद्धषु गतेषु परमा गति ॥९६ सूत लोमहर्षणके पुन उग्रश्रयाने दूसरी बार यह भारत. अमवीदार लोके मानुषेऽस्मिन् महानृषिः। संहिता लोगोंको सुनाई थी। जनमेजयका सर्पयाह " जनमेजयेन हरः सन ब्राह्मयोश्च सहस्रशः ॥९७ दीर्घकालस्यायी नहीं था, अतएव लोगोंके चितविनोद शशास शिष्यमासीनं वैशम्पायनमन्तिके। नार्थ २१००० श्लोकात्मक भारतसंहिताका गान ही

ससदस्य राहासीनः शूपियामास भारतम् ॥६८

उतने समयके लिये यथेट था। किन्तु बारह पर्णवाले

। कर्मान्तरेषु पशस्य बोद्यमानः पुनः पुनः ।

लये यहमें उतने श्लोकोंसे काम नहीं चलता, इसी .वितरं कुरुवंशस्य गान्धार्या धर्मशीलतां ॥EE कारण उसे पढ़ानेको कोशिश करनी पड़ी थी। अर्थात ' क्षत्त : प्रशां धृति कुन्त्याः सम्यग् दैपायनोऽब्रवीत् । । ऋषियोंको चित्तविनोदनार्थ उप्रश्रयाने भारत गानके यामुदेवस्य माशत्म्य पापवानाब सत्यता ॥१०० समय उसमें बहुतसे उपाख्यान जोड़ कर उन्हें सुनाया - बु धार्तराष्ट्रानामुक्तवान भगवापि।" (११ म०), था। महाभारतफे प्रारम्भमै उप्रश्रवाने कहा है,-:: पुराकालमें धीमान् कृष्ण-पायन विचिलयोयके। कुरु, पुष, यदु, शूर विप्वगम्य, अणुड, युयनाम्य, क्षेत्रमें धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुरको उत्पादन करके कुकुत्स्थ, रघु, विजय, घीतिहोत, अङ्ग, भय, श्वेत, पक्ष तपस्याके लिये अपने आश्रममे लौटे। जब उक्त तीनों गुरु, उशीनर, शतरथ, कडू दुलिवुहा 5.म, दम्मोमय, घोर वृद्ध हो कर परलोकंयासी हुए, तय उन महामतिने घेन, सगर, सस्कृति, निमि, अजेय, परशु. पुण्ड, शम्भु, मनुष्यलोकमें इस 'भारत' को सुनाया था। पीछे जनमे यायुध, देवाहय, सुमत्तिम, सुप्रतीक, पृहद्रय, सुकतु, जयके सर्पयामें हजारों ब्राह्मण और स्वयं जनमेजयके गिपधापति .मल, सत्यमत, शान्तभय, सुमित्र, सुचल, भाग्रह करने पर वेदव्यासने यशमें आये हुए बैशम्पायन-1 जानुनच अनरण्य, अर्क नियमृत्य, वलयन्धु, निराम 'को महाभारत सुनाने कहा था। तदनुसार प्रतिदिन- फेनुश्रङ्ग पृहदवल, धृष्टकेतु, वृहत्फेतु, दीप्तकेतु, अयिशिस्, का पक्षकार्य शेष होने पर पैशम्पायन उन्हें महाभारत, चपल, धूर्त, कृतवन्धु, दधि, मदापुराणसम्माश्य, सुमाया करते थे। कुरवंशका विवरण, गान्धारीको धर्मः। प्रत्यङ्ग प्रयहा, धृति, इत्यादि हजारों राजाओंके कर्म, शीलता, विदुरफी प्रशा, कुन्तीका धर्म, कृष्णका माहात्य, दिमाम, यान, मादाम्प, मास्तिफ्य, सत्य, शौच, दमा "पाण्डयोंको सत्यनिष्ठा और धृतराष्ट्रके पुतो अर्थात् । मोर आज यादीका बियरणं विद्वान सत्कवियोंने पुराणमें ‘कौरयोंकी दुसता मादि सभी विषय में पायन पिने गोया है। (भादि पर्य १०, २१२ से २४२ मोक) सविस्तार भुनाये थे। ____ अधिक सम्मय है, कि उप्रश्रवाने उन प्राचीन नाण्या • कुरुपाएडय-मसग को लेकर ही पहले पहल भारत. पिकामोंको भारतसंहिसान सर्म कोतन किया था। संहिता रखी गई थी. महाभारतफे मनसे उस संहितामें । उनके समयमें जहाँ जितने प्राचीन माण्यात गौर उपा. स्यानादि प्रचलित थे, सभी भारतसंहितामें गामिल -: भादिपर्व १म मध्याप, १०, ११, १५, २० भौर २६ / किये गये । इस प्रकार संहिताका भाकार पहलेसे लोक देखो। . : . . . . . कादों बढ़ गया भोर यदी संहिता उक यश माहिए Vol. xVII. * .