महारानिक-महाराष्ट्र
महाराजिक (स' पु०) महतो राजिः पतिरस्य (शेषादि। ४ आश्विनको शुझाष्टमी, दुर्गाष्टमी, नवरात्र ।
।। पा ५११५४ ) इति कप् । गणदेवताविशेष, एक "शुमाष्टमी चाभ्यिनस्य नवरात्र तु तत्र थे।
प्रकारके देवता जिनकी संख्या कुछ लोगोंके मतसे २३६ महारात्रिमहेशानि कालरात्रि शृणु प्रिये ॥"
और कुछ लोगोंके मतसे ४००० है।
(शक्तिसमवन्त)
महाराजोपचोर ( स० पु०) महाराजार्थ उपचारः, महा.
महाराम-१ सामप्रदेशके खासिया पहाड़ी प्रदेश
राजानामुपचारो या। राजाईपूजोपकरण, महाराजाके |
अन्तर्गत एक सामन्त राज्य । यहांके सरगण सिपेम .
योग्य पूजाको सामग्री, चामर, छन्न पादुका आदि। ।
कहलाते हैं। राजा उफिसन सिंह १८८४ में राज्य
सतम चामरच्छयपादुकादीन परानपि।
करते थे। यहांफे निवासी खनिज लोहेका मख शस्त्र
महाराजोपचारांश्च दत्त्वादर्श प्रदर्शयेत् ॥" । बनाना जानते हैं।
(विष्णुधर्मोत्तर) ।
___ २ उक्त प्रदेशके अन्तर्गत एक दुसरा सामन्तराज्य ।
देवपूजामें महाराजोचित उपचार सामग्री दे फर यहांको आय २०४००है। सर्दार सियेम सिंह
पूजा करनी होती है। ऐसा करनेसे अशेष पुण्यलाभ |
ईमें मौजूद थे। इस पहाड़ी भूमिसे अनेक प्रकारका , .
होता है।
दथ्य निकलता है।
हरिभक्तिविलासके अष्टम विलासमें इसका विशेष
महारामायण (स० को०) गृहत् रामयण, बड़ा रामायण ।
विवरण लिखा है।
महारायण ( स० पु०) पुराणानुसार यह रावण जिसके
महाराशी (सं० स्त्रो०) १ दुर्गा। २ महरानी।
हजार मुख और दो हजार भुजाएं थीं। अद्भुत रामा.
महाराज्य ( स० क्लो०) बहुत बड़ा राज्य, साम्राज्य ।।
यणके अनुसार इसे जानकीजीने मारा था।
महाराणा (सं० पु०) उदयपुर था चित्तौर राजवंशको
| महारायल-राजपूताना, जैसलमेर और हूंगरपुर राजा
उपाधि । मेवार, चित्तौर और उदयपुर देखो।
चंशको उपाधि। मारवाड़, जयपुर और योधपुर देखो।
महारात (सं० को०) द्विपहर राति, साधी रात।
| महाराष्ट्र-भारतवर्षके दक्षिण-पश्चिमान्तयची . एक
महारात्रि (सं० स्त्री०) महत्यां प्रलयावस्थायां राति आत्मः |
विस्तीर्ण जनपद । इसके उत्तरमें सूरतप्रदेश और शत-
स्वरूप ददाति सुप्तशफ्त्या सर्वान जीवान् आत्मरूपेण
पुरा गिरिधेणी, पश्चिममें अरव समुद्र, दक्षिणमे कर्णाट
अवस्थापयति लायते पञ्चपर्वलक्षणाया अविद्यायाः
प्रदेश और पूर्वमें गोएडायन तथा लिए है। पूर्व मोर-
सकाशात् रक्षतीति । १ प्रालयोपलक्षिता महा-
को सीमा स्पष्टरूपसे बतलानेमें यह कहना पड़ता है, कि
प्रलय-रानि । जव कि ब्रह्माका लय हो जाता है और दूसरा
गङ्गा और धर्दा (परदा ) नदी, माणिकदुर्ग, माहुरनगर
महाकल्प होता है तब उसोको महारात्रि कहते हैं।
नान्ड, विदर और तालिकोट नगर महाराष्ट्रदेशको
"बहाणाञ्च निपाते च महाकल्पो भवेन्नूप ।
पूर्वसीमा पर मयस्थित है। कृष्ण और मालभद्रा नदी
प्रकीर्तिता महाराषिः सा एव च पुरातनः ॥" तथा येलगांव जिलेका दक्षिणांश और सदाशिवगढ़ (कर.
(प्रायैव पु० प्र०७० ५ भ०)/
पाढ़) पे सय देश इसकी दक्षिणसीमाफे रूपमें गिने
२ दुई। ३ तालिकों के अनुसार ठोक माघी रात जाते हैं। कृष्णनदीके दक्षिणो किनारे जिस भूमिधएन.
• बीतने पर दो मुहतोका समय जो बहुत ही पवित्न समझा को दक्षिण महाराष्ट्र' कहते हैं, मंगरेज ऐतिहासिक
जाता है। कहते हैं, कि इस समय जो पुण्य प्रत किया . प्राएट-टफ साहबने उसे महाराष्ट्रदेशके अन्तर्गत बत.
जाता है, उसका फल अक्षय होता है।
लाया है । यथामें यह प्रदेश महाराष्ट्र-वेशक हो ,
" रामात् पर प महतद्वय मुच्यते ।
भन्तर्मुक्त है। इस विशाल देशका सफल लगभग
सा महारानिदिना तहसमक्षयं मर ।" (तन्त्रनाम) / एक लाण पश्चीम इजार पर्गमील 1 इस देगी .
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२१२
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