. महाराष्ट्र
. . . . . अधिवासी। ... . . । शिवाजीफे सेमयमें इन्होंने कार्यदक्षता, बुद्धिमती, सास :
• महाराष्ट्रदेशके अधिवासी साधारणतः मराठा या तथा स्वदेश हितैपितागुणसे यथेष्ट याति प्राप्त की गों
मरहट्ठा कहलाते हैं। किन्तु महाराष्ट्रमें "मराठा" फेदनेसे यमाल विहार आदिकी तरह महाराष्ट्र में भी ये लोग मंसि-
पूर्वमहाराष्ट्रवासी क्षलिय और कंपक ही समझे जाते | जीवी है। पहले असिजीवी कायस्थोंकी संग्गा अधिग..
हैं। उत्तर-भारतकी तरहं दक्षिण में भी चातुर्य थी। इसीलिए ये सब बहुत दिनोंसे क्षत्रिय ही कहे जाते
व्यवस्था है। महाराष्ट्रीय ब्राह्मण पञ्चद्राविड़के अन्तर्मुक्त है। प्राचीन काल में बहुत जगह क्षसियत्य ले कर बना हो
हैं। ये प्रधानतः देशस्थ, कोईणस्थ, महाड़ और गोलमाल हुऐ था। वर्तमान समयमें इन लोगो हतार
देवरुथ इन्हीं चार श्रेणी में विभक्त हैं। इन चार घेणियों) पीछे लगभग १६० मनुष्य अंगरेजी गौर ३३० मराठी माm .
में कन्याका आदानप्रदान शिष्टाचारविरुद्ध तथा अत्यन्त लिख पढ़ सकेत । प्रभु-रणियों के मध्य सैकड़े पोछ ।
विरल होने पर भी ये एक दुसरेके यहां बिना रोक टोंक- लिखना पढ़ना जानती हैं। इनमें अगरेजी शिक्षाको
के खाते पोते हैं। जो मद्य, मांस और मत्स्य नहीं खाते भी खूब "प्रचार का है। हजार, मुमणी '.
महाराष्ट्र में वे ही प्रत ब्राह्मण गिने जाते हैं। इसीलिये गरेजी भाषा मो जानती है इन लोगों परदेकी प्रथा
मत्स्याहारो शेषणी या सारस्वत ब्राह्मणोंको महाराष्ट्र प्रचलित है। ... . . . . . . .
को ब्राह्मणश्रेणीमें से कोई भी ऊचा आसन नहीं देते। - महाराष्ट्रमें मराठोंको सण्या येर छोईका) . .
महाराष्ट्रीय ब्राह्मण घुद्धिमान. विश्वस्त तथा कार्यदक्ष लगभग आठ लाख है। ये दो श्रेणीमें विभक्त है। उनमें
होते और शास्त्रोक्त सोलह प्रकार के संस्कारों का यत्न से जो फेयल मराठी या कुलीन मराठा कहलाते हैं। "
पूर्वाक अनुष्ठान करते है। शिवाजीके उच्चपदस्थ फर्म ही क्षत्रिय होनेका देया रखते हैं। पूर्ण इतिहास पढ़ने :
चारियों से बहुतेरे देशों ब्राहाण हो धे। महात्मा मि. से अनेक मराठा परियारको हों क्षत्रिय फहना पाता है।'
दास स्वामी, एकनास्वामी, शानेश्वर, मुकुन्दराम, | ये नाटे, लिए, मिरप्रिय, बुद्धिमान् तथा स्याधीनता...
'आदि घड़े बड़े फयि, पण्डित और धर्मोपदेशक साधु- प्रयासी होते है। श्रद्धालुता, दचित्तता, मनालस्य,
"पुरुष देशस्थ ब्राह्मण, णीभुक्त धे। महाराज शाहके गानिथेयता गौर कलह मियता इनके चरिखको ।
राजत्वकालसे 'फोडणके नामों की प्रतिपत्ति बढ्ने विशेषता है। ये वाल्य विवाह के पक्षपाती गौर ।
लगी। पूनाके पेशंवा और दक्षिणे-महाराष्ट्र के प्रेसिद्ध विधवा-विवाह के विरोधी है। येजनेऊ भी 'पदनने ,
सरदारगणे कोणके हो वामी थे। युन्देलखण्ड और है। मराठा ६६ कुल में घटे । पुल के नामांनुसार हो
मंध्यभारत अञ्चलमें कहांडगण बहुत चढ़ चढ़े थे। उनकी उपाधि होती है। नीचे मोंकी तालिफा हो जाती "
'झांसीको रानी लक्ष्मीबाई यहाई-ग्राह्मणवंशकी थी। है, सुरये, पपार (प्रमार ), भोसले, घोरपड़े, राने,
महाराष्ट्रदेशके याहुन प्रसिद्ध कवि मरोपन्त भी इसी | शिन्दे नालुयो, सिसोदे, जगताप, मोरे, मोहिते, चौहान,
कहाई श्रेणीके ब्राह्मण धे। ग्यालियर महाराज सिन्धिया- दमाई, गावकयाई सायन्त, महाडी, तायड़े, पूल
के दरवारमें शेणवियोंकी ही अधिकतर चला यना है। धुमाल, धुले), वाय, शिरफो, तोयर, गोदय, दलवी,
महाराष्ट्र में हजार पीछे लगभग ३५० ब्राह्मण लिंखे पड़े। सालये, मुलीक, पालये, कदम, नल, याच, ति,
हैं। उनमेंसे सैफई पोछे अंगरेजी भाषा जानते मिसीम, पारये, फास, माली, 'माने, मराई, कोटे,
है। 'महाराष्ट्र-ग्राहाणरमणियों में गरदा रियाज कुछ मो कासले, निम्यालकर, घदग, पारंग, दलपत, गपाली,
नहीं है। ये यड़ी ही घंमशीला और गृहधर्मम | नयसे, घरत, मास, घोर, यिनारे, सिनोल, घाई, गगसे,
मुनिपुण होनी है। इनमें से हजार पोछे २७ पढ़ी | सपाले, कास, २०५, दुधे, पोटक, मांगयन, पारगे,
लिपी है। . . . . पाताडेवाघमारे, आपराधे, भोयर, जोशी, कलपात, दर.
__ महाराष्ट्रयासी फायस्थगण में कहलाते हैं। यार, केशरकर, कागरे, 'फाटे, काटवटे, रणदिवे गादी)
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२१४
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