पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२१५

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महाराष्ट्र निकम,भाते, कम्बले, ठाकुर, भोहर, भोगले, साइल,। आराध्या है। कोहापुर में महालक्ष्मी उपासकको नामजादे, जाम्बले, चिरकुले, धुरे, पाव, दिवटे, फांकड़े, संख्या भी कम नहीं है। कोण ग्रामणों को पुल. शेलके, वागवान, गांवड़, मोकल, नामटे, वुलके, धायड़े, ' देवी योगेश्वरीदेवी हैं। ये गणपनिफे भी उपासक है । जालिघरे, जशवन्त, जगपाल, पटेल, जगले, धुमक, महाराष्ट्रवासियों का विश्वास है कि भूत प्रेत और बेताल 'सीरगये, घरतं और अहिराव । इनसे भोसले, सावन्त, । गणेशके अशावारी है। भयानोको ग्रामको पक्षक ममझ सानविलकर, मुरवे, घोरपडे, चौहान, शिरके, मोरे, कर ही सभी ग्रामों में उनकी प्रतिमूर्ति प्रतिष्टित है। • मोहिते, निम्बालकर, अहिराव, शालीके, माने, याधव, सातो मातृकाग महामारी आदिको दूर करनेके टिप ही . महाडीक, पार, दलबी, घाटगे आदि परिवार घंश पूजी जाती है। रबाडोया देशारक्षमदेव हैं। वर मर्यादा श्रेष्ठ गिने जाते हैं । मराठा क्षत्रियों के मध्य और महादेयके भयतारस्वरूर कहे जाते । शेरी प्रदेशकी प्रथा प्रचलित है। नामक स्थानमें इनका प्रधान मन्दिर अवस्थित है, पक्षों जो सय मराठा कृपिजीवी, प्रात्य-भावापन्न अथवा इनको लिङ्गमूर्ति विराजमान है। दूसरी जगह इनकी सडूर होते हैं, ये कुनयी कहलाते हैं। ये युवा अवस्था · अश्वारूढ़ असिधारी अन्यमूर्ति भी देखने में माती है। • होने पर ही कन्याका विवाह करते हैं। निम्नश्रेणीके मदालसादेवी इनकी महर्मिणी है। ये म्यामोफे साथ 'कुर्मवियोंमें विधवा-विवाद भी प्रचलित है। पुनवी क्षति- युद्धके वेगमें एक ही आसन पर घोड़े पर बैठी हैं। .यस्वका दावा नहीं करते, अपनेको शुद्ध बतलाते हैं। कदाउप्राह्मणगण इनकी धातकी बनी मत्तिका पूजन मराठा क्षत्रिय इनकी कन्यासे विवाह करते, किन्तु पे' करते हैं। धान रोपने और फसल काटने के पहले किसो. भी कुलीन मराठेका जमाई नहीं हो सकते। . भैरवको पता होती है। ये प्रामरक्षक हैं। मानि या देशस्थ और कोडणस्थ कुलवियोंमें कन्याफा मादान हनमानको ना दक्षिणापशमें बहत प्रचलित है। प्राया प्रदान नहीं चलता। ऐसा विवाह इनके मध्य निषिद्ध प्रत्येक ग्राम वाहर इनका मन्दिर रहता है। मांक नहीं है, किन्तु पर-कन्याका यासस्थान दूर होने के समय देयता भी कहलाते हैं। नारियल इनकी यही हो कारण घे इसे असुविधाजनक समझते हैं । कुनवी प्रिय यातु है। मारुति रामचन्द्र पकनिष्ठ मंयक संचा धनयान और प्रभायशाली होने पर अपनको मराठा ही। आदर्श ग्रहाचारी कहकर सम्मानित है। ग्विर्या · कहना पसन्द करते हैं। ये भी परिश्रमी, आतिथेय, स्पर्श करफे मही' पृजनों। फातिहा प्रक्षा और दर्शन स्पल्पसन्तप्ट और श्रद्धालु होते हैं। पुनवो रमणियों में खियों के वेश्यका कारण यहा जाता है। इस देशको परदेकी प्रथा उतनी चालू नहीं है । सुरापानका मराठों ; तरह महाराष्टमें भी पष्टीवेयोनी पूना प्रनलित । मार कुनपियों में पूर्व प्रचार है, किन्तु शिष्टानारके विरुद्ध बेताल मल्ल और व्यायाम करनेवालों का देयता है। जियः . नकर है। ग्वार और याजड़े की मोटी मोटी रोटी : रात्रिके दिन इनका पूजन होता है। तमें येनालका (AIकरी) मराठों और फुनयियोंको प्रधान स्वाध है। यार है। .."। धर्म मौर देवदेवी। महाराष्ट्रदेश में विष्णुमना भी कम नहीं है। उस देश

'उल्लिशिम तीन प्रधान जाति हो त जोमय शैवघम को | वैश्यगण असर पाय-घायलम्बी है। प्रमिज मनः

उपासक है। मलारी नानक भसिधारो मयटूर शिय। कपि तुकाराम येश्यजाति थे। ग्राह्मणायि और धर्मो. दो अधिकांश मराठोंके कुलदेवना । मराठा लोग। पदेशक ज्ञानेश्वरनं भी यिष्णु भनि प्ररित की । नामटेय, शिवपूजा राजपूतोंकी तरह मदिरा धीर लेह उत्सर्ग यामनपण्डिन, मोरोपन्त प्रभृति यतसे मुपसिस मत प्रप- करते हैं। अष्टभुजा, पोदशभुजा तथा अटदशभुना। कारोन विष्णु तथा कृष्णमनिया प्रचार किया । इम महा. महिषमर्दिनीकी पूजा भी समी जगह प्रमलित है।। देशके समपान तीर्थक्षेत्र पदापुरम शमा मौर पिमणी. तुलजापुरको मवानोठेयो सभी महाराष्ट्रगामियों की कीमति प्रतिष्टिना। राधाकी उपासना महाराष्ट्राम _Vol. XVII. 50 ,