पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२१६

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१८ . महाराष्ट्र. यहुत कम है । शैव शाक्त आदि सभी महाराष्ट-1 स्त्रियों के मध्य हजारमें लगभग ८५ शिक्षिना वासियोफे लिपे पएढरपुर अत्यन्त पवित्र तीर्थक्षेत्र है। शूद्र जाति महाराष्ट्रदेश, फोलो (मत्स्पनीयों , जगन्नाथकी नाई वहां जातिभेदका धन्धन और विचार | माण्डारी (नजरमद्य प्रस्तुतकारो), मदार (बोर), नहीं है। गोदायरोके तीरयत्ती प्रदेशमें एकनाथस्वामी धे (फसाई ), रामोशी (मारण्य दस्यु ) प्रभृति बहुत- । की प्रवर्तित दत्तालेय-उपासना और कृष्णानदीके किनारे मी श्रेणियों में विभक्त है। पे अनार्योसे बाहुन कु . रामदास स्वामी को प्रचारित रामोपसनाका प्रभाव बहुत / मिलते जुलते हैं। इनका विवरण उन्हीं सब शम्दोंमें देगो। . देखा जाता है। उपासक सम्प्रदाय एकसे ज्यादा होने महाराष्ट्रमें भील जातिको संख्या भी कम नहीं है। पर भी अद्वैतवादने महाराष्द्रदेशमें सर्वत्र ही विशेष खान्देशमे इनका वास अधिक है। ये मराठी भाषा प्रतिष्ठा लाम को है। द्वैतवादो महाराष्ट्रोंकी संख्या यातचीत करते है। पे लक्ष्यभेदमें सुपटु है भौर माध . बहुत कम है। जोव और ब्रह्मके अभेदशानफे कारण कोसकी दूरी परफी वस्तुको भी धनुगरको सहापनासे सब जीवोंमें समदर्शिता अपेक्षाकृत अधिक मात्रामें महा अनायास विय कर सकते है। . . । राष्ट्रसमाजमें नजर आती है। महाराष्ट्र में जातीय पकता पष्टिसमाज। और राष्ट्रोन्नतिसाधनमें अद्वैतवादको विशेष सहायता महाराष्ट्रदेश गएडप्रामको अकसर 'गाय' कहते हैं। का प्रयोजन पड़ा था। जिस प्राममें बड़ी हाट या बाजार नहीं होता यद 'मीजा' चैव मासमें नययोत्सव, ज्येष्ठ में सावित्रीयत, और जहां होता है वह 'कसया' कहलाता है। इन मापाढ़ शयनैकादशो, श्रावणमें नागपञ्चमी, भादमें | | सय प्रामों और पलीफे अधिवासी प्रधानतः कृषिजीवो गणेशचतुथीं, आश्विनमें दशहरा ( विजयादशमी) है। ये 'उपरी' और 'मोरामदार' इन दो भोणियों में कार्तिको दीपावली, अनदायणमें चम्पापष्ठी, पोपमें विभक्त है। मोरासदार लोग पुरषानुकमसे जमोन पर मकरसंक्रान्ति और फाल्गुन मासमें दोल, ये सब इस दखल जमाते हैं। जो इच्छुक होने पर भी जमीन येव देशके प्रधान धर्मोत्सव हैं। पण्ढरपुर, कोहापुर, गोकर्ण, नहीं सफतं और जिन्हें थोड़े दिन के लिए ही जमीनका जेजूरी, मालन्दी, तुलजापुर प्रभृति स्थान महाराष्ट्र देश-दन्दोवस्त मिलता है ये दो 'उपरी' कहलाते हैं। फे तीर्थक्षेत्र गिने जाते हैं। मीरासरदार अपने इच्छानुसार जमीन येव और दान ___ उक्त सभी धर्म-सम्प्रदायफे सिया महाराष्ट्र में और | कर सकते थे, किन्तु १९०२ ६० से गयमेण्टने प्रशासे यह भी एक विशेष धर्मसमादाय है। यह सम्प्रदाय लिङ्गायत् । साधिकार छीन लिया। नामसे प्रसिद्ध है। महाराष्ट्रीय वैश्यों के मध्य बहुतेरे इसी ! गांवमें जो मएडल या प्रधान है, उनका माम पाटिल. धर्मफे अनुयायी है । जैन धर्मायलम्यो यैश्य भी महाराष्ट्र- या प्रामरक्षक है। इनके सहायक चौगुला कहलाते हैं। में हैं। लिङ्गायस् घोर शैष नामसे अपना परिचय देत ये साधारणतः ग्रामण भिन्न है, किन्तु मराठाजातिके हैं।' हैं। ये ग्रामणके धान्य और श्रेष्ठत्वको नहीं मानते। पाटिलके दूसरे सहायकका नाम पुलिकरनी या प्राम अबालाद्धयनिता सबके सब गलेमें छोरा शिवलिङ्ग लेखक है। गांवको कुल जमीनका हिसाब किताब रसना पहनते हैं। इनके गुरको "जगम" कहते हैं । जङ्गम या, इन्दीका काम है। इसीलिये पे गायके जमीनका गुरु एदेवता गियको अपेक्षा इस सम्प्रदायफे लोगोंफे पचोसयां हिस्सा निकर भोग करते हैं। मामेके निकट विशेष पूजनीय है। इनकी क्रियाकर्गपद्धति मी अधिकारीको देशमुप्त या देशाई' कहते है। देशलेसका स्वतन्त्र है। इस सम्प्रदायमें भी ग्राणादि वर्णभेद है। दूसरा नाम देशपाण्डे पा कानूगगो मी है। .. मन्यान्य बासि फुलकरनी मादि कर्मचारीगण मासा प्राधणागि- ____ हाराष्ट्र के घेश्ययणिक १२ गाम्नामोंमें विभक्त ।। के हो होने हैं। महाराष्ट्र जमीयार नहीं है। पूर्गाक इनमें हजार पोछे ४४४ मनुष्य लिय पढ़ सकते हैं। फर्मचारीगण देशको राजमनिसे रामस्य संग्रह कर