पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२१९

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महाराष्ट्र २.१ गोतमीपुत्र शातकणि नामक सातवाहनवंशीय एक! उन्हों लोगोंके आदेशानुसार सय यमांका कातन्त्र- 1 पराकान्त राजा और उनके पुत्र श्रीपुलोमवि-(रलेमीफे व्याकरण रनित हुआ। गुणात्य नाम और भी एक सिरि-पेलेमिस) ने शकजातिको हरा कर महाराष्ट्रसे कयि तथा राजमन्त्रीने वृहत्कथा नामक एक कथाप्रथा 'भगा दिया । शिलाशासनमें गोतमोपुन गातकर्णि | की रचना की। सातवाहनयशीय राजाओंमेंसे किसी दक्षिणपथाधीश नामसे प्रसिद्ध हुए हैं। इस वंशमें किसीने सरस्वतीको उपासनास त्ययं सफलता प्राप्त की इनफे परपती राजारों में से श्रोपुलोमयि, याश्री, चतुष्पर्ण थी, ऐसा भी उल्लेख मिलता है। और मदरीपुत्र शकसेन ये चार मनुष्य यष्टे हो भरयोर सातवाहन शके अधःपतनफे याद देशमें करों कहीं हुए थे। विस्तृत विवरण सातवाहन शब्दमें देखो। पर आभोर जातिका आधिपत्य प्रतिष्ठित हुआ था। किंतु ___ उस समय महाराष्ट्रदेशमें बौद्ध और ग्राहाण्य दोनों यो हो दिनोंमें रछ, राष्टिक, मदारट और रहकर धर्मका समान प्रधान्य था । सातवाहनवंशीय राज- जातियोंने प्राधान्य लाभ कर देशमै मर्यन अपना अधि- गण येदपाठ वेदाध्यापन के लिए जिस प्रकार पाठशाला | कार फैलाया। कमसे कम दाई सौ वर्ष तक इनका स्थापित करते और येदाध्यापक ग्रामीको प्रचुर गृत्ति गज्यशासन रहा । उन समयका विशेष विवरण नहीं देते थे, पौद्धधर्म को उन्नतिफे लिए भी उसी प्रकार अर्थ- मिलता है। ___व्यय और परिश्रम करते थे। उन लोगोंके समयमें चालुक्य । • याणिज्य व्यवसायको भी खूब उन्नति हुई थी। पाश्चात्य छौं शताब्दोफे अन्तमें महाराष्ट्रदेशमें चालुपय- • देशसे नाना प्रकारफे पण्यद्रध्य महाराष्ट्रमें याते और वंशीय राजाओंका शासन प्रयतित हुआ। इन्होंने फिर महाराष्ट्रमें होनेवाले विविध द्रव्य यादि सामुद्रिक अयोध्यासे आ फर यहां माधिपत्य फैलाना चाहा। जहाज द्वारा पाश्चात्य देशमें भेजे जाते थे। भगकच्छ राष्ट्रफूट या रसड़यशीय राजाओंको युद्धमें परास्त कर • या भरोच (Broach) उस समयका प्रसिद्ध वन्दर था। इन्होंने वातापिपुर या वादामी नगर में राजधानी स्थापित महाराष्ट्रकी राजधानी प्रतिष्ठानसे कपासवन, मलमल, की। चौलुपय या चालुफ्योंने ग्यारह पीढ़ी तक महा- उस्कृष्ट प्रस्तर मादि पण्यद्रष्य विदेश जाते थे। प्रति- । राष्ट्रमें राज्य किया था। धानके कल्याण, तगर, चौल, मण्डगोरा ( पत्तमान-! विस्तृत विवरण चानाप गन्दमें देखो। मन्दाड़), पाल, नासिक, कहाड़, कोडापुर, जयगढ़ आदि उक्त गीय राजाओंफे शासनकाल में सुप्रमित चीन स्थान घ्ययसाय-याणिज्यके केन्द्रस्यरूप थे। । देशके परिवातक यूएनचुभह इस देशमें भाये थे। 'नासिकको एक प्रस्तरलिपिमें निगम-सभाका जो उनके महाराष्ट्रपरिन्नमणफै ममप (६३९६०) सत्या- उल्लेख है, उससे यह पर्तमान समरफे म्यूनिसिपलिटी- य श्रौपृथ्यीयहम द्वितीय पुलकेशी महाराष्ट सिदा. का.सा प्रतीत होता है। सातवाहनयंशीय राजा। सन पर येठे थे। चोगपरिवाज यूएननुगका महा. प्रजाओंकी भलाईमें जिस प्रकार तत्पर रहते थे, प्रजा- राष्ट्-वर्णन नीचे दिया जाता है.- माली भी उसी प्रकार मनुष्यफे दितकर कार्यानुष्ठानमें। इस राज्यको परिधि छह मार लीग ( लगभग १२ आनन्दपूर्वक साथ देतो थी। उस समय सैकड़े मौ मील) और इसकी राजधानीको परिधि लोग ५से'७।। ग० यार्षिक सत्र पर फ मिलता था। या ६ मोल है। इस प्रदेशको जमीन बहीही उपजाऊ - मातवाहनवशीय नरपतिगण "कवियत्सल" और, और गस्यपूर्ण है। इस राज्यको रामभानी एक दो विधोत्साहो कहे गए हैं। उन्हीं के भादेश तथा आनु- नदीफे पश्चिम किनारे संस्थापित है। यहांफ रामा फुल्यसे संस्कृत, मराठी और पैशाचो मादि भाषाओं में सत्रिययंशसंभूत है। वर्तमान महाराष्ट्रपति भिरडि, यदुतसे प्रप रचे गए थे। उनके राज्यकालमें कात्यायन गम्मीर-प्रति तथा परामदगी हैं। इनकी उदा. पररचिने प्रास्त भापानियमका एक पाकरण रना था। रता मोर परोपकार प्रगमनीय। प्रजागा नमः Bol. ITI GI