पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२२२

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२०२ महाराष्ट्र आन्तरिक मत है। कान्याजाधिपति हर्षयने. राष्ट्रस्टका . गिलादित्य सारा आर्यावत जोत कर धार धार महा. चालुफ्यशके अध:पतनके पाद रास्ट्या राष्ट्रदेश पर आक्रमण करते थे, किंतु महाराष्ट्रवासी राजामोंका प्रादुर्भाय हुआ। पे राष्ट्रकूट महाग उनके शरणागत न हुए।

प्राचीन महाराष्ट्रीय क्षत्रियोंके यशार थे। अयो

महाराष्ट्रोंके स्वभाव चरितके सम्यन्धमें उनका कहना यों है,-इस देवके लोग साधारणतः लम्ये, वलयान, साहसी । प्रदेशसे आपे हुए चालुपोंने इन्हें परास्त कर म और पता है, किन्तु स्वभावतः कुछ मोधित होते है। राष्द्रदेशको साधीनता अपनाई । यो शताम्दोके मार • में पे लोग बिलकुल स्वतग्स हो गए। राफर इनका आचार-व्यवहार सरल और कपटताविहीन है।ये, लोग उपकारीको सहायता करनेसे कदापि मुख नदों घालुक्यवंशीय द्वितीय कोलियर्माको हरा कर साधीन मोड़ते और न अपफारफारीको सहज में क्षमा ही करते हैं। घोषणा कर दी। दग्तिदुर्ग और कृष्ण नामक राष्ट्रा घंशोय दो योर पुरुषोंने बालुपयोंको विनाश कर in अपमानकी शान्तिके लिए ये प्राण तक भी विसर्जन कर देने में प्रस्तुत रहते हैं। विपद् में पड़ फर यदि कोई

राष्टौंको शतालिका यों हैं'.-

इनसे सहायता मांगता है, तो ऐ स्वार्थको छोड़ दन्तियम, २ इन्द्रराम, ३ गोविन्द (प्रथम), ४६ उसी समय उसको सहायता पहुंचाते हैं। शबुफो । (प्रथम), ५ इन्द्रराज (द्वितीय). ६ दन्तिदुर्ग (७५३.०० में ), फ्रज्या (प्राम ) इनका दूसरा नाम भाका दण्ड देनेसे पहले उसका कारण यतला कर ही ये उस . अपफारका बदला लेते हैं । ये लोग यम पहनते और हाथ- यासी और शुभतुग मी था, ८ गोविन्द (दिली में बल्लम ले कर युद्ध करते हैं, पर रणसे भागे हुए शत्रु -पतम ), ध्रुय (निरुपम, धारावर्ष, कलिपलम). का पोछा नहीं करते, किन्तु शरणागतीको अभयदान । । गोविन्द (तृतीय, जगतुङ्ग प्रभूत), ११ अमोधर देनेसे विमुप नहीं होते हैं। सेनापति जब युद्ध में हार . १२ रुप (द्वितीय मकालय), १३ इन्द्रराज (तृतीय जाते हैं, तय उन्हें रियोंकी पोशाक पहननी पती है।। १४ अमोघवर्ण (द्वितीय), १५ गोविन्द (चतुर्ष), इस अपमानको न स६ फर ये प्रायः आत्महत्या कर' । यहिग या अमोघया (तृतीय), १७ एष्ण ( सृनीप) खोटिक, २६ फगल या कर्फ द्वितीय। चिरशान्ति लाभ करते हैं। इस देशमें मृत्युभयमान्य ) पन्य इनमेसे प्रथम कर्फ चैदिक धर्मफे उस्माइदाता ये सैकड़ों चोर हैं। वे रणसजाफे समय मदिरा पी कर उन्होंने बहुतसे यागयझेका अनुष्ठान किया था) नित मत्त रहते हैं। इसी हालतमें बलमको हाथमें लिये पे दुर्ग वड़े हो पराक्रमी राजा थे। फरक-रामाको दिन योर पुरुप शत्रुपक्षके हजारों अखधारीफे सामने जा इटते रत, मेनाओने काचो, पेरल, गोल, पांच आणि दक्षिणा है। युद्धोपयोगी पायीको मदिरा पिला कर उन्मत्त tataगा भोगको युः फर लेना पड़ता है। कोई भी शन्नु महाराष्ट्र चोरोंका, युद्ध में सामना नहीं कर सकता। परास्त कर अक्षयकोर्ति मश्चय को गो, उन्होंको पम्मित ____ उस समय महाराष्ट्रदेश तोन भागोंमें यंटा था सपनी थोड़ी सेनाफे साथ सरगुप सारमें हराकर जिसमें लगभग ६ हजार गांय थे। उस समय भी दाक्षिणात्यका मार्यभीमपद प्राम किया। अन्त में दरदान वैदिक यागयज्ञादिफा प्रचलन कम नहीं था। राजा फाची, कलिक कोमल, धोशेल, मालय, सार, हमा अश्वमेध यह फरते थे। मामा, विष्णु, महेश्वर आदि प्रदेशफि प्रदेशांक रामामोको हराया और मानुषयों। देयमूर्तिको प्रतिष्ठा, मन्दिर निर्माण और ब्राह्मण भोसना शशि छीन ली। इन्होंकी तरह इनके पुरा एभराने प्रभृति कार्य पुष्यफर गिने जाते थे। तभीसे वीरप भी पालुपयों को पूरे गौरमे हराया था। मोराक प्रसिद को भयनतिका बारम्म हुया था। जैनधर्म दक्षिण-महा. गुहामन्दिग्में फैलाम नाम जो सारनियमन्दिर निप. राष्ट्र में फैल रहा था। नालुपयशोय राजा धर्म मान, यह फयाराजा हो बनाया हुमामा मम्वन्ध सनयनों थे। - ध्रयने अपने बाहुबली काझी, गेर, कौशामो, गौर