पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२३३

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महाराष्ट्र २१३ • स्वीकार न करके प्रायः विद्रोहादि किया करते थे। इस | और युहरन निजाम गाइने महागदके उत्तरभागका कारण सुलतानने पेशवा फंघरसेनके परामर्शानुसार शासन किया। इनके शासनकालमें सिया भौर मुसियों में उन्हें उच्च राजकार्य में नियुक्त करके शन्त किया। इसी। झगडा बढ़ा था । फलस्वरूप माग्नको भी प्राण देने परे समयमे महाराष्ट लोग दिनों दिन राजकार्य ममधिक थे। इमाइलका गल्यकाल मुसलमानों के मापसयो • दक्षता दिग्या कर अपने भाषी अभ्युदयका मार्ग साफ कलरमें दो समाप्त हुआ। एक दल मुसलमानोंने दिल्ली करने लगे। युरहनशाह सियामतके विशेष पक्षपाती थे, : के यादगाह भस्वरकी सहायताफे लिए प्रार्थना की थी। इससे सुभी सम्प्रदायके लोग सनक गये। फल यह बुहरन भी धर्मसम्बन्धी कलहका निगि न कर सके हुआ. कि राज्यमें लड़ाई-दंगा और अशान्ति होने लगी। थे। इनको मेना पुरला नामक स्थानमें पुर्तगोजॉमे गुर ४७ वर्ष राज्य भोगनेके वाद १५५३ ६०में सुलतानकी में पराजित हुई थी। मृत्यु हुई। इसके बाद मुसेन निजाम शाहको लडको सुलताना इस घंशको तृतीय मुलनान हुसेन निजामशाहफे नांदवोबीका शासनकाल दी विशेष प्रसिम है। इस • शासनकाल में दक्षिणापथ हिंदू मुसलमानोंका झगड़ा असाधारण गुणशालिनी रमणीने मगहोंने अपने राज्य- चरम सीमा तक पहुंच गया । दाक्षिणात्यकी समी की रक्षा जिस तरह की थी, यह वर्णनातीत है। मुसलमान शक्तिने इकट्ठी हो कर एकमात हिन्दू राज्य पिस्तुत विवरया चांदवीपीदमें दमा। विजयनगरका ध्वंस कर डाला । १५६४ ई०में तालकोट चांदयीवीके याद निजामशाहीका इतिहास इस के युद्ध में रामराजक मारे जानेसे हिन्द, लोग हिम्मत हार राजके मनियोंके कार्य कलापसे ही भरा पड़ा था। गये। मुसलमानों को कुमारिका अन्तरीप तक अधिकार अहमदनगर मुगलों. अधीन हो जाने पर परिन्दा फैलानका मौका मिल गया । इसी समय आर्यावर्तमें किम निजामशाहा राज्यको राजधानी स्थानान्तरित 'मुगल-सम्राट, अफवर एक एक करके सारे हिंदू-राज्यों कर दी गई। इस ममय मालिक अम्बर नामक एफ. • पर आफमण कर हिन्दूजातिका विनाश कर रहे थे। मुसलमान सरदार (जो अत्यन्त थुद्धिमान भीर विश्वासी गत एक हजार वर्ष के भीतर हिन्दू जाति के लिए ऐसा था ) की चेष्टास निजामशादीका नष्टप्राय गौग्य कुछ • दुःसमय और सारा हिन्दुस्तान प्रायः ययग स्थानमें दिनके लिये रक्षित हुया था। मुसलमानंकि परम्परक ऐसा परिणत हो गया था, कि भारतवर्ष में स्पधर्मनिष्ठ' गड़ेसे मरहठोंको बड़ा लाम हुआ, इनको शतिः और हिन्दुओंके लिए कोई आधय न रह गया। प्रतिपत्ति विशेषरूपसे वृद्धि हुई। मराठोंकी सहायता. . इसफे याद गुजिा निजामशाहका जमाना आया। से निजामशादीकी रक्षा मरदार अम्बरने की थी। इनके जमाने में विजयनगरफे राज्य विभागको ले कर · गियाजीके पितामह मालोजी भीमले गा मातामह मुसलमानोंमें युद्ध विप्रहका सूत्रपात हुमा । नतीजा यह लुसजो यादव रायने उससे कुछ पहलेसे निजामशादी मा कि मराठोंको सिर उठानेका मौका मिला। मो. दरवारमें प्रतिपत्ति लाम की थी। थीमापुर आदिल समय पुर्तगीजीने भी आ कर पश्चिम भारतमें उपद्रव : शादी दरवारमें भो मरहठीने यपनी प्रतिपत्ति मार मचाना शुरू कर दिया । निजामशादर्फ मरदारोंको : प्रभुत्व प्रतिष्ठामें कोई कसर न रहो। शरावको भेट दे कर इन लोगोंने भारतमे उपनिवेश मुगल-सम्रार अपरपं. और कुछ दिनों तक जापित स्थापन करनेकी माशा प्राप्त कर दी। मुर्तजाने रेया रहने पर निजामशाहीका अग्नित्य नाम ही मिनट पर अधिकार करफे इमादशादीवंशका अस्तित्त्य ही हो जाता, इसमें जरा भी सन्देव नदी। किन्तु उसकी मिटा दिया। इनके समानेमें गान भी निजामशाद ! मृत्यु हो जानेमें जहांगीर दिलीके सिक्षासमको प्राम राज्य के अन्तर्गत हो गया। करनेमे जो परम्पर, कलाद हुआ, उममें मालिक अम्वरम १५८६ ६० से १५६४ ६० तक मौरन हुसेन, स्माल मरठोंकी सहायनासे फिर मामद नगर पर भरना Vol. XVII4