पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

महाराष्ट्र २१७ मिला है। अच्छी अच्छी इमारतोंके बनाने में भी इसका । ही चौही थी । दो फोट चार इञ्चका गोला इस-

बड़ा नाम है | विजापुर में इसने ५२ लाख रुपया खर्च में व्यवहार होता था । विजापुरके लोग अब भी इस

कर भास्करशिल्पक आदर्शस्वरूप एक मसजिद धनवाई तोपकी पूजा करते है। कड़क विजली नामक और थी। इसका कार्य ३६ वर्ष तक होता रहा। इसके । एक तोप विज्ञापुरमें लानेका भार मुरारराय पर दिया जमानेमें अहमदनगरके निजामशाहके साथ आदिल गया था। किन्तु वह पथमें ही कृष्णानदीमें डूब गई। शाहियोंका एक वार युद्ध हो गया था। इसमें इब्राहिम- आज भी कृष्णानदीमें उसका अस्तित्व दिखाई देता है। को ही विजयलक्ष्मी प्राप्त हुई थी। आसफ खौके पराजित होने पर शाहजहांने मुहम्मत (सन् १६२६-५६ ई०) इग्राहिमके पुत्र मुहम्मद | खांको दक्षिण भेजा । मुहब्बतके दौलताबाद पर आक्र आदिलशाहका शासनकाल दक्षिणके इतिहासमें अधिक मण करने पर मुरार राव और रणदुला खां निजामशाह- प्रसिद्ध है। अधिक दिनों तक मरहठोंने विजातियोंको को सहायताके लिये भेजे गये। उस समय प्रवल प्रचण्ड अधीनतामें रह उनको जुतियोंकी ठोकर गुजर कर इस शाही सैन्य विजापुर पर आक्रमण करनेमे प्रवृत्त हुआ। समय पुनः स्वतन्त्रताके लिये पूर्ण चेष्टा की। राजनीति इस विपत्तिके समय शाहजी भोसलेकी तरह राजकाज कुशल अकबर और शाहजहाँने भी एक बार महा धुरन्धर और बुद्धिमान सरदारको आवश्यकता महम्मद राष्ट्र देश पर अधिकार करने के लिये चेयर करने में बुटि दिलको प्रतीत हुई। शाहजीको भी उस प्रवल प्रचण्ड टों की। किन्त माटोका अभ्यदय वन्द न हो। सैन्यक आगे अकेला अधिक देर तक ठहरना असम्भव सका। था। शाहजीके पास उस समय १२ हजार सुशिक्षित महम्मद आदिलशाहके शासनकालके प्रारम्भमें चंका- सेना थी। इसो कारणसे इन्होंने विजापुरके सुलतानसे .पुरके शासक कदमराय नामक एक मरहठेने विद्रोहको मित्रता स्थापित को। इन दोनोंके सम्मिलनसे महम्मद घोषणा कर स्वाधीनता प्राप्त को । सुलतामने उसके खांको पराजय स्वीकार करनी पड़ी। विरुद्ध सेना भेज कर उसको तहस नहस कर दिया। ___ सन् १६३५ ई०में मुराररावको शक्ति दिनों दिन अधिक इसके अमलम शाहजहांने निजामशाही राजाका विनाश | परिमाणसे बढ़ती देख महम्मद आदिल शादने गुप्तघातक. कर आदि शाहीराजा पर भी कुदृष्टि की थी। मुरारराव द्वारा उनको मरवा डाला। इसके बाद शाहजी और रण. आदि कई मरहठे सरदारों ने निजामशाही राजाको रक्षा- दुल्ला खाने शाही सैन्यको वहुन त किया था, किन्तु के लिये चेष्टा करनेके लिये महम्मदको सलाह दो । शाह- अन्तमें मुगलीने शाहजीको जर्जरित तथा निजामशाही. जी भोसले इस समय निजामशाही राजाकी रक्षाके लिये को विनष्ट कर दिया। फिर महम्मद आदिलशाहने प्राणपणसे चटा कर रहे थे। नरजहांके भाई आसक कर देना स्वीकार कर शाहजहांसे सन्धि कर ली। खांकी अधीनतामें मुगलोंके विजापुर अवरोध करने पर मुगलोंके साथ सन्धि करनेके बाद आदिल शाहने मुरार रावने उन पर वार वार आक्रमण कर उन्हें ऐसा राज्यको भीतरी संगठन करनेकी चेष्टा की । इन्होंने कर्ना तग कर दिया, कि मुगलोंको विजापुरकी सीमाको छोड़ | टकके विद्रोही जमीन्दारों को वशीभूत करनेके लिये रण. कर भाग जाना पड़ा। मुरारराव परिन्दा किले में जा कर दुल्ला खां और शाहजी भोंसलेको भेजा। कुछ दिनके वहांसे "मुल्क-इ-मैदान" या रणभूमिका राजा नामको | बाद कर्नाटकाका समूचा राज्यभार शाहजी भोंसलेको जो प्रसिद्ध तोप थो उसको विजापुर ले आये। यह मिला। शाहजीने कर्नाटकको एक स्वतन्त्र हिन्दूराज्य दुर्ग पहले निजाम शाहीके अधीन था। निजाम शाहको संगठित करनेकी चेष्टा को। किन्तु इनके कार्यको गति माशासे यह वृहत् तोप अहमदनगरमें ढाली गई थी। धीर और सतर्कतापूर्ण थी । उधर शाहजीके पुत्र शिवाजी यह यजनमें ४ सौ मन थी। वालिकोटके युद्धर्मे इसका घाटमाथाके मानलियोंकी सहायतासे पूनाके निकट- .. प्यवहार हुआ था। यह चौदह फोट लम्बी और उतनो के प्रदेशोंको जीत कर, स्वाधीन मरहठा साम्राजाको lol. XVII, 66.