पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२४९

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महाराष्ट्र २२१ समर्थ हो “योग्यतमका संरक्षण" विषयक नियम यथार्थ-1 आदि निवाससे अधिकांश सम्बन्धविच्छेद होनेसे में प्रतिपन्न किया था। वरं मुसलमान ही हिंदु-सभ्यता- मुसलमानोंको कई विषयों में हिन्दू मरहठों पर निर्भर के वशीभूत हो गये थे। करना पड़ा था। २ मुसलमानों का हिंदू-रमणीक पाणि-ग्रहण- ५ उत्तर-भारतमें मुसलमानो दरवारों में फारसोभापा का प्रयास। पहले वर्णित इतिहासमें दिखाई । व्यवहत होतो थी, किन्तु पूर्वोक्त कारणसे दक्षिणमें ऐसा देगा, कि प्रसिद्ध प्रसिद्ध मुसलमानों में बहुतेरे न हो सका। यदि हुमा भो तो अधिक दिन तक स्थायो हिन्दू-रमणोके गर्भ से उत्पन्न हुए थे । जो कोर्ति न हो सका। फलतः दरवारमें मराठी भाषाको प्रधा- और बुद्धिमत्ता हिन्दूरमणो गर्मजात सन्तानोंने दिखाई । नता थी। मरहठोंके जातोय भाव अक्ष पण बनेका थो वैसी बुद्धिमत्ता दक्षिणमें आये हुए विशुद्ध मुसलमान यह एक कारण है। वंशधर नहीं दिखा सके। अनेक मुसलमान स्वजातीय ' ६ वाहनो राज्यके भारम्भसे सिया सुन्नियोंका रमणोको अपेक्षा हिन्दू-रमणीके साथ दाम्पत्यसम्बन्ध झगड़ा, वैदेशिक मुसलमान के साथ दाक्षिणात्य मुसल. स्थापन अधिकतर उत्तम समझते थे। इस तरहके मानोंको कलह-इन कारणोंसे मुसलमानों में एकताका दाम्पत्य संयोगसे उत्पन्न मुसलमानोंके हृदय में हिन्दू । विनाश हो गया। विद्वेषभाव वैसी प्रबलता लाभ नहीं कर सकता था। विजयनगरमें हिन्दूराजाकी वजहसे मुसलमानोंके अनेक प्रसिद्ध मुसलमान सरदार मूलतः ब्राह्मण धे: स्वेच्छाचारमे बाधा तथा मरहठोंके जातीय भाव सुर- पीछे धर्मत्याग करनेको वाध्य किये गये। किन्तु फिर क्षित रखने में आंशिक सहायता मिलना ही ७वां भी हिन्दुजातिके प्रति अनुराग एकदम विलुप्त नहीं हो। कारण है। गया था। यानी राजत्यके अन्त में इस तरहकी घट- ८ महाराष्ट्रदेशका भौगोलिक अवस्थान भी मरहठोंके माओंकी अधिकतासे मरहठोंको मुसलमान-दरवारमें । लिये स्वाभाविक स्वातन्त्राभियता प्रदान करनेवाला है। घसनेमें वडी सुविधा हुई और वे सब तरह के राजकार्य में महाराष्प्रदेशका प्राम्य समूह प्रायः छोटे प्रजातन्त्र राज्य 'दक्षता प्राप्त कर सके। की तरह गठित हुआ है। यथासमय सरकारी माल- ३ हिन्दू-स्त्रियोंस व्याह करने के फलसे हो मसल- गुजारो चुका देनम भीतरा शासनके काममें राजाको मानोंको कई पीढ़ियों में हो उनके हृदयमें हिन्दुओं के प्रति हस्तक्षेप करनेको जरूरत हा नहीं होती थी। इस कारण जो विद्ध पभावथा, यह विलुप्त हो गया, किन्तु हिन्दुओं-' से देशमे प्रतिष्ठित राजशक्ति के विनाशके लिये मरहठीक के लिये मुसलमानी-पाणिग्रहण निषेध रहनेसे वे किसी राजनीतिक स्वतन्त्रताके खो देने पर भी प्राम्यसगठनके तरह ही मुसलमानों के साथ मिल न सके। इसी । फलसे उनके हृदयसे स्वाभाविक स्वतन्वाद्वारका अंकुर कारण मौका पाते हो मुसलमानों की जड़ खोद डालनेमे विदूरित नहीं हुआ । कार्यदक्षता, अध्यवसाय, राज- उन्होंने जरा भी अनाकानो नहीं को। नोतिक, दूरदर्शिता आदि गुणमे भी वे भारतीय अन्य • ४ उत्तरभारतमें जिस तरह अफगानिस्तान और इरान- जातियोंको अपेक्षा श्रेष्ठ थे। इसी कारणसे राजपूर्तीको से स्वधर्मोन्मत्त मुसलमान दल दलमें आ कर वहां हिन्दू तरह मरहठे अपने प्रनष्ट स्वातन्लाका उद्धार कर हो विप अक्षुण्ण रख सकने में समर्थ हुए थे, उस तरह धैठ न गये, वरं समूचे भारतवर्ष में हिन्दू-साम्राज्यको महाराष्ट्रमें नहीं हो सका । उत्तर-भारतकी तरह दक्षिणमें प्रतिष्ठा करने में अग्रसर हुए थे। नित्य नये इरानी सैन्यों के समागमको सुविधा न यो। यही सब कारण अधिकांश उत्तर-भारतमें भी मौजद इससे मुसलमानों को कुछ ही दिनके बाद मरहठोंकी थे। . फिर भी मरहठोंकी तरह समुद्र हिमाचल- , सहायता वाध्य हो कर लेनी पड़ती थी। क्योंकि विना व्यापी हिन्दूसाम्राज्यको स्थापनाको चेटा न की गई:. इनको सहायताके राजकार्य चल नहीं सकता था ।! मालम होता है. कि अन्तिम दोनों कारणों के अभायसे Vol, IVII, 66