पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

. .. . . महाराष्ट्र । ज्ञानेश्वर और मुकुन्दराजने परमासान और भनि भलिभाति मालूम होगा । यहां पर नमान्न सूत्रके अपलम्वन पर महाराष्ट्र साहित्यकी प्राणप्रतिष्ठा प्रयोजनीय विषयोंका संक्षेपमें उन्लेम किया anti की थी। परबत्ती कवियों की चेष्टासे यह प्राममा परि! अपर लिप्सो घटनाम जो शामिल थे, सबसे पहले, पुष्ट हो कर आमिर रामदास के असामान्य प्रतिमायल.. । स्वदेशका उद्धार करना जिनके जीवनका महारथा. से अपूर्यविजयधीमे विभूषित हुया । उस समय उन्हें बहुत सी कठिनाइयां झेलनी पड़ी थीं। स्यगमें महाराष्ट्र साहित्य इस पूर्णविकासकालमें यहुमण्यक जो सय मराठा सुलतानके अधीन रह कर अच्छे पडे .. भक्तारमणियों ने सात्त्यिकभायपूर्ण फयिता लिए कर ओहदे पर धे तथा पागोर पा कर मसे दिन बिताते थे। मातृभाषाको अलएन किया था। शेख महम्मद नामक इनमें से यहुतेरे पियाजी-प्रम र स्यदेशोद्वारकापोर. ' . एक मुसलमान कविने योगस ग्राम नामक प्रथको हौके विगद पड़े हुए शेवि, उन लोगों को मदद पा. रचना गोर तुकारामकी तरह परदरपुरके बिलदेव की ! कि शायद स्वदेगोद्धार कामियों को बेटा सफल न हो। उपासनामें अपना तन न लगा दिया था। इसो समय इस कारण अनिश्चित स्माधोननाफे लिये अपनी नौकरी मराठी गद्यरचनाका भी सूत्रपात गुमा। मरहठा सर पर लात मार कर पिद्रोहमें शामिल होना उन्होंने गा वारों द्वारा अनुप्टिन युद्धादिको विजययानकि आधार : नहीं समझा। इन स्यदेशविरोधियोंमिसे मोरे, पुरये, .. पर गोनिकधिना रचनाको प्रा भी इसी समयसे प्रय दलयो, सावन्त, शिरफे मानि वावलसे नया मोहिम, मान, तित हुई। फसतः महारराष्ट्रियोंके जातीय अभ्युदयले गुमर मादि कौशलसे स्थासमें न्याये गये थेदेशिक फुछ पहले महाराष्ट्र साहित्यको इस प्रकार पूरो उन्नति : शत्रुओंमें विज्ञापुरफे पठागपंशीय मुलतान पोर mr. हुई थी। भारतके म गल इम स्वाधीनतालोलुप मरहठॉ. प्रधान अभ्युदय । विरोधी थे। दोनों शक्ति के साथ एक ममयों युर करना महाराष्ट्रात जातिके अभ्युदयको उपादान सामग्री अच्छा न समझ कर गियाजी प्रा. मराठा रिजा. किस प्रकार मुसलमानों के नामगकालमें हो परिपुष्ट हुई; पुरके सुलतानके विरद चढ़ाई कर दी और मुगलोस धो, धर्म और साहित्यगन उन्नतिफे फलसे किस प्रकार : मेल कर लिया । १६६२६० तक ये लोग दिमापुर के महाराष्ट्र जनमाधारणका निन सुसंस्कृत और भाम सुलतानको सेनाओं को परास्त करते रहे। जब उन्होंने निर्भरगोल हो उठा था, किस प्रकार मुसलमानाय आरम- देवा, कि सुलतानको यार बार परा:यमे भारमा कलह और दुये उनाकालमें मराठागण दोवानी, फौज- कुछ पढ़ गां तक मुगलों को भी धीरे धीरे लोग , धारी और देशरक्षा आदि काम कार्यदक्षता और बुद्धि दक्षिणापथसे हटाने को कोशिश करने लगे। कि मत्ता दिखलाते हुए गुमलमाफि दाहिने हाथ बन गये। उनको यह चेष्टा सहसा फालयती महु। मठी .. थे, उसी का निधरण यहां तक लिया जा चुका । इसी साइस्ताको परान तो किया, पर उन्हें मां नगर समय रामदासने पार्थिवमानपूर्ग अपूर्व पोररगप्रधान पक्षीय सेनापनि असा हायमे अपनी परालय , साहित्यको मष्टि कर किस प्रकार नदेशवासोपं दृदय स्वीकार करनी पड़ी। उसका फयदुभा, विनि में म्याधीनताका योत घो दिया था, यह भी पाउसको नियाजी शिलो आनेको वाब दुप। यहां जाकर मालूम ही है। अभी किस प्रकार यिभित्र मा अधीन एमो मुसोपन उठानी पड़ी, कि यातिनि महाराष्ट्र . यह महाजाति उस्मनि पथ पर पड़ने लगी और फिस: राज्यका कुर ही नष्ट होगा घाना था कि . . मकार फिरमे उनकी अयनति दुई पद पाठकगणको वारियों की यिभ्यस्ता और देशीय गनमाधrati शिवाजी सम्माती, गाराम, मा. पेनया मापय राय, महानुभूमिमे घोर नियामक निधो मरा गो : रघुनाथ राम, गदाशिवराय, माधव राम नारायण दासी वाया न पशो। कुजरिन भारमियाजी मालेमा । रागमि मिन्धिपा ). होलकर मादि गद पद से धारण भातुर्य बहसे शितास मागे । मम Par far