पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२७७

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महाराष्ट्र २४५ हो गई। एकच्छत्र हिन्दू-साम्राज्य स्थापनका सुयोग। लिये कहीं छिप रहे होंगे। यह अफवाह चारों ओर - सदाके लिये जाता रहा। मगरेजों को अपनो क्षमता | फैल गई। इसी समय वाजीगोविन्द नामक एक व्यकि . :फैलानेका मौका मिला। अपनेको भाऊसाहव वतला कर राजसिंहासनका दावा , १७७२ ई० में माधवरावके छोटे भाई नारायणराय, । करने लगा। कहने की आवश्यकता नहीं, अगरेज लोग जिनकी उमर १६ वर्षकी थी, राजसिंहासन पर बैठे। उसके पक्षमें मिल गये। किंतु थोडे, हो दिनों के अन्दर दादासाहब (रघुनाथराव) उनके नामसे राजकार्य यह धूर्त पकड़ा गया । पूनाके दरवारने उसके विचारके चलाने लगे। आनन्दोवाईको कुमणासे उनकी मति ! लिये पंचायत या कमोशन पैठाया। धूर्तको पोल खुल भ्रष्ट हो गई। उस पापीयसीको प्ररोचनासे १७७३ ई०के | गई और उसे प्राण-दण्ड मिला । इस घटना शेष होने भाद्रमासमें नारायणराव बड़ी बुरी तरह मार डाले गये।। न होते कोल्हापुर-पतिने पेशयाके राज्यमें उपद्रय अघ पूनामें फिरसे गन्तर्यिप्लय बड़ा हो गया। सुचतुर आरम्म कर दिया । जो कुछ हो, ऐसे दुःसमयमें भी अंगरेज लोग इसी मौके पूर्वरुत संधिको तोड़ कर। महाराष्ट्र राजमन्त्रो नानाफडनवीसके मन्त्रणाकौशल. स्वार्थ-साधनमें लग गये । नारायणरावके सद्योजात से तथा मरहठों के अध्यवसायगुणसे अंगरेजो की कई औरस पुत्रको गद्दीसे उतार कर दुराचार रघु- वार हार हुई। उन्होंने दो वार पेशवासे क्षमा मांगो। नाथको सिंहासन पर प्रतिष्ठित करनेके लिये अंगरेज आखिर मरहठोंने उनसे दो बार मेल किया, इस पर भी वद्धपरिकर हुए। नारायणरावके मारे जाने पर जब अगरेज कम्पनीकी अबाध्यता घटी नहीं। उन्होंने दिला. पूनामें गोलमाल खड़ा हुआं, उसी ममय उन्होंने महा । यत और कलकत्तेके कर्तृपक्षको असम्मतिका उल्लेख राष्ट्र राज्यके एक बन्दरको अन्यायपूर्वक अधिकार कर करते हुए पुनः सन्धि तोड़ दी। अतपय दोनोंमें फिरसे लिया था। मरहठे लोग आज तक उनके साथ सदाव. युद्ध छिड़ गया। दुर्भाग्यवशतः होलकरने भो इस समय हार करते या रहे थे । 'किंतु इस समय भङ्गरेजों का विद्रोहो हो कर अङ्करेजरक्षित रघुनाथका पक्ष लिपा । महा राज्यलोम ऐसा दुर्निवार हो उठा था, कि वे लोग अपना राष्ट्रदेशका ऐसा दुर्भाग्य औरङ्गजेवकी मृत्युके वाद और मतलब निकालने के लिये पुना दरबार में उत्कोवप्रदान, कमी भी नहीं हुआ था। आखिर भरेजोंने मरहठोंके हाय विद्रोहको उत्तेजना, राजपुरुषों के मध्य विढे प-सञ्चार युद्ध में नितान्त जर्जरित हो कर अपनो पराजय स्वीकार आदि विविध उपायका अवलम्यन करने लगे। अतः , कर ली। उनका दर्प अच्छी तरह चूर्ण हुआ । रघुनाथ मरहठों के साथ उनका युद्ध अनिवार्य हो गया। छा और आनन्दोवाई धन्दी भावमें कालयापन करने लगी। वर्षके बाद यह युद्ध शेष हुआ। भगरेजोने पेसा अन्याय अनन्तर नारायणरावफे छोटे लड़के सवाई माघय. युद्ध और कभी भी नहीं किया था। पृथ्वीको कोई भी राय (माधवराव नारायण )-को राजा बना कर नाना- सुसभ्य जाति ऐसे अधर्म युद्धमें प्रवृत्त हुई होगी, ऐसा फड़नयोस सुचाररूपसे राजकार्य चलाने लगे। निजाम मालम नहीं होता। और रोपू सुलतान मरहठोंकी प्रधानता स्वीकार करनेको . स समय पूनामें मरहठो के मध्य एक भी मेता न रह । वाध्य हुए। अव. माधोजी शिन्दे उत्तर भारतको गये। गये। मन्त्रिमण्डल में मतभेद हो गया था। सभी अपना , यहां उन्होंने गुलाम, कादिरके पैशाचिक अत्याचारसे अपना मतलब निकालनेमें तुले हुए थे। राजकोप वाली। दिल्लीयर और उनकी पुरमहिलामोंको बचा कर उस पड़ गया था भौर जातीय ऋणका परिमाण बढ़ जानेसे प्रान्तके विद्रोही मुसलमानोंको पादशाहको मधीनता पना दबारको अवस्था बड़ी शोचनीय हो गई थी। इस स्वीकार करनेसे वाध्य किया... बादशाइने उन्हें समय एक दूसरी विपदने आ घेरा-भाऊसाहब जो (१७८६.) 'आलिजा यहादुर'को उपाधिके साथ पानीपतमें मारे गये थे उनको लाश यहाँ पर नहीं। अपने राज्यमें गोहत्या नहीं करनेको सनद दो। राजा •मिली। इसलिये यहुतों ने समझा, कि वे आत्मरक्षाके पूतानेमें मो मरहठोंका माधिपत्य निकएटक दृक्षा। ___roi. XVII 62 .