पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२८३

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महाराष्ट्र शिवाजीने पैतृक राज्यको उपाधि धारण कर स्वनामा-1 भयाघरूपसे होता था। उस समयका होन इस समयके कित मुद्रा प्रचलित की। यह नयो मुद्रा 'शिवराई होन' ३॥) रुपयेके बराबर होता था। 'शिवरायका होन' नामसे प्रसिद्ध थी। यह होन' शब्द शियाजीने सोने के सिकेकी तरह चांदी और तांय- . कर्नाटी होन्न' शब्दका अपभ्रंश है। होन्नका अर्थ | फा सिपका भी चलाया। यह सिपका 'शिवराई रूपया' "सुवर्ण है। यही शब्द फारसीमें होन रूपसे उच्चारित और 'शिवराई पैसा' कहलाता था। शिवराई पैसा होता है। आज भी महाराष्ट्रदेशमें तमाम पाया जाता है। किन्तु कर्नाटकके प्राचीन हिन्दु राज्यों में केवल सोनेके सिक्के शिवाजीफे चलाये हुए सोने और चांदीके सिक्के अमी का चलन था। देशीय राजाओं के नामानुसार जो सोनेके नहीं मिलते। दूसरे जो सब प्राचीन होन काफी तौर सिपके चलते थे, उनमें दो पकका नमूना आज भी कहों पर नाना स्थानों में मिलते हैं, उनके अधिकांशके ऊपर कहीं दिखाई देता है। ये सब सिक गजपति होन या अस्पष्ट पारसी अक्षर लिखे हुए दिखाई देते हैं। कहीं कहीं अश्वपति होन नामसे विख्यात थे। विजयनगर राज्यमें होनके ऊपर श्रीकृष्ण और बराह अवतारके चित्र भी होनका प्रचार अत्यधिक था। वहां विद्यारण्य स्वामी- देखने में आते हैं। प्रवाद है, कि शिवाजीके समय सज्जन- के तपःप्रभावसे एक वार सोनेके सिकेकी वर्षा हुई थो, गढ़ नामक दुर्ग में असंख्य होन थे। आज भी उस प्रान्त यहां सिके प्रचारवाहल्याने यह भी एक कारण हो । में खेत जोतते समय दो एक होन मिल जाते हैं। इस सकता है। उस सयय समूचे दक्षिण में होनको तरह होनका आकार चनेको दालके जैसा होता है। इसी- मोहरका भी प्रचार कम न था। कितने ही लोगोंका से यहांके लोग उसे अकसर 'सोनेको दाल' ही कहा अनुमान है, कि मुसलमानोंके समयमे ही रौप्यमुद्राका करते हैं। . . पहले पहल प्रचार हुआ। यह अनुमान यदि सत्य हो, ___उस समय रायगढ़में महाराष्ट्रदेशको राजधानी थी, 'तो कहना होगा, कि महाराष्ट्र और कर्नाट देशका अधि. इसीसे शिवाजीने यहां ही टकसालघर वनवाया था। फाश सोना लूटा जा कर दिल्ली लाया गया था, इससे इसके बाद राजधानी सातारामें लाई गई, जो उस समय 'बाँके शासक चांदीके सिकोका प्रचार करनेको वाध्य | एक छोटा-सा गांव था। शिवाजीको मृत्युके याद हुए थे। सम्भाजी और राजारामक राज्यकालमें मुगलों के साथ ___जो हो, शिवाजीके समयमें महाराष्ट्र देशमें कई तरह- अनवरत युद्ध होने रहनेके कारण देशमें घोर विप्लव मच 'के होन प्रचलित थे। शिवाजीके अन्यतम कर्मचारी गया था। उस अशान्तिके समयमें नये सिरके चलानेकी 'भीयुक्त कृष्णाजी अनन्त समासद महोदयके द्वारा रचित कैसी व्यवस्था थी, टकसालका काम जारी था या नहीं, "शिवछत्रपतिका चरित्र" नामक ग्रन्थमें जो छन्नीस इसका पता नहीं लगता । मालूम होता है, कि उस समय प्रकारके 'होन' का वर्णन आया है, उसमें कुछके नाम नया रुपया नहीं ढाला जाता । पयोंकि, राजाराम मुगलों- 'गीचे दिये जाते हैं-१ पातशाही, २ शिवराई, ३ के अत्याचार से अपना घग्वार छोड़ कर्नाटके अन्तर्गत काधेरीपाकी, ४ त्रिशूली, ५ अच्युतराई, ६ देवराई, ७ जिलि नामक फिलेमें रहनेको वाहुए थे। महाराष्ट्रका रामचन्द्र राई, ८ गुती, ६ धारवाड़ी, १० ताडपत्री, ११ / राजसिंहासन भी बहो उठ कर चला गया था और वहो 'पाकनाइको, १२ तओरो, १३ जड़माल, १४ बेलुड़ी, १५. बहुत दिन तक रहा भी, किन्तु इसका कुछ भी प्रमाण नहीं महम्मदशाही, १६ रमानाथपुरी। ये ही सब होन महा। मिलता, कि वहां नये रुपये ढालनेके लिये टकसालघर पाद्रमें बहुत दिनों तक प्रचलित थे। इसके बाद टीपू भी बना था। फिर राजारामने जिझिसे महाराष्ट्रदेशके जो कई देवीत्तर और ब्रह्मोत्तरदान पत्र लिखे थे, उनमें सुलतानने 'सुलताना' और 'यहादुरी होन' दो तरह के रुपयेका कहीं जिक दिखाई नहीं देता। किन्तु शिवाजी. सिके चलाये थे। इसके सिवा दिल्लीके बादशाहोंके । ने ऐसे जो दानपत लिये, उनमें कई जगहों में सोनेके . 'आलमगिरी' नामक होनका आदान प्रदान सभी जगह सिझेका जिक आया है।