. पहारो-महालय .
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अनारका बीज, देवदार, पुनर्णया, ग्यालककड़ीका मूल, | महायंक (स'. लि. ) अतिशय मूल्यवान् , घेशी दामका ।
यवक्षार, कुट, विड़ा, चितामूल, हवूपा, वय और पच महार्थयत् । स० वि०) महार्य भस्टया मतुप मस्य च ।
प्रत्येक २ तोला ; पाकका जल १६ सेर। मात्रा २से ३ महार्थ युक्त, जिसका गूढ़ अर्थ हो।
तोला, अनुपान मांसफा जूस और दूध बतलाया गया | महाक ( स० क्लो०) महद भाद्र फम्। १ बनाक,
है। इसके सेवनसे यकृत्, लोहा आदि नाना प्रकारके रोग जंगली अदरक । इसका गुण अग्नि, दीपन, धारक, सक्ष,
शान्त होते हैं। (भैषज्यरत्ना० प्लीहारोगाधिक) घायु और कफनाशक माना गया है। २ शुण्ठी, सोंठ।
महारौद्र ( स० पु०) १ अत्यन्त रोद्र, कड़ी धूप । २. महार्य (स० पु०) महान् विपुलोऽोऽस्य । पृक्ष-
'शिव, महादेव । ३ पाईस मानाओंके छन्दों की संख्या । . विशेष।
महारौद्री (सं० स्त्री०) दुर्गा ।
'महायुद (स० क्लो०) महद् मयुदम् । दशायुद, सौ
महारीरच (सं० पु.) यरूणामय इति रुरु-अण, महान् ' करोड़ या दश भयुदकी संख्या ।
रौरवः तत्र गता जीवाः काव्यन् नामक हरुभिः पीड्यन्त महा (सफ्लो) महान महः मूल्य मर्यादा यस्य ।
अतएवास्य तथात्वं । नरकविशेष । जो इस नरकर्म पतित १श्वतचन्दन, सफेद चन्दन । (नि.)२ महामूलपयान,
होते हैं उन्हें क्रयाद नामक रुरु (कुषकुर ) गण अत्यन्त शकिमती। ३ महापूजा योग्य।
पीड़ा देते है इसलिये इस नरकका नाम महारीरय पड़ा। "यस्माभागार्थिनो भागान नाकल्पयत मे मुराः ।
है। अग्निपुराणमें लिखा है, कि जो लोग देवताओंका घरामाणि महाहाणि घनुपा शातयामि वः ।।"
• धन चुराते या गुरुकी पत्नोके साथ गमन करते हैं, वे ही
( रामायण श६६१०)
इस नरकमे भेजे जाते हैं। (अमिपु०)
महाल (अ० पु.) १ यह स्थान जहां बहुत-से बड़े मकान
२ सामभेद।
हों, मुहला । २ भाग, पहा । ३ वन्दोवस्तके फामके
महारोहिण (सं० पु०) दानवमेद ।
लिपे किया हुआ जमोनका एक विभाग, जिसमें कई
महाध (सं० त्रि०) महान अधिकः अर्को मूल्यमस्य ।१ गांव होते हैं।
महामूल्य, बेशकीमती । (पु०) महान् अर्को मूल्य यस्य। महालक्ष्मी (सखा०) १ महता लक्ष्मी राधा, नारा.
यणको शक्ति।
२ जिसका मूल्य ठीकसे अधिक हो, महगा। ३ महा-
सोम लता। ४ लायकपक्षी।
'यन्मायया माहिताभ नाविष्णुशिरादयः ।
महाघता (सं० स्त्री०) महायं स्य भायः तल टाप । महा-
वष्यवास्ता महासम्मी पराराधो दन्ति ते ।
मूल्यत्व, महामूल्यका भाव वा धर्म ।
यदर्दाना महाप्नदमोः प्रिया नारायणस्य च ॥"
महाध्य (स .) १ महामूल्य, पड़े मोलका । (पु.),
(ब्राय पर्तपु० प्र० ०० ५१ .)
२ लावकजातीय पक्षिविशेष ।
२पक यणिकस जिसके प्रत्येक वरणने तीन
महाधिस (सपु० ) महद अश्चियस्य । अग्नि।
रगण होते हैं।
महार्णव ( स० पु०) महान् सुविशाल अगवः । १ महा- महालक्ष्मीपुर-प्राचीन मगरमेव ।
समुद्र, बहुत बड़ा समुद्ध। महान् प्रणय इव प्रसादादि- महालय-राणवर्णित रौद्रतीर्थमेर । यहां देवादिदेय
गुणयाल्पात् तदात्यं । २ शिव, महादेव । ३ पुराणा- महादेयके उद्देश्यसे स्नान और पूनादि करनेसे सब पाप
नुसार एक दैत्य जिसे भगवान्ने फूर्म अवतारमै अपने जाता रहता है। स्कन्दपुराणके महालय-जाहारम्पमें
दाहिने पैरसं उत्पन्न किया था।
इसका विस्तृत विवरण लिखा है।
. "सौराया दरदा चैय द्राविड़ाय महार्णवाः । महालय ( स० पु० ) मद्दतां जैनानामालया, महान गालय
एते जनपदाः पाद स्थिता ये दविरोऽपरे ।"
इति था। १ विहार । २तीयं । ३ परमात्मा ४
(मार्कपडेयपु० ५८३२) आश्विनका कृष्णपक्ष जिसमें पितरोंके लिये तर्पण और
महार्थ (संपु०) १ दानवभेद । २ महामाव्य । श्राद्ध आदि किया जाना है।
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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२८९
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