पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२९१

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महावट-महावन

करनेसे समो प्रकारके कोढ़, गण्डमाला, भगन्दर और सनि यहोंसे यमुना पार कर अपनी दस्युवृत्तिको चरि- नाडीव्रण आदि रोग नष्ट होते हैं। ( सुधु त क्रुष्टििक०), तार्थ किया था। महावट (हिंस्त्री ) पूस मायको वर्षा, वह वर्षा जो _____ कालक्रमसे यह प्राचीन स्थान महारण्यमें परिणत जाड़े में हो। हुआ। इतिहास पढ़नेसे मालूम होता है, कि मुगल. महावणिज् ( स० पु.) महो वणिक् । श्रेष्ठ वणिक । बादशाह शाहजहां इस वनभूमिमें शिकार करने आये थे महावत (हिं पु० ) हाथी हांकनेवाला, फोलवान। और चार वाघोंका शिकार किया था। प्रसिद्ध गोकुल महावनारी ( सं० पु०) २५ मात्राओं के छन्दों की संख्या।। नगरी इसके उपकाठमें अवस्थित है। महावन ध्वस्त महावद ( स० पु. ) ब्रह्मत्रादो । और श्रोहीन होने पर यहाँफे समो लोग माध कोस दूर महावध (संपु०) वन्न । हट कर यमुनाके किनारे गोकुलमें घस गये। पुराणमें महायन (म० फ्लो० , महद् विपुलं वनं । वृहदन, श्रीकृष्णके बाल्यलीलाक्षेत्र गोकुलका हो उल्लेख देखने में 'घोर जङ्गल। पर्याय-अरण्यानो, महारण्य, महाटयो। आता है। आज मा यहाँके लोग महायनके ध्वंसाव. महावन-२ युक्तप्रदेशके मथुरा जिलान्तर्गत एक तहसोल। शेषको हो कृष्णलीलाका आदि स्थान बतलाते है । शायद यह अक्षा० २०१४ से ७४१ उ० तथा देशा० ७७ यहाँ स्थान पहले गोकुल कहलाता होगा। अभी घर्त. '४१ से ७७५७ पू०के मध्य अवस्थित है। भूपरिमाण मान जनसमाकोण नदीतटवत्ती उपकएठ हो गोकुल कद- २४० वर्गमील और जनसख्या डेढ़ लाख के करीब है। लाता है। इसमें ४ शहर और १९२ ग्राम लगते हैं । यहाँको प्रधान इस महावनके मध्य नन्दालप ही देखनेलायक है.। उपज जुमार, रूई, चारलो, चना और गेहूं है। वादशाह औरङ्गजेबके जमानेमें मुसलमानोंने उस प्राचीन २ उक्त तहसोलके चार शहरोमेसे एक बड़ा शहर नन्द-प्रासादके चारों ओर दोवार खड़ी कर वहां एक और तीर्थक्षेत्र । यह अक्षा० २७२७ ३० से ७७ ४५) मसजिद वनवाई । गाज भो-हिन्द भीर योद्धकीर्तिके. पू० के मध्य यमुनाके वार किनारे स्थित है। जन सैकड़ों निदर्शन उस मसंजिदमें देने जाते हैं। यह स्थान संख्या पाँच हजारसे ऊपर है। 'अस्सोखंभा' कहलाता है। ८० खंभोंके मध्य सत्ययुग, ___ यह बनभूमि श्रोहणका लीलाक्षेत्र समझो जाती है। प्रेतायुग, द्वापरयुग, मोर कलियुग नाम चार खंभोंमें इस कारण वहुत दिनोंसे इसका श्रादर चला आ रहा कालाँचनाशापक चिलायलो दिखलाई गई है। अलाया है। सुप्राचीन जैन, बौद्ध, शैव, गाणपत्य और वैष्णव, इसके बाकी खमोंमें भी कितने हिन्दू चित्र स्रोदित हैं। आदि हिन्दू धर्म सम्प्रदायको पुराकीर्तिका निदर्शन जो फादर टिफन थलार ११वां सदोरे मध्यमागमें महायन इधर उधर पड़ा है वह विभिन्न साम्प्रदायक प्रभावका' देख फर लिख गये हैं, कि उस वृहत् भट्टालिकाका एक अस्तित्व सूचित करता है। मथुरा देखो। अंश हिन्दुगोंके मन्दिर और दूसरा मंज मुसलमानोंकी • किसी समसामयिक इतिहास-लेख गका वृत्तान्त 'मसजिद रूप। श्वहन होता था। पढ़नेसे मालूम होता है, कि १२३४ ईमें दिलोके बादशाह पहले हो कह आये हैं, नदीतीरवती गोकुलगाम महा- सुलतान शमसुद्दीनने जो कालिअर जोतने के लिये सेना धन ध्वंसके बाद वसाया गया है। यहां बहुत ही कम दल भेजा था उसने इसी महावनमें छावनी डाली थी। प्रावोन फोतिका निदर्शन देखने में आता है। अधिकांश रूप गोस्वामोके मृन्दावन उद्धारकालमें यह ८३ वनोंके अट्टालिका और मन्दिरादि जो धोकणके लोलास्थलमप- अन्तर्गत समझा जाने लगा। १८०४ ई०में महाराष्ट्रराज में वर्णित हो फर तीर्थ समझे जाने लगे हैं, वे भी नितांत यशोवन्त राव होलकर फरवावाद रणक्षेत्रमें पराजित, आधुनिक कालके मालूम नहीं होते । १४७६ ई. यहां हो कर सो स्थानके निकट यमुना नदी पार कर गये। पलमाचार्य नामक एक मानी वैष्णवका आविर्भाव हुमा। ये। इसके दूसरे ही यवं प्रसिद्ध पठान-कैत अमोर। उन्होंने अपने नामसे वल्लभाचार्य मत चलाया। यहां