पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/३११

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महिन्-महिलि महिन (सं० वि०) मह 'प्रेक्षादिभ्य इनिः' इति इनिः। महिया ( हि० पु०) इसके रसका फेन जो उबाल गने पर महत् वड़ा। ! निकलता है। महिन (सं. क्लो०) महति महाते या मह पूजायां, ( महे- महिर ( स० पु० ) मधते पूज्यते इति मह पूजायां ( सप्ति- - रिनण च । उपप २५६ ) इति चकारादित्युक्त इनन् । . कल्यनि महीति । उण ११५५) इति इलच लस्य रत्यं । सूर्य । १राज्य (त्रि०)२ पूजनीय, पूजने योग्य ।। 1 महिरकुल (सपु०) एक राजा। मिहिरकुल देखो। महिनस (सं० पु०) शिरकी एक मूर्तिका नाम। । महिरावण ( संपु.) एक राक्षसका नाम । कहते है, ( भागवत ३।१२।१२) कि यह रावणका लड़का था और पातालमें रहता था। महिन्धक ( स० पु० ) १ इन्दूर, चूहा । २ नकुल, नेवला । यह रामचन्द्र और लक्ष्मणको लंकाके शिविरमे उठा ३ भारवहनार्थ दन्तसंलग्न रज्जु, भार उठानेका छौंका, कर पाताल ले गया था। रामचन्द्र और लक्ष्मणको • सिकहर। इसे वहगीके दोनों छोरों में बांध कर कहार हेढ़ते हुए हनुमानजी पाताल गये थे और महिरावण. को मार कर राम लक्ष्मण को ले माये धे। बोझा उठाते हैं। महिला (स' स्रो०) मद्यत इति मह पूमायां ( सस्तिकल्पनि. महिपाल (सपु०) महीपाल देखो। महीति । उण श५५) इति इलच् टाप। १ खोमात्र । महिफर (हिं० पु०) मधु, शहद । २ प्रिय गुलता, फूलनिय गु । ३ रेणुका नामक गन्धदृष्य । महिमख ( स० पु०) देवसङ्घ. देवालय । ४ मदमत्ता । महिमन् ( स० पु०) महतो भावः महत् (ध्यादिभ्य महिलाख्या ( स०सी०) महिला इति आख्या यस्याः इमनिज या उण ५।९।१२२) इति इमनिच ततः (टे। सा। महिला । पा ६१९५५) इति टिलोपः। महत्य, आठ प्रकारके । महिलारोप्य ( स० को०) दक्षिणदेशका एक नगर। ऐश्वर्यो में से एक ऐश्वर्य । महिलाहया (सत्रा०)महिला इति पाहयो यस्याः "अणिमा लधिमा प्राप्तिः प्राकाम्य' महिमा तथा । सा। महिला, प्रियंगुलता । प्रर्याय- ईशित्यञ्च वशित्वञ्च तथा काम वसायिका ॥" "प्रिय गु फलिनी कान्ता लता च महिलाया। गुन्द्रा गुन्द्रफला श्यामा विश्वकरीनागनाप्रिया ।" महिमा ऐश्वर्य प्राप्त होनेसे उनका प्रभाव इतना बढ़ (भावप्र.) जाता है, कि मनमाना कार्य करने में समर्थ होते हैं। महिलि-छोटा नागपुर और पश्चिम बङ्गवासी पहाड़ी योग द्वारा ही अणिमादि आठ प्रकारके ऐश्वर्य लाभ होते जातिविशेष । पालको ढोना और सेत जोतना ही इनकी हैं। योग देखो। । प्रधान उपजोयिका है। कोई कोई वांसको टोकरी भी २ माहात्म्य, गौरव । ३ उत्कर्ष, प्रशंसा। ४ राजतरं. यना कर अपना गुजारा चलाता है। ये साधारणतः गिणोके अनुसार एक मन्त्री पुत्र । यांसफोड़, पातर, सुलाड़ी, ताएडो और मुण्डा नामक महिमस् ( स० त्रि०) प्रचुर, अधिक । पांच श्रेणियों में विभक्त हैं। इन पांचों में भी फिर. ३४ महिमभट्ट (सं० पु०) मन्मटभट्टका नामान्तर । स्वतन्त्र थोक देखे जाते है। इन सय विभिन्न यशः नामोंके साथ संथालोंकी श्रेणीविशेषके नाम मिलते महिमसुन्दर (स० पु० ) जैन अन्धकारभेद । जुलते हैं। महिलि-मुएडाओंको कोई कोई मुएडजाति- महिमा (सं० स्त्री०) महत्य, महिमा । महिमन देखो। की एक शाखा मानते हैं। महिमावत् (स० क्लो०) मापांण्डेयपुराणानुसार एक मानभूमय पातर महिलियोम यदुत कुछ हिंन्दुका प्रकारकं पितृगण । माचरण देखा जाता है। ये लोग गाय, मूभर भाहिका महिम्न ( स० पु०) शिवका एक प्रधान स्तति जिम : मांस नहीं पाते और न पायोकय मध्य अथवा मातृ पुष्पदन्ताचार्यने रचा था। ! कुलमें आदान-प्रदान हो करते है। किन्तु सात पीढ़ीके महिनार (सं० पु०) हरिवंश वर्णित एक राजा। । पाद आदान-प्रदान चलता है। Vol. IPL 10