पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/३१३

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महिन्-पहिलि २७७ मदिन (सं० नि० ) मह 'प्रेक्षादिभ्य इनिः' इति इनिः।। महिया (हिं. पु०) इसके रसका फेन जो उबाल पाने पर महत् वड़ा। निकलता है। महिन ( स० क्ली० ) महति महते या मह पूजायां, ( महे- i महिर ( स० पु०) महते पूज्यते इति मह पूजायां ( सनि- • रिनण च । उण, २१५६ ) इति चकारादित्युक्त। इनन् । .. कल्यनि महीनि । उण ११५५) इति इलच् लस्य रत्वं । सूर्य। १ राज्य । (लि.)२ पूजनीय, पूजने योग्य। महिरकुल ( स० पु० ) एक राजा। मिहिरकुल देखो। महिनस (स० पु०) शिवको एक मूर्तिका नाम। । महिरावण ( स० पु. ) एक राक्षसका नाम । कहते है, (भागवत ३।१२।१२) कि यह रावणका लड़का था और पातालमें रहता था। महिन्धक ( स० पु.) १ इन्दूर, चूहा १२ नकुल, नेवला ।। यह रामचन्द्र और लक्ष्मणको लंकाके शिविरसे उठा । कर पाताल ले गया था। रामचन्द्र और लक्ष्मणको ३ भारवहनार्थ दन्तस लग्न रन्जु, भार उठानेका छौंका, · सिकहर । इसे वहगीके दोनों छोरोंमें वांध कर कहोर । दृढ़ते हुए हनुमानजी पाताल गये थे और महिरावण. को मार कर राम लक्ष्मणको ले आये थे। • वोझा उठाते हैं। महिला (स' स्रो०) महत इति मह पूजायां । सप्लिकल्पनि. महिपाल (संपु०) महीपाल देखो। महोति । उण १३५५) इति इलच् याप्। १ स्रोमात । महिकार (हिं० पु.) मधु, शहद । २ प्रियंगुलता, फूलप्रिय'गु । ३ रेणुका नामक गन्धद्रष्य । महिमस ( स० पु०) देवसव, देवालय। ४ मदमत्ता । महिमन् (स'० पु०) महतो भायः महत् (पृथ्वादिभ्य महिलाख्या ( स. खो०) महिला इति भाख्या यस्याः हमनिज वा उण, ५२१११२२) इति इमनिच ततः (टेः। सा। महिला । . पा ६४११५५ ) इति टिलोपः। महत्व, आठ प्रकारके महिलारौप्य ( स० को०) दक्षिणदेशका एक नगर । ऐश्वर्योमेंसे एक ऐश्वर्य । महिलाहया ( स० स्त्रा०) महिला इति आहयो यस्याः "अधिमा लधिमा प्राशिः प्राकाम्य महिमा तथा। सा। महिला, प्रिय गुलता । प्रर्याय- ईशित्वञ्च वशित्वच तथा काम वसायिता ॥" "प्रिय गु फलिनी कान्ता लता च महिनाया। (अमरटीका भारत) | गुन्द्रा गुन्द्रफला श्यामा विष्यकोना नाप्रिया ॥" महिमा ऐश्वर्य प्राप्त होनेसे उनका प्रभाव इतना बढ़ ! (भाषा) जाता है, कि घेमनमाना कार्य करने में समर्थ होते हैं। माहाल महिलि-छोटा नागपुर और पश्विम यङ्गवासी पहाड़ी योग द्वारा ही अणिमादि आठ प्रकारकं ऐश्वर्य लाभ होते। जातिविशेष । पालको दोना और खेत जोतना ही इनकी प्रधान उपजीविका है। फोई कोई यांसको रोकरी भी हैं। योग देखो। २माहात्म्य, गौरव । ३ उत्कर्ष, प्रशंसा। ४ राजतरं. बना कर अपना गुजारा चलाता है। ये साधारणतः गिणोके अनुसार एक मन्त्री पुन । घांसफोड़, पातर, सुलावी, ताएडो और मुण्डा नामक महिमत् (सलि०) प्रचुर, अधिक । पांच श्रेणियों में विभक्त हैं। इन पांचोंमें भी फिर. ३४ महिमभट्ट (स.पु. ) मन्मटभट्टका नामान्तर । स्वतन्त्र थोक देखे जाते है। इन मव विभिन्न यशफ नामौके साथ संथालोंकी श्रेणीविशेषके नाम मिलते महिमसुन्दर ( स० पु०) जैन प्रन्यकारभेद ।

जुलते हैं। महिलि-मुण्डाओं को कोई कोई मुण्डजाति-

महिमा (सं० स्त्री०) महत्व, महिमा । महिमन देखो। 1 की एक शाखा मानते हैं। महिमावस् (स० लो०) मााण्डेयपुराणानुसार एक _____मानभूमधे पातर-महिलियों यहुन कुछ हिन्दका प्रकारके पितृगण। आचरण देखा जाता है। ये लोग गाय, मूभर आदिका महिम्न (स.पु०) शिवका एक प्रधान म्ताल जिसे मांस नहीं पाते और न एक धोकके मध्य अथवा मातृ पुष्पदन्तानार्यने रचा था। । कुलमें मादान-प्रदान हो करते हैं। किन्तु सात पीढ़ीके महिम्नार (सपु०) हरिवंश वर्णित एक गजा। पाद भादान-प्रदान चलता है। Tol. IVIL 70