पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/३१६

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२७८ महिप-महिप हिन्दूको पूजापद्धति और क्रियाकलापका बहुत कुछ | पुष्टिकारक, मलमूत्र-निःसारक तथा वायु, पित्त और . अनुकरण करने पर भी उनमें आज भी पहाड़ी और रकदोपनाशक । (भा०प्र०) मनसादेवीको पूजा यड़े समारोहसे होती देखी जाती __ देवी भगवतीके उद्देशसे महिपको यलि देनेसे देवी । है। ये लोग कुमी, भूमिज और देशवाली संथालोंके | बहुत तृप्त और प्रसन्न होती हैं। इसके फलसे साधक हायका भोजन नहीं करते । मानभूमके उत्तर जो महिलि सौ वर्ष तक स्वर्ग में रहते हैं । ( कालिकापु०) । रहते हैं वे मुर्देको गाइते, परन्तु पातर महिलि और | महिप'स्वभावतः वलवान, स्थूल शरीरवाला और संथाल परगनेवासी महिलि उसे जलाते हैं। ११ भार ढोने में मजबूत होता है। यह जल या फीचड़में दिनमें श्राद्ध और पिण्डदान होता हैं। | रहना बहुत पसन्द करता है। शरीरके रोप लम्बे, दोनों महिप् (सं लि०) धनवर्द्धन , धन बढ़ानेवाला। सोंग बड़े और टेढ़े होते हैं। इसको फनपटी चौड़ी महिवत ( स० पु०) महावत । और चिपटी, दो पैर पतले, खुर दो भागों में, बटे और महिप (सं० पु०) महति पूजयति देवाननेनेति, महि | शरीरके रोंगटे खड़े होते हैं। मुखमागमें छाती पर और (अधिमह्योष्टिपच । उण ११४६ ) इति टिपच् । स्वनाम पैरकी गांठों पर अन्यान्य अंगीको अपेक्षा अधिक रोप ख्यात पशुविशेष, भैस। पर्याय-लुलाप, चाहद्विपन्, | होते हैं। खाल और पशुओंकी अपेक्षा मोटो होती है। फासर, सैरिभ, यमबाहन, विषज्वरन, वंशभीरा, रज | परन्तु सबसे मोटो खाल इसके . चुतड़ परकी होती है। स्वल, आनूग, रक्ताक्ष, अश्वारि, क्रोधी, फलूप, मत्त, खालसे जूते फोते आदि पनाये जाते हैं। . . " विषाणी, गवली, वली । ( जटाधर ) ___ महिप क्रोधको मानो प्रतिमूर्ति है। अन्यान्य पशुओं ब्राहाण, क्षत्रिय वैश्य, शूद्र और अन्त्यजके भेदसे महिप की अपेक्षा इसके क्रोधके अनेक निदर्शन पाये जाते हैं। पांच प्रकारका है। नदीमें तैरते समय यदि कुम्मोर उसके अधया उसके ___प्राह्मणजातिका महिए यहुत काला, पवित्र, कदमें | दल के गायके यच्चेको पकड़े, तो यह महिपके हाथसे अचा, बहुत खानेवाला और मारक, क्षत्रियजातिका त्राण नहीं पाता। इस समय फोघ्रम मा फर यह नदी- महिप मेंगा, कामी, मोटा, क्रोधी, मारक, बहुत खानेयाला. फोमध डालता है। कुम्भीर जहां उसके बच्चे को ले और ताकतवर ; वैश्यजातिका महिप शान्त, छोटे सींग- गया है जलके भीतर उसी स्थान पर यह पहुँच फा, क्रोधी, योझ ढोनेवाल और बलशालो; शूदजातिका जाता और अपने सींगोंसे उसे भिद डालता है। पीछे महिप अंगभंग, कमजोर, छोटे सींगका, फम क्रोधी, | उस मृत कुम्भोरको ले कर जलसे बाहर निकाल लाता कम खानेवाला और वोझ ढोने में बहुत मजबूत होता है। जो महिष हमेशा जलकी तलाश में रहता है, महा- . इसे सम्बन्ध ज्ञान भी अन्य पशुओंको अपेक्षा अधिक तेजस्वी और भार ढोता है तथा जिसके सोंग वेढंगे है। कहते हैं, किसी पुत्रस्थानीय महिप द्वारा मातृसम्प होते हैं उसे अन्त्यज जातिका महिष कहते हैं। फीय महिपके सन्तानोत्पादन फराते समय, स्वभायज ___ जंगलो महिपके मांसका गुण-दोपकारक, लघु, ज्ञानसे यह विरुद्ध सम्पर्क सङ्गम नहीं करता। कभी दोपन, बलदायक । ग्राम्य महिपके मांसका गुण कभी यह इस घृणित कामसे ऐसा, उत्तेजित हो जाता है, स्निग्ध, मलिनकर पित्तहर। (राजनि० ) राजवलमके कि अपने पालकका भी प्राण ले लेता है। । । मतसे-तर्पण, स्निग्ध, उष्ण, मधुर, गुरु, निद्रा, पुंस्त्य साधारणतः काला, सफेद और धूसर रंगका महिप और स्तन्यपद्धक तथा मांसदादयंकर । भावप्रकाशके देखने में आता है। पालत और जंगलोके मेवसे यह दो मतसे महिय पर्याय-घोटकारि, फासर, पीनस्कन्ध, / प्रकारका होता है। पालत प्रधानतः मदिप या मैंस . कृष्णकाय । मांसगुण-उष्णवीर्य, वायुनाशक, निद्रा- ( Bos Bullalus ) भौर जंगली अरना (Don Arrnna) जनक, शुभायर्द्ध फ, बलकारक, शरीरको दृढ़ताजनक, गुरु, / कहलाता है। जंगली मैं सा ऐसा-दुर्य होता है कि