पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/३३०

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२६० महेन्द्रवर्म-पदेश - महेन्द्रयम (म)-पल्लयचंगीय एक राजा, राजा सिंहः । महेन्द्रीय (सं० वि०) महेन्द्रसम्पन्भीय, इन्द्रसे सावध विष्णुके पुत्र । काशीपुरमें इनको राजधानो थो । चालुक्य | रखनेयाला। राजश्य पुलकेशाने इनको परास्त किया था। महेमति ( स० वि० ) महामति, यहा युतिमान् । महेन्द्रवर्मन् (२य)-उक्त पलयराजके पोल और राजा नर- महेर--गुजरातके यन्तर्गत एक पर्यत। सिंह-विष्णुके पुत्र। . महेर ( हि पु०) झगड़ा, यवता गहरा देखो। महेन्द्रवर्मन् ( ३य )-पल्लवराज श्य नरसिंहयर्माके पुत्र ।। महेरणा (सं० सी० ) महन करणं प्रेरणमत्याः यद्वा माद महेन्द्रयारणी ( स० स्त्री० ) महेन्द्रवरुणयोरियं प्रियत्वात् गजोत्सव-मीरयतीति ईर ल्यु-राप । गलको पक्ष, मलई । अण डीप । लता-विशेष, वसा इन्द्रायण। पर्याय-1 का पह। चित्रपल्लो, महाफला, महेन्द्री, चित्रफला, वपुसो, नपुसा, महेरा ( हि पु० ) एक प्रकारका ध्यान जो दहोम आत्मरक्षा, विशाला, दोघंवल्ली, महत्फला, महद्वारणी, | चावल पका फर बनाया जाता है। यह दो प्रकारका पृहत्फला, पृहद्वारणी, सौम्या, गजचिभिटा, चित्रदेवी, होता है-सलोना और मोठा। सलोने में दलदी, राई धनु श्रेणी, स्थाणुकणी, मरसम्भया ।। आदि मसाले डाले जाते हैं और मोठमें गुड़ पड़ता है। इसे २ इन्द्रधारुणी, ग्यालफाडी। महेला भी कहते हैं। महेला देखो 1 २१ भोज्य पदार्थ । माहेन्द्रसिंह-एक हिन्दू राजा। इन्होंने १९७० फसलीमें यह खेसारीके आटे दहीमें उबालनेसे यनता है। फरीदपुर नगर और दुर्ग स्थापन किया। महरि (हि. खो० ) महेरा नामफ खाद्य पदार्थ महेन्द्रसिंह-कुमायू के चांदवंशीय एक राजा । (१४८८. महरो ( हिं० सी०) १ उबालो हुई ज्वार । इसे लोग १० ईस्वी सन् ) नमक-मिर्चसे खाते हैं । (वि०) २ इ.चन डालने.. महेन्द्रासह-धर्मघोपकृत शतपदीके टीकाकार । इन्होंने | वाला, बखेड़ा खड़ा करनेवाला। १२६४ विक्रम सम्पत्में उक्त प्रन्थ लिखा। महेला ( स० स्त्री० ) महते पूज्यते इति मह ( मनिपल्य महेन्द्रसूरी-१ पफ जैनसूरि । इन्होंने अनेकार्थ फेरवा निमहीति । ११५५) इति इलय् पृषोदरादित्यादिकारम्यकार: कर फौमुदी नामक हेमचन्द्रशत अनेकार्थसंग्रहको टोका, यता महस्य उत्सयस्य इला भूमिः। १ गारी, औरत । यन्त्रराज और उसकी टीका तथा शिवताण्डव नामक (पु०) २ पशुओं के खिलानेका एक पदार्थ । यद चने, उई. याहुत-से अन्य लिखे। २ अञ्चलिकमतावलम्बी पक जैना मोठ मादिको उयाल कर और उसमें गुड़ घी गादि साल चार्य । इन्होंने शतपदी नामक एक ग्रन्थको रचना की।। कर बनाया जाता है। इसके खिलानेमे घोडे, येल आदि पुष्ट होते हैं। महेन्द्राचार्य शिष्य-विजयभैरय नामफ ज्योतिर्गन्यफे रच- यिता। महलिका (स० स्त्रो०) मद्देला स्वार्थे यन्-टाप, गकार- महेन्द्राणो (स० स्त्री० ) महेन्द्रस्य भाति महेन्द्र (पुया- | स्येत्यं । १ नारी, महिला स्थूल पेला, बड़ी इलायची । गादाण्यायो। पा ४१८) इति डोप (इन्द्रवति । पा/ महेश (सं० पु. ) महान् शिः। निय, महादेव । Heइति मानगागमः। १ इन्द्रमाया, महेन्द्रकी "ध्यायनित्य महेश रजतगिरिनिम चारचन्द्रा यतेगे।" स्त्री। २इन्द्रचिर्भटी। (मध्यान :शियपूना देना। २चर। महेन्द्राधिराज-पल्लवराज नोदम्याधिराजके पुत्र । इनका दूसरा नाम वीरमदेन्द्र मी था। १३०४० स्यी-सन्के महेग-हुगली जिलान्तर्गत एक सा माम। पद अक्षा अन्दर न्होंने पाश्चात्य गह एप्पोको हराया। २२४०3० तथा देवा० ८८२३ ४." श्रीरामपुर महेन्दाल (संखी ) महेन्द्री नामक नदीका एक नाम। नगरके उपाएटमें गहाये किनारे भाम्पिन है। यहां जति महेन्द्री (सं० स्रो०) १ एक नदीका नाम जो गुजरातमें। का जगन्नाथदेयका मन्दिर दहा ही मर पहती है। इसे महेन्द्रताल भी कहने है। महेन्द्रयारणोय ज्येष्ठ मासकी स्नानयात्रा और मापद मासकीय. याया बटे समारोप समान होती सथा उन दिनों यहा लता।