पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/३३३

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पहश्वर-पहेश्वरी को । उक्त पंधके परिशिष्टरूपमें उन्होंने शब्दभेदमाश , महेश्वरसिंह-मिथिलाके एक राजा, रुद्रसिंह पुन तथा या शब्दमे दनाममाला नामक एक, दूसरा प्रय लिखा छलसिंहके पौत्र। ये व्रताचारके प्रणेता रत्नपाणिके था। थलाया इसके उनका रचा दुभा साहसावरित प्रतिपालक थे। नामक एक और अन्य मिलता है। २० पुरुषोत्तमकृत । महेश्वरसिद्धान्त (म० पु०) पाशुपत शास्त्र । विष्णुभक्तिकल्पलता प्रथके रोकाकार। १५६० ई० महेश्वराचार्य-वृत्तसनक नामक ज्योतिर्मयके प्रणेता, इन्होंने उक्त ग्रन्थ समाप्त किया। मनोरथके पुत्र । ये ज्योतिर्वितिलक और कपाश्चरकी महेश्वर-नमदा नदीके उत्तरी किनारे अवस्थित एक उपाधिसे भूपित थे। शाण्डिल्य इनमा गोत्र था। बिजल 'नगर। इस नगरके नदीतीरवती घाटकी शोभा वहत पुरमें इनका जन्मभूमि थी । इनके पुत्र लक्ष्मीधर राना अत्र. कुछ याराणसीधामसे मिलती जुलती है। मोट- पाल द्वारा सभापण्डित पद पर नियुक्त हुए थे। भास्कराचार्य देखो। सिकन्दरी पढ़नेसे जाना जाता है, कि सुलतान अह्मद- महेश्वरानन्द-महामारी और उसकी टोका प्रणेता। शाहने १४२२ ई०में यह नगर और दुर्ग कम्जा किया था। मह भ्वरो (सं० स्रो०) महेश्वरम्य स्रो, मह ध्वर डोप महश्वर--एक हिन्दू राजा, श्रीपालके पुत्र । ये धोचि- महती चासो ईश्वरी च महदादोनां नियन्तीति वा । मद्दे गोत्रीय थे। श्वरकी पक्षी, शिवानी। मद्देश्यर फरच्युता (स० स्त्री०' महेश्वरस्य करात् न्युना । "एं पातु दक्षनेत्र में हो पातु चामतोचनम्। करतोया नदो। कहते हैं, कि पर्वतराजको कन्या श्री पातु दक्षक मे वित्मिा महेश्वरी ॥" (तन्त्रसार) गौरीके विवाहकै समय गिरिराज-प्रदत्त जल महादेवक २ अपराजिता। ३ कास्य, कांसा । ४ राजरोति, हाथसे पृथ्वी पर गिर पड़ा था उसीसे इस नदोकी पोतल । ५ ययतिक्त लता, शापिनी नामको लता। उत्पत्ति हुई है । करतोया देखा। . . महेश्वरी ( माहेश्वरी )-पश्चिम भारतफे यणिक जाति- महेश्वरतीर्थ-रामायण तत्त्वदीपिकाके प्रणेता। इन्होंने की एक शाखा। जयपुर राज्यान्तर्गत सिउवाना नामक नारायण तीर्थसं विद्या सीखी थी । इनका दूसरा नाम । प्राममें इनका आदिनियास है। किन्तु इस समय युक्त- महेश भी है। प्रदेशके प्रायः समा हिस्सों में यह जाति फैल गई है। महेश्यरतीर्थ--एक विख्यात चैदान्तिक । इन्होंने याचिक- इनको उत्पत्तिके सम्बन्ध फिम्यदन्ती ६, कि सार नामक एक वेदान्तग्रन्थ बनाया। पक वार खण्डेला ( जयपुर राज्यान्तर्गत ) राजा महेश्वरदेवराय-दाक्षिणात्यके कुलचुरी गजाअकि मधो सजातसिंह पण्डितोंके परामर्शानुमार पुत्रोत्पादनको नस्य एक सामन्तराज इच्छासे वाणमस्थका अवलम्बन लिया। मपुत्रक राजा. महेश्वरनाग--एफ हिन्दू महाराज । ये नागभट्टके पुत्र थे। ने वनमें देवादिदेव महादेवको अपनी आराधना महेश्वर न्यायालङ्कार भट्टाचार्य-काव्यप्रकाशादश नामक संतुष्ट कर पुतयरकी प्रार्थना का था। इस पर राजाको अलङ्कार प्रन्धक रचयिता। महेश्वर बरसे एक पुत्र हुमा । इसके याद नवजात महेश्वरमह-अन्त्येष्टिपद्धति और प्रतिष्ठापति नामक दो निशुको फुछ दिनों तक लालन पालन कर नबालिग प्रयोंके प्रणेता। अवस्थामे हो सुजातसिंहने अपनी इहलीला संवरण की। महेश्वर महाचार्य-सिद्धान्तदीप नामक न्यायसम्यक रच. अनन्तर युवराज एक दिन सदल-बल शिकार पलने के यिता! . लिये निकले और घनमें याकार्य में रन भूपियोंकि महेश्वरमिश्र--१ श्राद्धादर्शके रचयिता। २ पर्यायरत्न सम्मुख उपस्थित हुए। पि लोग इस योर घेशधारी . मालफे प्रणेता। मगरत्र वोरमएडल्टीको देव भयस बिहट हो अपने तपः महेश्वरमिश्र-यामनालद्वारसूबटोकाके रचयिता । - - पलसं लोहवर्गका निर्माण कर उसामें छिप गये। याज महेश्वर शर्मन्--शुद्धिकौमुदीफै प्रणेता। . : भो यह लोहगढ़ दुर्गफै नामसे प्रसिद्ध है। Vol. xvll, 74