पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/३५१

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३०७ काश्मीरको फतह करनेकी गरजसे काश्मोरकी याता| तोड फोड, कर, इसकी धनसम्पत्ति लूट पाट कर और कर दो और लोहकोटके दुर्भद्य किलेके पास आ मूर्तियों तथा मन्दिरों का नाश कर सोमनाथको ओर पहुंचा। दुर्ग ने पर्वत पर बना था। एक मास | चला। राहमे एक हिन्दुराजने बीस हजार सैनिकवीरों- तक चेष्टा करने पर भी सुलतान महमद फिलेके पास को ले कर सुलतान पर आक्रमण किया था। किन्तु उस नहीं पहुंच सका । पहाड़ो वकरांकी तरह विकट पहाड़ों विशाल नादिनी विधी फौजोंके आगे यह क्या कर पर चढ़ने में पटु सिखो सिखाई महमदको फौज किसी तरह सकने धे। वे बेचार भी पराजित हुए, किन्तु डरपोक- भी किलेके पास पहुच न सकी । महमद हतोत्साह हो । की तरह पीठ दिखा कर नहीं। यहां भी विधी सुल- लाहौर जा कर कुछ लूट पाट कर गजनोको लौट गया ।। तानको बहुतेरे सामान हाथ आये । त्रियां फेद कर सन् १०२३ ई० में ग्वालियर और कालिञ्जरमें उसका लो गई। फिर यह आगे बढा और सोमनाथमें जा १५यां आक्रमण हुआ। इस वार नन्दराजके राज्य पर पहुचा। कहा जाता है, कि सोमनाथ मन्दिरको सोम. श्राममण फरनेके लिये हो यह भारतमें भाया था। उसने नामक किसी राजाने समुद्रफे किनारे बनवाया था। पहले ग्वालियर पहुँच कर ३५ हाथी और पारितोषिक समुद्र के किनारे यह मन्दिर एक पहाङकी तरह दिखाई ले फर सुलह कर ली। इसके बाद वह कालिञ्जरके लिये आगे बढ़ा । कालिञ्जरके सामने अजेय किला देता था । समुद्रको तरङ्गमाला मन्दिरके 'पाददेशको भारतमें और कोई नहीं था। कलिञ्जरगजने युद्धके । । धोती हुई यहती थो । इस मन्दिरके अलीन्द समुद्र तक फैली हुई थी । ५६ सोसमके बने खमे पल्लेमें न गड कर ग्वालियरको तरह सन्धि कर ली। अलिन्दीको घेर मन्दिरको दृढ़ता सम्पादन कर रहे थे। नन्दराज कविता करना जानते थे, उन्होंने सुलतानके । गुणकोत्तनकी एक कविता हिन्दी में वनाई। यह कविता इसके भीतर एक विशाल मण्डपमें एक प्रकाण्ड शिव- लिङ्ग विराजमान थे। मूर्ति दश हाथ लम्बी और तीन भीर उपहार भेज कर इन्होंने भी यशता स्वीकार कर ली। सुलतानके कवियोंने कविता पढ कर नन्दको बडी हाथ चौड़ी थी । मन्दिरके मध्यभागमे चूड़ा देशसे प्रशंसा की। सुलतानन म भावसे.नन्दसे कर लिया। दो सौ मन धजनकी एक सुवर्ण शृडला थी। इसमें ७ और तव चहांसे गजनीको लौटा। हजार घण्टे लटकते थे। प्रदोषकालमें आरतीके समय सोमनाथका आक्रमणा । दो सौ ब्राह्मण इसको पकड़ कर हिलाते थे। इसकी सन् १०२४ ई०में महमूदका १६ या आक्रमण सोम- ध्वनि समुद्र तरङ्गमें प्रतिध्वनित हो कर दिग्मण्डल नाथके मन्दिर पर हुआ। जिस समय मथुराके मन्दिरों को गुंजायमान करती थी। मन्दिर में निविड अन्धकार को सुलतान तोड, रहा था, उस समय सोमनाथके । रहने पर भी सुवर्ण मय दीपोंसे सुसज्जित नीलम, लाल पुजारियोंने कहा था, "विधी सुलतान यहां आने पर और सादे सैकड़ों होरोंकी समुज्ज्वल छटासे अलौकिक अच्छी तरह दण्ड पायेगा।" यही बात सुन कर सुल- प्रकाण होता था। यह प्रकाश रातिको दिन बना देता तानके मनमें सोमनाथके आक्रमणको इच्छा बलवती हुई। था। दो हजार कोसमे गङ्गाजल ला कर नित्य शिव- घो। इसके अनुसार मुलतानसे होता हुआ यह अज- लिङ्गको स्नान कराया जाता था। मन्दिरको देव सेवा मेरमें आ पहुंचा । उसने अजमेर लूट पाट कर बहुत धन के लिये दश हजार देवोत्तर ग्राम नियत थे। एक हजार • प्राप्त किया। यहांसे सोमनाथ पटु'नेमें वाईस कोसको ब्राह्मण नित्य शिवलिङ्गको पूजा करते थे। तीन सौ एक मरूभूमि पार करनी पड़ती थो । सुलतानने पहले हीसे हजाम यात्रियोंकी हजामत बनाया करते थे। ३५० वन्दी उसको व्यवस्था कर ली थी। ३० हजार ऊंटों पर पानी प्रति दिन मन्दिरके दरवाजे पर स्तुति गान करते थे। और रसद ले कर सुलतान अनहलवाडकी ओर चला।। ३०० गायक भजन गा गा कर यात्रियोंका वितरञ्जन करते घहांका राजा भीम सुलतानका आना सुन कर भागा थे । ५०० रूपलायण्य परिपूर्ण गणिकाये' अपनी नृत्य. भीर एक निकटके किलेमें छिप गया। सुलतान किटेको कलासे लोगों को। . .. "