पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/३५३

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पहमूद संवैधन'छीन लिया । भीमफा सव'धनं सुलतानके। ऐतिहासिकोका कहना है, कि महमूदने हिन्दुस्तानमें हाय लगा। २० हजार मूर्तियोंको नोड़ा और वीस हजार मन्दिरोंको ___ सीमनार्थको मूर्तिको उसने चार टुकड़े किये थे।' ममजिद्में परिणत किया । उसने पूर्व-गजनीसे गङ्गा इनमें फें एडको मका, दूसरे खण्डको मदीनेमें और दो, तक, पश्चिम-आजाम, खुरासान्, तनिस्तान इराक, खएडोंको गजनीको जुम्मा मसजिदको सीढ़ीमें जा दिया। तुी, धोर, निमराज्य बादि देशों पर कब्जा कर वहां था। उसका उद्देश्य यह था, कि मूर्तियोंके ये टुकडे । अद्धचन्द्राकार पताका उड़ाई थी। हिंदुओंके पवित्र मुसलमानों के पैरोंसे मसले जायें। एक मुसलमानको सोमनाथकी देवमूत्ति उसके शाही महलकी सीढ़ियों में यहाँका करदराजा बना कर महमूद गजनी टोटा । जाते जड़ दी गई थी। युद्ध में उसका अत्यन्त बल-पराक्रम था। समय वह चन्दनका कियाड, उखाड. कर लेता गया था। २५०० हाथी उसके किलेकी रक्षा करते थे। ४ हजार गजनी' जाते समय उसे यह खबर मिली, कि तुकों सेना उसको शरीररक्षकका काम करती थी। ये परमलदेव नामक एक हिंदूराजा मेरी राह रोक कर खड़ा राजदरवारके चारों ओर घेर कर खडे, रहते और पहरा हैं और यह युद्ध करना चाहता है। महमदके साथ अपार दिया करते थे। दो हजार खिदमतगार सोनेका छन धन वैभव या, यह इस समय युद्ध करना नहीं चाहता ले कर खड़े रहते थे। महमूद जैसा साहसी वीर और था इससे परमलदेव नगर न जा पर दूसगे राहसे' पराक्रमी सुलतान कभी भी गजनीके तख्त पर नहीं गजनी चला गया। इसके लिये उसको मरुभूमि पार बैठा। करते समय पिपासासेंजर्जारित होना पड़ा था। अब उसने भारतवर्षसे जा कर इराक पर चढ़ाई कर दी थी। उसके प्राण जानेको हो । रात हो चुकी थी। वहांसे यह वगदादके पलीफोंको सम्मानित करनेके लिये उसने खुदासे प्रार्थना फो' "हे खुदा पानी मेज ।" अव , जाना चाहता था, किन्तु देववाणी होनेसे लौट आया। अपनी मृत्यु सुनिश्चित जान अपने पथ प्रदर्शकको मार सन १०३० ई०में इस हिन्दूद्वेषी महमदको मृत्यु हो गई। डॉली।' यह पथ प्रदर्शक एक हिंदू था । इसके बाद | उसने ३५ वर्षे राज्य किया था। उत्तरकी ओर चमकती हुई एफ. रेखा दिखाई दी । मुलं । मृत्युक दो दिन पहले मर दने थानी सब धनसम्पत्ति- तान और उसके सिपाही उसी मोर दौडे। उन सवोंने को अपने वडे आंगनमें निकाल कर रखवाया। भारतके देखा, कि वह रेखा नदी है। जल पी कर वे सब यहांसे कल्पवृक्षके अद्भुत फलको देख कर चमत्कृत हो जाना गर्जनी नलं दिये। पड़ता था। वे चमकते हुए मणि माणिक्य देदीपामान __सन् १०२७ ई०में जाटों पर महमूदफा १७वां आक्र दिखाई देते थे। आंगन इन रत्नोंके प्रकाशसे प्रकाशित हो मण हुआ। लाहोरके निकट जाट अत्यन्त प्रबल उठा । सुलतान इन रत्नोंको निनिमेंप दृष्टिसे देखने लगा। 'प्रतापन्वित थे। इन्होंने मानसूरके अमोरको बलपूर्वक हाथोंसे छुआ भी, किन्तु उसकी तृप्ति नहीं हुई । तब यह हिंदू वनौया । इनकी पराक्रम और सैन्य संख्या बहुत बालककी तरह चिल्ला कर रोने लगा। किन्तु कालने मैधि थी। इनको दण्ड देनेके लिये महमूदका यह। इसके रोनैको जरा भी परवाह नहीं की और उसे अपने १७यो अफिमणं भारत पर हुआ। सुलतीनने मुलतानमें | गालमें डाल लिया। आ कर १४ सी नायें तय्यार कराई और जलयुद्ध मृत्यु के समय उसके सात पुत्र थे । इतिहास लेखकों. में जौटोंकी इंजार' ही नार्थीको ध्वंस कर दिया जारों-! फा कहना है, कि महमद बड़ा कंजूस' या कृपण था। ने निरूपाय हो कर उसको घशता स्वीकार की । सलतान- उसके दरवारमें अनसारो, आसजादी और फरुखो गोदि ने अधिकांश लोगोंको तलवार से मार डाला । कितनी ही कवि भी रहते थे। महमदके बुलाने पर विख्यात फारसी स्त्रियों और पुरुषों को कैदी बना कर और धन-सम्पति । कवि फिरदौसी उसके दरवारमें बाया था। फिरदौसी लूट कर महमूद संदाके लिये गजनो चला गया। देखो। फिरदौसीकी कषिता पर मुग्ध हो कर एक दिन ___Voi. XVII 78