पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/३६

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शके .. . बहुतसे ऐसे भी कीड़े हैं जिनको गिनती डांसको । छोटे अंडे सरीखे पदार्थ हैं। ये पदार्थ उस श्रेणीके श्रेणीमें की गई है और वे मशक कहलाते हैं। अमेरिका देहस्थित मेदके जैसा फार्य करते हैं । मांदा-मशकका महादेशके सिमुलियम (Simulium) श्रेणीमुक्त एक | गठन भी नर जैसा है, पर इनका पुट ( Capsuic) कुछ प्रकारका मशक है। मैकका साहयने लिखा है, कि इन | छोटा होता है। नर और मादा मशकको सूडमें कोई . . मशकोंकी आंखें गोल और डैने चौड़े होते हैं। मस्तक | विशेष विभिन्नता नहीं दिखाई देती, किन्तु दोनोंके पैरकी परके केशर जो यारह स्थानों में देखे जाते हैं, गोल हैं। संख्या समान होने पर भी यहुत विभिन्नता है। नर- ये सय मशक घासकी पत्तियोंका रस चूस कर | मशकके पैर छोटे होते हैं : किन्तु नरकी पैर २७३ जीवन धारण करते हैं। किन्तु मौका पा कर डांसकी | मिलिमिटर लम्या और डंक २१३ मिलिमिटर दीर्घ तरह प्राणीका रक्त भी चूसते हैं । ये छोटी प्राणी हमेशा | तथा अगला हिस्सा ऊपरको ओर झुका रहता है। हवामें इधर उधर उड़ते दिखाई देते हैं। भ्रमणकालमै मशकके श्रवणेन्द्रिय सम्बन्ध जीवतत्त्वविदोके मध्य सामनेके पैर में यल दे कर आगे बढ़ते हैं। मतभेद देखा जाता है। इनका मस्तक जैसा छोटा और किसो अमेरिकावासी पण्डितने मशकके सम्बन्धमें उसके ऊपर जो अङ्ग प्रत्यङ्ग दिखाई देता है, उसमें जो लिखा है, वह इस प्रकार है--नर मशकोंके साथ श्रवणोपयोगी अंगका रहना सम्मव नहीं है। अतपयं मादाका फुछ पार्थक्य देखा जाता है। नर मशककी देह यह निश्चय है, कि किसी अन्य इन्द्रिय द्वारा इनकी . मादासे छोटी और गहरा लाल होता है। इनके मस्तक श्रवण किया सम्पन्न होती होगी। मस्तक पर दो पुस । पर केगर होते हैं। मनुष्यका रक्त और पत्तोंका रस को अवस्थिति देख कर यह सहजमें अनुमान किया । चूसनेके लिये डंक रहते हुए भी ये भीर स्वभावके है। जाता है, कि ईश्वरने इन्हें श्रयणेन्द्रिय कार्य निभानेके कभी कभी ये मनुष्यके घरमें घुस कर उन्हें काटते हैं, लिये यह अङ्ग दिया है। एतद्भिन्न इस अङ्गको शिरा, पर रोशनीसे दूर भागते हैं । पाखाना आदि मैले कुचैले धमनी इत्यादिका विशेषरूपसे पर्यवेक्षण करनेसे मालूम स्थानमें तथा जलसिक्त अथवा जलाभूमिमें ये रहना होता है, कि सचमुच इसोसे श्रयणेन्द्रियको किया पसन्द करते हैं। मादा मशक बहुत साहसी होती है। सम्पन्न होती है। यहां तक, कि जिस कोठरोमें रोशनी जलती है, वहां घस नर-मशककी श्रवणशक्ति मादासे अधिक है। कर लोगोंको काटती है। प्रोम और शरत्कालमें इन उसका कारण यह है, कि प्रकृतिके नियमानु. का अधिक प्रादुर्भाव देखा जाता है। सार पुरुष ही सभी जगह स्त्रीका अनुसन्धान किया ____मर-मशक्रके छोटे मस्तक पर अद्ध चन्द्राकार दो। करते हैं। अतएव सृष्टिरक्षाके लिये तमंसाच्छन्न निशा- आखें शोभती हैं। इनके दो पुट प्रायः जुटे रहते हैं। कालमें मादा-मशकको तलाश करनेके लिये भन् भन् जोड़ स्थान पर सुन्दर केशर दिखाई देता है । नर और शब्दश्रवणके सिवा और कोई उपाय नहीं है। मालूम मादा मशकका केशर लम्बाईमें समान रहता है। नर होता है, इसीलिये उस सर्वज्ञ विधाताने इन्हे ऐसी मशकका केशर १७५ मिलिमिटर लम्बा और १४ डंकका सुगनेको शक्ति दी है। रात्रिकाल में नर-मशकको सहज. होता है। इनमें १२ छोटे छोटे और समान लम्याईके ) में पकड़ नहीं सकते, इससे स्पष्ट प्रमाणित होता है, कि तथा बाकी २ कुछ वडे होते हैं। मादा मशकके सिर्फ इन्हें श्रवण-शकि अधिक है। . . . १३ उक होते हैं। इन सभी कोको लम्याई समान गौर कर देखनेसे मालूम होता है, कि मादा मशक '. रहती है। नर और मादा दोनों जातिके मशकका केशर | अपने केशरोंसे स्पर्श-ज्ञान लाम करती है। कारण, इनके हमेशा हिलता रहता है। पैर यहुत छोटे छोटे, केशर सूड के समान लये मीर . पुटका बाहरी और भीतरी स्थान एक प्रकारफे मैले | हमेशा हिलते डोलते रहते हैं किन्तु नर मशकका स्पर्श.. तरल पदार्य से परिपूर्ण है । इसके भीतर बहुत छोटे | कार्य उनके बड़े यड़े पैरों से ही होता है। मशकके उपके...