पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/३६२

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महमूदाबाद-माँचो । .. : ... पहले महमूदखा नामक यहाँके एक तालुकदारने यह नगर | मांखी (हिं० स्त्री०) मक्खी देखो। . ....... . बसाया था। , . मांग ( हि० स्त्री०.) एक मांगनेकी क्रिया या भाव। २ . महमूदाबाद-गुजरातके अन्तर्गत एक नगर । विक्री या खपत थादिके कारण किसी पदार्थके लिए . महमूदो-गुजरातमें प्रचलित एक सिक्षा । सुफोरमें यह होनेवाली आवश्यकता या चाह । ३ सिरके वालों के बीच सिका ढाला जाता था। इसका मान १२ पेस वा २६ / को एक रेखा | यह वालोंको दो ओर विभक करके बनाई , पैसेके घरावर था। जाती है। इसे सीमन्त भी कहते हैं । हिन्दू सौभाग्ययुतो . महमूद समकन्दी (मौलाना)-समरकन्दवासी एक मुसल- खियां मांग में सिन्दर लगाती है और इसे सौमोगाका . मान-साधु । काव्यशास्त्र में इनकी अच्छी व्युत्पत्ति थी। चिह्न समझती है। नायका गायमा सिरा, ५सिलका : दाक्षिणात्यसे स्वदेश जाते समय शोधारके हिन्दू राजा | वह ऊपरी भाग जो 'फूटा हुआ नहीं होता और जिस भीमने इनके पोतादि लूट लिये थे। सुलतान महमूद | पर पोसो हुई चीज रखी जाती है। किसी पदार्थका विगाड़ाने इस आत्याचारका बदला लेनेके लिये भोमको ऊपरी भाग, सिरा। ७ मांगी देखो। .... परास्त किया और पीछे मार डाला। . .. मांग-टीका (हिं पु०) त्रियोंका गहना। यह मांग पर मध (संपु०) विवस्वतके एक पुत्रका नाम । नील• पहना जाता है और इसके बीच में एक प्रकारका टिकवा कण्ठने इनका दूसरा नाम 'सह्य' रखा है। होता है जो माथे पर लटका होनेके कारण टीकेके . मह युत्तर (सपु०) महाभारतके अनुसार एक जाति-|समान जान पड़ता है। . . . . . का नाम। मांगन ( हिं० पु०) १ मांगनेकी क्रिया या भाव। २ महन (सपु०) एक राजाका माम । इन्होंने महनस्वामी याचक, भिखमंगा। . नामक देवमूर्ति और मन्दिरको प्रतिष्ठा की। (गजतरङ्गिणी ४४) मांगना (हिं० कि० ) १ याचना करना, कुछ, पाने के लिए महनपुर (सक्की०) महनराज द्वारा प्रतिष्ठित एक प्रार्थना करना या कहना! २ किसीसे कोई आकांक्षा नगरका नाम । पूरी करने के लिए कहना। ।.. ..: मा (हि स्त्री० ) जन्म देनेवाली, माता। मांगफल (हिं. पु०) मांग-टीका देखो। , , ... मौकडी (हि. स्त्री०) १ मकड़ी देखो । २ फमसाव घुनमे-मांगल गीत ( हि पु०) विवाह आदिमें मंगल मयसरी यालोंका एक मौजार । इसमें डेढ वालिश्तकी पांच तोलियां पर गाए जानेवाला गीत ।। : . होती हैं और नीचे तिरछे चलमें इतनी ही घडी एफ और मांगी (हिं० स्त्री०) धुनियोंकी धुनकी में-को पह लकड़ी , तीली होती है। यह ठाठ सवा गज लम्यो एक लकडी/ जो उसको उस डांडीके कपर लगी रहती है जिस परं ' पर चदा हा होता है और करघे लग्धे पर रखी जाती तांत चढ़ाते है।. . . . . .' है। ३ जहाजमें रस्से वांधनेके खूटे आदिका यह धनाया | मांच (हि पु०) १ पालमें हया लगनेके लिपे चलते हुमा ऊपरी भाग जिसमें लकड़ी या दोनों या चारों ओर हुप जहासका रुख कुछ -तिरछा. करना ।, २पालके इस अभिप्रायसे निकला हुआ रहता है, जिसमें उस / नीचेवाले कोने में बंधा हुया यह रस्सा जिसकी सहा- खूटमें बांधा हुआ रस्सा अपर न निकल आये। 8 पत...यतासे,पालको आगे बढ़ा कर या पीछे हटा कर चाके पारके ऊपरी सिरे पर पनी हुई और दोनों ओर निकली। यख पर करते हैं। . . । . . हुई लकड़ी। इसके दोनों सिरों पर ये रस्सियां बंधी होतो मचिना ( क्रि०) १ आरम्भ होना, जारी होना। २ हैं जिनकी सहायतासे पतवार घुमाते हैं। .. । । प्रसिद्ध होना। माखन (हिं० पु०) मघवन, नवनीत ।। .. .. मांचा (हि. पु०) १ पलंग, साट।२ मचान । ३ खाटकी माखना (म० कि० ) द्धि होना, फ्रोध करना । ' . तरएको घुनी हुई छोटी पीढ़ी जिस पर लोग बैठते हैं।

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.... मासना देखो । 'मांची (हिं० स्त्री०) बैलगाड़ियों धादिमें बैठने की जगह के