पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/३७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३२४ पांस .. दुष्ट, त्रिदोष और शूलरोगनाशक तथा गुरु होता है।। यर्द्धक, कटु, अग्निउदोपक, मचिकर, पुटिपद और गुरु सूखा हुआ मांस भी ऐसा ही होता है। इन दोनों तरहके | होता है। मासको त्याग करना चाहिये। ____घीका पकाया हुआ मांस दृष्टि और पुष्टिपद, लय, पिप, जल और व्याधि या रोग द्वारा मरे हुए प्राणो सर्वधातुका प्रीणन तथा मुखशोप रोगियों के लिये विशेष फा मांस विदोप, रोग और मृत्युकारक है। दुयले | तृप्तिकारक होता है। प्राणीका मांस वायु प्रकोप करनेवाला, जो प्राणी जलमें | परिशुष्क और प्रदग्ध मांसका गुण-अधिक धोमें जो मास द्वय कर मर जाते हैं, उनको सिरा जलसे परिपूर्ण रहती | भाग पर चढ़ा कर भुना जा सकता है और पीछे जोरा है इसलिये इनका मास विदोपनाशक है। मादिसे परिलिप्त किया जाता है, उसको परिशुःक मांस ___ पक्षियोंमें नर पक्षीका मांस उत्तम है और चार कहते हैं। इसके गुण ये हैं-स्थिर, विकना, हर्पण, पैरवाले जानवरों में मादा पशुका मांस अच्छा है। नरका प्रोणन, गुरु, पित्तघ्न तथा वल, मेधा, भग्नि, मांस भोजः निम्न गर्दा लघु और समस्त प्राणीके शरीरके मध्य | और शुक्रवर्द्धक । उक्त परिशुष्क मासको तक भादिमें भागका मांस गुरु होता है। पक्षियों के पंखका मांस गुरु भिगो देने पर उसे प्रदिग्ध मांस कहते हैं। इसका गुण- होता है। क्योंकि पक्षिगण सदा अपने पंखको परि. वल, मांस और. अग्निपद्धक तथा वात और पित्त- चालित करते रहते हैं। सब पक्षियोंकी गरदनका मांस नाशक है। और उनका अएडा गुरु होता है। वक्षस्थल, फन्धा, पेट फूट फर मोस पकाना-कूट कर जा मांस प्रज्वलित मस्तक, दो पैर, हाथ, दोनों कमर, पीठ, चमड़े, यस्त, अङ्गारों पर पकाया जाता है, उसका गुण अत्यन्त गुरु, अंतडी ये यथाशमसे गुरु होते हैं अर्थात् चासे का गुरु वृष्य और दोप्त तथा जठराग्निफे लिये बहुत हितकर है। होता है, कन्धासे पेट गुरू होता है इत्यादि । जो पक्षी अन्न! इसको साधारणतः शिक-कवाय कहत है। खाते हैं, उनका मांस लघु और वायुनाशक है । जो मछल.. पीसा हुभा मांस-मच्छी तरह मासको हो निकाले खाते हैं, उनका मांस पित्तवर्द्धक, वायुनाशक और गुरु कर पोस सालो। फिर इसमें गुड़, घा, कालीमिर्च होता है। सिया इसके जो पक्षी मांस खाते हैं. उनका मिला कर पकायो । इस तरह जो मांस तम्यार मांस कफकारक, लघु और रूक्ष होता है। .. किया जाता है उसको पेशयाका मास कहते तुल्य जातिमें जिनका शरीर बड़ा है उनके मांस- है। इसका गुण गुरु, चिकना (स्निग्ध), बल और . को अपेक्षा छोटे शरीरयालेका मांस उत्तम है। फिर उपचयपद्धक है। इस तरह के मांसमें जो चीजें मिलाई छोटे शरीरवाले जो हुए पुष्ट हैं, उन्होंका मांस उत्तम जापेगी, उनका भो गुण इसी तरहका हो जायेगा। एक श्रोता है। हो साथ कई तरहका मांस खाना वैद्यकशान निषेध भावप्रकाशमें मछलोके मांसका भी गुण विस्तृत करता है । शास्त्रानुसार परिपषव कर. जो मांस रूपसे लिखा है। लेख बढ़ जानेके भयसे यही उल्लेख पाया जाता है, उसका हो यथा गुण (जैसा लिया है। नहीं हुआ। मत्स्यका साधारण गुण मत्स्य शम्दमें लिख होता है। दिया गया है। धैद्यक शास्त्र में एक जगह लिखा है- . . ___मांसके जूम ( शोरवे ) का गुण-चन यानी आंखका "भन्नादष्टगुण पिट पिटादप्टगुव पया। . हण, प्राणवर्द्धन, वातविकारक तथा कृमि, मोजा और ! पयसान्टिगुयां माय मोसादष्टगुण धृतम् ॥ . . स्थरयक है। सिवा इसके जिनके शरीरका जोड टा. घृतादष्ट गुण सेप्तं मर्दनाम तु मोजनान् । हो, जो फोड़े फुसियोंके रोगसे पिड़ित रहा करते हो, . . . . ( रानपालभ ) उनके लिये यह बहुत हितकर है। . . . निषेध मांस-गरुणपुराणमें लिखा-मम्याद, दात्यूह, सेलरी पकाये हुए, मांसफा गुण-उगायीगं, पित्त शुरु, सारस, एकराफ, दंस, बलाक, गुला, टिटिम,