पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/३७९

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. माइकेल मधुसूदन दत्त । अवाध्यता और कृतज्ञताको भूल कर उनका आर्थिक । भी उनकी कम मभिक्षता न थी। सुतरां मातृभाषा अभाव दूर कर दिया। बङ्गलाको छोड़ कर बारह विभिन्न भाषाओं में उनका ईसाधर्म ग्रहण करनेके साथ उनके गार्हस्थजीवनमें अधिकार था । भाषाशिक्षा और कवितानुशीलनके बहुत हेरफेर हुआ था। उनका मान्द्राज आना, युरो- सम्बन्धमें उन्होंने इन थोड़े वर्षोंमें जैसी उन्नति की पीय महिलासे विवाह करना, सांसारिक सुखोसे वंचित थो, दुःखका विषय है, कि उस विद्योन्नतिफे रहना, आत्मीय स्वजनोंसे नाता टूटना तथा अन्तमें अनाथ साथ साथ उच्छलताने मी उसो परिमाणमें उनका की तरह दातव्य चिकित्सालयमें मरना, ये सब उनके आश्रय लिया था। असंयनचित्त और परिणामदशी ईसाधर्म ग्रहण करनेके फल थे। जव मधुसूदनने देखा, मधुसूदन के हृदयको शान्ति दिनों दिन अन्तर्हित होने कि पितासे जो सहायता मिलती थी यह भी बंद हो गई, । लगी। माताके अनुरोधसे ये कभी कभी घर आते थे, साथ साथ स्वदेशसे भी निर्वासित हुए तब उन्होंने , पर धर्म और सामाजिक आचार-सम्बन्धीय वृथा वादा. साहित्यको हो अपने जीवनका एकमात्र सहारा समझ नुवादमें पिताके साथ उनका झगड़ा हो जाया करता था। कर ग्रहण किया था। अगरेजी साहित्यसे अर्थाभाव | उनके पिताने आखिर रंज हो कर मासिक सहायता दूर नहीं होना तथा यशका भी न फैलना देग्व कर उन्हों- देना बंद कर दिया। यदि मधुसूदन इस समय पिताका ने मातृभापाकी गोदमें आश्रय लिया था। सौभाग्यवशतः कहना मान लेते तो भविष्य जीवन में उन्हें कष्ट उठाना . इस समय राजा प्रतापचन्द्र, पण्डितप्रवर ईश्वरचन्द्र और । नहीं पड़ता। महाराज यतीन्द्रमोहन ठाकुर आदिको सहायता तथा जिन लोगोंने मधुसूदनको ईसा-धर्मग्रहण करनेमें उत्साहसे उन्होंने बङ्गला साहित्यको सेवामें जीवन , उभाड़ा था, अब ये भी इनसे दूर हो गये। अतः वे चुपके उत्सर्ग कर दिया था। उनके अन्यमें जातीय भायका से (१८४७-४८ ई०) मान्दाजको चल दिये। इस समय अभाव तथा विजातीय भावका प्राधान्य उनके धर्ममत इसके पास एक कोडी भी न थी। पाठ्य पुस्तकादि परिवर्तनके फलसे हो साधित हुआ था। वेव कर जो कुछ साथ लाये थे, यह रास्ते में ही खर्च हो यूरोपीय महिलाका पाणिग्रहण करके वे पाश्चात्य गया। इसी निरायलम्ब अवस्था यसन्तरोग इन पर समाजको ओर अधिकतर आराष्ट हुए थे। विशाप्स आक्रमण कर दिया। अब जीवनयापन इनके लिये कैसा फालेजमें प्रोकभाषा सीख कर ग्रीकसाहित्यमें उनका ओठन हो गया, पाठक स्वयं समझ सकते होंगे। सचमुच अच्छा प्रेम हो गया था। यही कारण था, कि उन्होंने इसो समयसे उन्हें दरिद्रताका पूर्णमात्रामें उपभोग ग्रीक साहित्यके अमूल्य रत्न होमर प्रणीत काव्योंकी। करना पड़ा। निरुपाय हो इन्होंने मान्द्राजके देशीय अच्छी तरह आलोचना की थी। संस्कृत भापामें उन ; ईसा धर्मसम्प्रदायसे सहायता मांगी। उन्होंने मधु- का अधिकार न रहने के कारण मेघनादवधमें जो उन्होंने ' सूदनके दुःखसे दुःखी हो उन्हें अनाथ फिरंगी वालकोंके रामचन्द्रका वर्णन किया है वह हिन्दूभावसे बिलकुल लिये प्रतिष्ठित विद्यालयमें शिक्षकके पद पर नियुक्त अनुप्राणित नहीं। उन्होंने बाल्मीकिको परित्याग कर किया। होमरका हो अनुसरण किया था। इसमे भी उनका अर्थामाव दूर नहीं हुमा। अब ये 1. मधुसूदनने चार वर्ष तक विशाप्स कालेजमें पढ़ा। एफमाल साहित्यके ऊपर निर्भर करनेको वाध्य हुए । अव इसी थोड़े समयके अन्दर उन्होंने नाना भाषाओंमें तक तो ये अनुशीलन और विनोदके लिये साहित्य-सेवा व्युत्पत्ति लाम को थी । लाटिन, ग्रोक, फ्रेञ्च, जर्मन और करते आये थे, पर अभी उन्हें प्राणधारणार्थ साहित्य- इटाली भाषामें ये अच्छी तरह वोल और पनादि लिख , की पूजा करनी पड़ी। . उन्होंने मान्द्राजके प्रधान प्रधान सकते थे। उक्त छः यूरोपीय भाषाके अलावा संस्कृत, समाचारपत्रों में प्रबंध लिखना शुरू कर दिया । थोड़े ही फारसा, हिघू. तेलगू. तामिल और हिन्दी भापा । समयके अन्दर उनको मुख्याति मान्द्राजके विश समाजोंमें