पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/३९२

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१४ .. ' पागात-पाणिकगाज पक. या पुराना मानन्द, अपाङ्गमूलभस्म, गुलश, “प्रत्ये कुत्सिते मुद मनोरोगियः स्मनः । . महसका मूल, मालपर्णी, मैन्ययलयण, शितामूल साट.. नकारस्य न मपन्यस्नेन मिति मान".. सालजटामा शार प्रत्येक ६ तोला। यिर, सरल लयण, (पा ११९६३) यवसार और पीपल प्रत्येक २ तोला । फुलचूर्ण १६ इति कागिका सून मृत्तिः। १ मनुष्य, भादमी! सरले फर गोमूत्र में पाक फरे । पछि गाढ़ा हो जाने २ वालक, यथा । ३ पोड़ा यष्टिक हार, सोटद सोका पर उसे ठंडा करनेके लिये नीचे उतार लें। अगन्तर ३ पल मधु उसमें पास कर आध तोलेकी गोली बनाये। माणयक (म0पु0) गो मानयः (अपं । पा ५३९५) इसका सेवन करने से विरेचन हो कर यमुन और प्लोदा इति कन् । १ बालक । मोन्लाद वर्ष तमको उप्नपार आदि रोगोंका नाश तथा जठराग्निको तेजी होती है। मनुष्यको माणवक कहा जाता है। हारमेह, दौस या दुसरा प्रकार-पुराना मानवंद. अपारमूलको भस्म, सोलह लीफा हार . . . . . पालपणी, चितामूल, मोजका मूल, मोंट, सैन्धय, लयण, द्वापिकता गुच्छो विगत्याकोतितोऽगुन्सारम्पः ।' ' सचललयण, ययभार, विटलवण, तालजटाको भस्म, बौदामिर्माणयको दादाभिधा मायकः ॥", विनायूप, चाय, यम, पीपल, शरपुर, जीरा और . .. ( ) पालिघामवारका मूल प्रत्येक ४ तोला, गोमूत्र २४ सेर। ३ कुपुमर, निन्दित या नीच आदमी। ४ वटु कुल मिला कर पाक करे। गादा होने पर उसमें जीरा. विद्यार्थी। विकटु, होंग, यमानी फुट, सौंद, निसोध, दन्तीम् और माणयककोडा (मं० लो० ) एक पर्णवृत्त । इसके प्रत्येक ग्यालरीका मूल प्रत्येकका चूर्ण २ तोला डाल कर पदमें माद वर्ण एफ भगण, एक गण और दो लघु पारिधि पाकः करें । ठंडा हो जाने पर उसमे ३ पल होते हैं। मधु मिला। अग्निवल और दोषादिको विवेचना कर माणयोण (सं० वि०) मानास्पदमित्यय जोन, या विविसमा और पान स्थिर कर दे। इसका माणघाय हिनं (माणाचकाभ्यां पम् । पा५॥२१) सि सेवन करने से लोहा मोर गुना आदि अनेक प्रकारको यम्। माणय सम्बन्धीय, माणयका दिन। पोडा शाग्न होती है। संयहरमाणकादि गुहिका भी माणा सं० तो०) माणयानां ममूहा माणथ्य विकार कहते हैं। मंतिणय, मानधानां समुदः । माममायादार यन्। पा २०४२) इति यन् । शिशु समूह, पारोफा माणघृत (स'० पु. ) गोयाधिकारोक्त पृतीपधभेद । प्रस्तुत प्रणाली-18 सेर. काढ़े के लिये अच्छी तरह तर माणधारणापलीह (सं० ० ) मशरोगको उराम पाल । कूटा हुमा मानफनचूका मूल ८. मेर, जल ६४ सैर।। ' जल ६९ सायनाका तरीका-मानस्, भोल, मिलाया, गिमोय, इसका सेवन करनेसे नाना प्रकारफे मोष ज्ञाते रहते हैं।। दन्ती, विकट, त्रिफला भीर विमद भां चिता, मोवा माणएक (मपु०). प्रकारका जलचर पक्षी। १. पक्षा। और यह प्रटपेकफा वराश वरावर पूर्ण। कुल गण माणमण्ट (सं० ) गोधरोगको एकः दया । प्रस्तुत मिटा कर मितना दी, उतनी लोकी भस्म । प्रतिदिन प्रणाली--पुराना मानद भाग, गरवा मायलका चूरमामा करके सेवन करने प्ररोग दूर होता है। २भाग, जल मिला दुमा दूध ४२ भाग, ६ एकमाणहल (सं .) रस्संहिमाफै भनुमार पक जागि। कर पाफ फरे । प्रतिदिन इसका सेवन करने से यातीव माणिक (# मास देसी। गोध मोर पाण्डुराग जाता रहता है। माणिकग-दामा मिलय. अन्तर्गत एक उपविभाग! (म.पु.) मनोरपाय पुमान मनु गारयिष. परभक्षा० २५३० मे २४.३० तथा . ' यो भासतो मकारस्य पर। मे ११५० मध्य स्पिन है। भूपरि मा