पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/४०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पातामहीय-पातुष्वर s दसरे धनमें पौत्र तकका अभाव होनेसे दौहित्रका अधिकाग वरुणेति । पा ४१ME ) इति डीप यानुक च । १ मातुल- होता है अर्थात् पुत्र या पीनके नहीं रहने पर दौहित्र हो । पत्नी, मामी। मातुलानीको मृत्यु पर भागिनेयको अधिकारी होगा। मातामहीका यौतुकधन पुत्रके न रहने- । पक्षिणी अशीच होता है। से ही दौहित्रको मिलेगा। "श्वशुरयोर्भगिन्याञ्च मातुशान्याञ्च मातुले । ____ "मातामह्या अयौतुकधने पौत्रपर्यन्ताभावे दौहित्रास्याधिकारः, पित्रोः स्वसरि तच्च पक्षिणी जपयेग्निशाम् ॥" यौतुकघने तु पुत्रपर्यन्ता भावे दौहित्र्याधिक रः, यया- (शुद्धितत्त्व ) - 'दौहित्रोऽपि ह्यमुत्रनं सन्तारयति पौत्रवत्' इति मनुवन्दने २ कलाय, मटर । ३ भगा भाग। ४शण, मन । ५ दौहित्र पौत्रधातिदेशात् पुत्र या परिणीत दुहितुर्वाधान वाधक- प्रियगु दक्ष प्रियंगु वक्ष, प्रियंगुका पेड। पुत्रेण वाध्यदुहितुपुत्रवाधस्य न्याय्यत्वात्" (दायतत्त्व) मातुलानी ( स० स्त्री० ) मातुला देखो। मतामहीय ( स० त्रि०) मातामह-सम्बन्धीय । | मातुलाहि (सं० पु.) मा तुल्यतेऽमौ इति तुल मूल. मातामुड़ा-चटगांवके पार्वत्यप्रदेश प्रवाहित एक नदी। विभुजादित्यान् क, मातुलश्चासौ अहिश्व । मर्पविशेष, यह आराकान और चटगांवके मध्यवती पर्वतमालाको एक प्रकारका सांप। पर्याय-मालुधान। इस सांप- संगु नदीके उत्पत्तिस्थानसे निकली है और दोनों की आकृति खटिया जैसी. देह घड़ी, पूंछ लम्बी और । पैर चार होते हैं। पहाड़ी तटोंको धोती हुई वड्गोपसागरमें गिरती है। माताली ( स० स्त्री०) मातुः आली पृपोदरादित्वात् । मातुलि ( स० पु०) मातलि देखो। ऋकार लोपः यद्वा मातायाः आलो। माताको सहये। मातुली ( स० पु०) मातुलस्य स्त्री मातुल ( इन्द्रवरा- भवेति । पा ४१४६) इति डीए । १मातुलपनी, मामी । २ माति (स' स्त्री०) १ परिमाण । २ प्रकृत अवगति, यथार्थ भङ्ग, भांग। ३ शण, सन । .. धारणा। मातुलुङ्ग ( स० पु०) मातुलुङ्ग-संज्ञायां म्बार्थे वा कन् । मातु ( हिं० स्त्री० ) माता, मां। छोलङ्गन, विजीरा नीबू । पर्याय-फलपूर, वीजपूर चक मातुल (सं० पु०) मातांता (पितृव्यमानुलेति । पा ४१२ ३६) १, मातुलुङ्ग, वफल, फलपूरक, लुगुप, पूरफ, पूर धीजपूर्ण, इति निपात्यते तत्र 'मातु ईलुच' इति वातिकात् डुलच। अम्बुकेश्वर । गुण-हृद्य, अम्ल. लघु, अग्निदीपक, .१ मातृभ्राता, माताका भाई, मामा। मातुलके मरने पर लक मरन पर आध्मान, गुल्म, लोहा, बद्रोग गार उदावरीनाशक । यह भागिनेयको पक्षिणी (दो दिन एक रात) अगीच होता है। विवन्ध, हिचकी, शूल और सदी में बड़ा फायदा पहु- ."मातुग्ने पक्षिणी रात्रि शित्विग्वान्धवेषु च । चाता है । इसके छिलकेका गुण-तिक्त, दुर्जर, (शुद्धितत्त्व) कफपित्तनाशक । मांसगुण- स्वादु, शीतल, गुरु और २ घोहिमेद, एक प्रकारका धान | ३ मदनवृक्ष 1४] वायुपित्तनाशक । ( राजव० ) धुस्तूर, धतूरा । ५ सर्पविशेष, एक प्रकारका सांप । ६ मातुलङ्गशिफा ( स० स्त्री०) मातुलङ्ग, विजीरा नीबूको फलाय, मटर। जड़। मातुलक ( स० पु०) मातुल-स्यायें कन् । १ धुस्तुरवृक्ष, | मातुलुङ्गा ( स० स्त्री०) मातुलुङ्ग-टाए। मधुकुक्कुटी । धतूरेका गाछ | २ मातुल, मामा। ... मातुल्लङ्गिका ( स० स्त्री०) मातुल संज्ञायां कर दाप, मातुलनुम (सपु०.) १ धुस्तूर वृक्ष, धतूरेका गांछ। २ अकारस्येत्वं । बनबोजपूर, विजौरी नोवू । शाल्मली वृक्ष, सेमरका पेड़।, . . . मातुलेय ( स० पु०) मातुल-पुत्र, ममेरा भाई ।' ' मातुलपुत्रक (सं० पु०) मातुलस्य पुत्रकः । १ धुस्तूरफल, मातुलेयी ( स० स्त्री० ) ममेरी बहन । ' । धतूरा ।२ गातुलतनय, मामाका लड़का। , , , मातुल्य ( स० क्ली०) मातुलालय, मामाका घर। मातुलपुष्प, ( स० को०) धुस्तूरपुष्प, धतरेका फूल। मातुष्वर ( स० पी० ) मातुः स्वसा। माताकी भगिनी, मातुला ( स स्त्री० मातुल टाप, मातुलस्य स्त्री ( इन्द्र- मौसी। मातृस्वस देखो! ....! Vol. xvil, 80